मंगलवार, 1 मार्च 2016

सुर-४२६ : "हर रूप में लगे तू प्यारी... सलाम तुझे ऐ नारी...!!!"

दोस्तों...

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न होती
अगर नारी तो
जनम कैसी लेती ?
ये सृष्टि सारी
कि वही तो हैं इस
संपूर्ण जगत की जन्मदात्री
विविध स्वरूपों में
संभाली हर जिम्मेदारी
जिसने बनाया उसको सबसे न्यारी
चाहे जिसे नाम से पुकारो
वो तो लगती हर रूप में प्यारी
कोई भी काम हो या कोई कार्यक्षेत्र
पडती सदा सब पर भारी
सलाम तुझे ऐ जगतजननी नारी
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१ मार्च के आते ही याद आती ‘महिला दिवस’ की जो इस महीने के प्रथम सप्ताह में ही आ जाता मगर, उसके आने की सुगबुगाहट तो बहुत पहले से होने लगती तभी तो उसे महज़ एक दिन मना औपचारिकता निभाने के रस्म अदायगी नहीं बल्कि हर बरस उसे पूरे एक सप्ताह मना उस शक्ति का शुकराना अदा करने का एक छोटा-सा प्रयास करते जिसकी वजह से हमारा, आपका और सबका ही अस्तित्व संभव कि जिसके न होने से ये दुनिया वीरान होती रेगिस्तान सी धूल उड़ाती अकेले ही उस रेत को फाकती नजर आती लेकिन ‘नारी’ तो वो उर्वरा शक्ति जो बंजर जमीन में में भी फूल खिले दे फिर रेगिस्तान में तो थोड़ी-बहुत संभावना छिपी ही हुई हैं तभी तो उसके होने मात्र से व्यक्ति को अपना आप मुकम्मल लगता और उसके बिना वो खुद को अधूरा महसूस करता कि ईश्वर ने सिर्फ उसे ही संतति का वो फलदायी वरदान दिया जिससे नर-नारी पूर्ण होकर अपने ही समान नई कृति का निर्माण करते और फिर सूनी-सूनी उदास प्रकृति भी खिलखिलाकर हंसने लगती और धरती भी हंसकर हर पीड़ा सहन करती कि वो भी तो नारी के ही दो अन्य रूप हैं जो नारी की ही तरह सृजन की क्षमता रखते यानी कि इस जगत में जितनी भी स्त्री प्रजाति वे सब ही भगवान के समान इंसान बनाने की अद्भुत कारीगरी का हुनर जानती वो भी किसी ईट-गारे से नहीं बल्कि हाड़-मांस से एक जीता-जागता अपनी ही हुबहू प्रतिकृति उसी तरह पंचतत्वों से बनी जैसी कभी उपरवाले ने स्वयं अपने हाथों से बना इस धरा पर भेजी थी और जिसकी संतानों से ही ये विशाल आबादी वाली दुनिया बनी हैं तो फिर अपने उन जड़ों को सींच उन्हें फिर से हरित करना हमारा कर्तव्य न कि अपनी ही जड़ो और जमीन से अलग होकर त्रिशंकु की तरह अधर में लटक न तो नीचे ही और न ही उपर के बन पाना जैसा कि आजकल लोगों की स्थिति दिखाई दे रही जबकि इंसान हो तो ऐसा जो आकाश की ऊंचाई को भी छुये तो उसके पैर नीचे थोड धरातल पर टिके रहना चाहिये वरना, ऐसा न होने पर अंजाम सब जानते क्या हो सकता जो आजकल चहूँ तरफ दृष्टिगोचर हो भी रहा हैं

‘औरत’ सिर्फ ‘माँ’ ही नहीं जो सबको जन्म देती बल्कि वो तो बहुत सारी भूमिकाओं के साथ-साथ बहुत सारी जिम्मेदारियों का भी निर्वहन करती और अपने हर रूप में सबको सदैव स्नेह व ममता लुटाती जो उसका नैसर्गिक स्वभाव किसी नदी की तरह जो अनवरत बहती हुई न सिर्फ राह की गंदगी साफ़ करती बल्कि रास्ते में मिलने वाले हर पथिक की प्यास भी बुझाती बिना उससे अपना कोई रिश्ता जाने कि उसके लिये तो इंसानियत ही एकमात्र नाता तो फिर कोई भी प्राणी हो सबको उदारता से अपना जल दे उसकी पिपासा शांत करती कुछ ऐसा ही ‘स्त्री’ भी तो करती और क्यों न करें आखिर नदिया भी तो एक नारी... तो नारी तो फिर भी नारी जो अपने जीवन में आने वाले हर रिश्ते-नाते को बड़ी शिद्दत से निभाती सबके प्रति अपने फर्ज़ का हर तरह से निबाह करने का प्रयास करती जिसके लिये फिर कोई भी त्याग या समर्पण की कोई भी अवस्था पार करनी पड़े कभी न हिचकती न एक पल भी सोच-विचर में पडती कि उसे अपने कर्तव्यों का पूरी तरह से अहसास होता तभी तो पैदा होने के पहले से ही अपने अनजाने, अनदेखे शिशु के प्रति भी उसका उतना ही मोह होता जितना कि सामने नजर आते संबंधो के लिये उसके अंतर में स्नेह का भाव रहता फिर चाहे वो ‘माँ’ हो या ‘बहु’ या फिर ‘सास’ या फिर ‘पत्नी’, ‘बहन’ या ‘सहेली’ हर रूप-नाम में वो एक अलहदा किरदार नजर आती जबकि होती वही लेकिन जब जिस वक़्त जिस भूमिका में होती पूरी तरह से उसमें डूब अपना फर्ज़ निभाती जिसके कारण हर कोई उसे पसंद करता उसका कायल होता यहाँ तक कि उसकी अपार क्षमताओं व अनंत गुणों को देखते हुये अब तो हर तरह के कार्यक्षेत्र में उसको चुना जाता कि किसी को भी उसकी कार्यक्षमता पर कोई संदेह नहीं रहा अजी, वो तो अपने आपको सिद्ध कर ही इस मुकाम तक पहुंची कि अब वो कोई भी काम करना चाहे तो फिर कोई भी उसके पथ को रोकता नहीं और यदि कोई ऐसा करें तो फिर उसे भी विरोध करना आ गया जिसके कारण कभी एकमात्र पुरुष के कहलाये जाने वाले क्षेत्रों में भी न सिर्फ उसने दखल दिया बल्कि अपनी कार्यशैली से अपने आपको सही साबित भी किया फिर भी इस देश में जहाँ उसे देवी का दर्जा दिया जाता अव्वल स्थान पर विराजमान पुरुष को जनम देने के बाद भी अब तक दोयम दर्जे पर रखी जाती और उसे बराबरी या समता का अधिकार तब ही मिल सकता जब सभी जागरूक एवं सशक्त बन अपनी कमजोरियों पर नियंत्रण कर अपने निर्णय स्वयं लेकर आगे बढ़ जोखिम उठाने को तो तैयार रहे ही साथ-साथ अपनी गरिमा और कर्तव्यों को भी न भूले ताकि कोई उस पर ऊँगली न उठा उसे सलाम करें ।  

‘महिला दिवस’ के आगमन के पूर्व उसके भिन्न-भिन्न स्वरूपों का विस्तृत आकलन कर उसके प्रति अपनी तरह से मनोभावों को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया हैं आठ दिवसीय श्रृंखला ‘हर रूप में लगे तू प्यारी... सलाम तुझे ऐ नारी...!!!’ के माध्यम से इस उम्मीद के साथ कि विगत वर्षों की श्रृंखला की तरह इसे भी आप सबका उतना ही सकारात्मक प्रतिसाद मिलेगा... :) :) :) !!!       
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०१ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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