रविवार, 11 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-४२ : #प्रेमोत्सव_का_पंचम_दिवस_प्रॉमिस_डे


यूं तो प्रेम में किसी वादे की दरकार नहीं क्योंकि, प्रेम अपने आप में दो दिलों के बीच एक अलिखित अनुबंध हैं जिसमें नैनों की जुबानी अनगिनत इक़रार कर लिये जाते और बिना कहे ही हाथों में हाथ लेने मात्र से दिल के जज्बात ज़ाहिर हो जाते हैं फिर भी कम्बख्त दिल ही जमाने की बदलती ताल और अपनी प्रियतम की चाल-ढाल देख कुछ असंतुलित हो जाता तो फिर दोनों दिलों के पलड़े को साधने के लिये वादे का वज़न डालना पड़ता जो अक्सर, कम या ज्यादा होता रहता जब तक कि विश्वास की डोर जो इन दोनों को थामे रहती स्थिर न हो अन्यथा ये क़रार महज़ खोखला ही साबित होता बिल्कुल उसी तरह जिस तरह लिखित दस्तावेज के होने पर भी सामने वाला मुकर जाता फिर जुबानी वादों-कसमों की भला क्या बिसात मगर, फिर भी दिल को बहलाने या कहो समझाने प्रेमी-प्रेमिका प्रेम के अपने रिश्ते को हमेशा के लिये उसी तरह बरकरार रखने एक-दूसरे से कुछ वादे कर लेते ताकि भविष्य में कभी कोई बदले या किसी के कदम डगमगाये तो उसे इस बात का हवाला देकर पुरानी चाहत की याद दिला दी जाये जिस तरह याददाश्त खो जाने वाले को अतीत का स्मरण कराया जाता तो उसकी भूली स्मरण शक्ति पुनः लौट आती बिल्कुल उसी तरह जैसे कि हनुमान जी को स्मरण कराने पर उनकी भूली हुई ताकत का बोध हो गया तो उन्होंने झट से सागर लांघ लिया बिल्कुल उसी तरह जैसे ही किसी प्रिय को उसके भूले हुए वादे की याद दिलाई जाती तो वो तुरंत पीछे लौट आता

ये सब कुछ इतना आसान नहीं होता जब तक कि दोनों ईमानदार न हो यदि उनके मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम की भावना पारदर्शी हैं तो इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती मगर, कोई यदि बेईमानी करने की ठान ही ले तो फिर कोई भी कांट्रेक्ट या कोई भी वादा उनको आपस में जोड़ नहीं सकता हैं । भारतीय समाज में विवाह संस्कार के साथ सात वचनों की परंपरा भी कुछ इसी तरह के करारनामे की एक अवधारणा हैं जहाँ अग्नि को साक्षी मानकर दो लोग एक-दूसरे के प्रति वचनबद्ध होते मगर, उनमें से कितने जो उसे पूर्ण तन्मयता से सुनकर दोहराते केवल गिने-चुने ही इसलिये शादी के कुछ सालों बाद ही पूछो तो किसी को कुछ याद न रहता ऐसे में 'प्रोमिस डे' पर किये जाने वाले वादों को भी सिर्फ वही याद रखते होंगे जो पूरी तरह से होशो-हवास में दूरदर्शिता के साथ किसी को कोई वचन देते होंगे अन्यथा क्षणिक प्रेम आवेश में आकर बड़ी-बड़ी बातें कर लेना कोई बड़ी बात नहीं पर, जो इसका मर्म समझते वे बेहद गंभीरता से सोच-समझकर ही अपनी बात न केवल कहते बल्कि उतनी ही शिद्दत से उसे निभाते भी हैं । इसलिये 'प्रॉमिस डे' पर कोई भी वादा करने से पहले व्यवहारिक तल पर उसका आंकलन कर लेना चाहिये कि क्या उसका पालन करना संभव होगा यदि लगे कि काल व परिस्थिति के अनुसार उसमें भी परिवर्तन होगा तो फिर प्राण जाये पर वचन न जाये जैसी उक्ति का प्रयोग न कर यथासंभव जैसे शब्दों से उसे लचीला बना ले ताकि इसकी वजह से टूटने वाला रिश्ता बच सके इसलिये शायद, प्रेमोत्सव में पांचवे दिन इसका विधान रखा गया कि इतने दिन तक तक इस पर अवश्य विचार कर लिया जाये ।

वादे तो कई होते करने को लेकिन, जिन्हें निभाना मुश्किल हो भविष्य में उनको करना कोई मायने नहीं रखता तो करो वही जिसे ताउम्र निभा सको इसी नसीहत के साथ ‘प्रॉमिस डे’ की दिली मुबारकबाद... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

११ फरवरी २०१८

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