शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-४१ : #प्रेमोत्सव_का_चतुर्थ_दिवस_टेडी_डे


प्रेमोत्सव में ‘गुलाब’ और ‘चॉकलेट’ के बाद ‘टेडी’ जैसे खिलौने का आदान-प्रदान थोड़ा अजीब जरुर लगता लेकिन, गहराई से चिंतन करें तो पाते कि यह एक ऐसे स्मृति चिन्ह का प्रतीक हैं जो साथी के विकल्प के रूप में अपने प्रिय को तोहफ़े में दिया जाता कि जुदाई के पलों में उसके साथ तन्हाई के ग़मगीन पलों को बिताया जा सके क्योंकि ‘गुलाब’ या ‘चॉकलेट’ को भले ही चाहत की निशानी के तौर पर कोई सहेजकर भी रख ले लेकिन लंबे समय तक इनको ज्यों का त्यों नहीं रख सकता न ही इनसे बातें कर दिल को ही हल्का कर सकता कि ये तो महज़ प्रेम के चिन्ह जो बीते हुये पलों की गवाही देते या उन मधुर क्षणों का स्मरण कराते परंतु इनके साथ अकेलेपन के अहसास को मिटाना नामुमकिन होता जो ‘टेडी’ की उपस्थिति से काफी हद तक कम हो जाता ऐसा इसलिये कि बेहद याद आने पर उसे आगोश में लिया जा सकता जो दिल को सुकून देता और इसी तरह कभी आँख मूंदकर उन बीते पलों में खोना हो तो उसकी गोदी में सर रखना मुफ़ीद लगता या फिर ख़ुशी, गम, प्यार की बातें जैसे अहसासों को बाँटना हो तो उसे मूक हमराज बनाया जा सकता

इस तरह ‘टेडी’ एक ‘टॉय’ होकर भी सिर्फ़ एक ‘टॉय’ नहीं बल्कि ‘फ्रेंड’ होता जिसके पास हमारे दिल के वो सभी राज़ सुरक्षित रहते जिसे हम किसी से भी नहीं कहना चाहते या वो अहसास जिन्हें किसे से बांटना सुविधाजनक नहीं लगता उन्हें बड़ी सरलता से उसके साथ साँझा कर लेते हैं  अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण इसने सबके बीच न केवल घुसपैठ कर ली साथ ही अपने लिये जगह भी सुरक्षित भी कर ली जिसे बाजारबाद ने बड़ी चालाकी से भारतीय घरों में एक सदस्य के रूप में स्थापित कर दिया और शायद, ही कोई घर ऐसा हो जहाँ पर आपको कोई ‘टेडी’ न दिखाई दे कि इसका गोलू-मोलू और गुदगुदा होना इसको सबके दिलों से जोड़ता हैं । छोटे-से-छोटा बच्चा भी इसको पसंद करता यहाँ तक कि नवजात शिशुओं के लिये भी ये हितकर होता तो अधिकांश घरों में रात के समय ये नज़ारा देखने मिलता कि सभी बच्चे अपने ‘टेडी’ को अपने साथ चिपटाकर सोते जिससे उन्हें रात में डर नहीं लगता कि उसकी गर्माहट उन्हें किसी अपने के नजदीक होने का अहसास कराती तो ऐसे में वो रात को घबराये भी तो उसे जोर से गले लगाने से उसका क्षणिक भय दूर हो जाता हैं ।

‘टेडी’ को इस तरह से समझने पर हम पाते कि ये भी हमारे यहाँ के कपड़ों से बनने वाले गुड्डे-गुड़ियों की जगह लेने वाला एक ‘सॉफ्ट टॉय’ हैं जिसे अक्सर हमारी मम्मियां पुराने कपड़ों से जोड़-तोड़ कर के बना देती थी फिर इनकी जगह प्लास्टिक के बने खिलोनों ने ले तो ‘टेडी’ ने उस खाली स्थान को हथियाने में देर नहीं लगाई कि बच्चों को तो शुरू से ही अपने प्रिय खिलौने को लेकर सोने की आदत होती ही हैं । फिर इसे किशोर लड़के-लडकियों के दोस्त के रूप में प्रसारित कर इसे स्थायी रूप से यहाँ जमने का मौका दे दिया गया और ‘टेडी डे’ ने तो इसके लिये विशाल बाज़ार ही खड़ा कर दिया और आज के दिन तो दुकानों में विशेष रूप से छोटे-बड़े ‘टेडी’ को सजाकर रखा जाता और ग्राहकों को आकर्षित किया जाता हैं । भले ही आपके पास अपना कोई साथी न हो लेकिन, आपका अपना कोई न कोई जरुर होगा जो आपको प्रिय होगा तो आप उसे या जो इनसे वंचित उनको ये गिफ्ट में देकर न केवल उन्हें एक प्यारा खिलौना बल्कि एक दोस्त भी दे सकते तो ‘टेडी डे’ मनाने का तरीका बदलिये फिर ये आपको गलत नहीं लगेगा... इसी विचार के साथ सबको ‘टेडी डे’ की नटखट शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१० फरवरी २०१८

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