मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-४४ : #प्रेमोत्सव_का_सप्तम_दिवस_किस_डे



सूरज की किरणें जब धीरे-धीरे चूमती सुप्त धरती को तो बेसुध सुबह जैसे अंगडाई लेकर गहरी नींद से जाग उठती हैं... इसी तरह फिजाओं में बहती अदृश्य हवायें जब हौलें से चूमती पेड़ों की पत्तियों को तो सोई हुई प्रकृति भी झूमकर जाग्रत हो जाती ये सब होता बिल्कुल उसी तरह जैसे माँ प्यार से चूमती अपने शिशु को तो उसमें जीवन की तरंगें हिलोरें मारने लगती गोया कि चुंबन सिर्फ अधरों के स्पर्श से नहीं अहसासों की छुवन से भी लिया जा सकता हैं मन से जब मन के तार जुड़े होते हैं जब गहराई से तो फिर सुदूर कहीं सरहद पर बैठा कोई फ़ौजी हो या सात समंदर पार परदेस में रहता कोई बिछड़ा हुआ प्रिय जब वो अपनों के द्वारा प्रेम से लिखे गये खत को चूमता तो भेजने वाला चाहे उससे कितने ही किलोमीटर की दूरी पर ही क्यों न मौज़ूद हो वो उसकी प्रेमासिक्त छाप को अपने गालों पर महसूस कर भावनाओं की उस स्नेहिल तपन से तन्हाई में भी मुस्कुरा उठता हैं

बचपन में ‘पुच्ची’ या ‘पप्पी’ के माध्यम से प्रेम की इस स्नेहिल अभिव्यक्ति से परिचित होने वाला नन्हा बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता लेकिन, अपने माथे के उस उष्ण आशीष को कभी भूल नहीं पाता जो उसके जन्म के बाद उसकी माँ ने उसे गोद में लेकर वात्सल्यता के साथ अंकित किया था कि उस ममतामई चुंबन ने ही तो उसके जन्म-जन्मांतर के टूटे तारों के साथ-साथ उसका रिश्ता भी उनसे जोड़कर उसके जीवन की दिशा को एक नया मोड़ दिया था उस पावन रिश्ते से शुरू हुआ जीवन जैसे-जैसे आगे बढ़ता प्रेम प्रदर्शन के अलग-अलग तरीकों से अपने मन की बात को ज़ाहिर करना सीखता जो उसे हर तरह की परिस्थिति में अपनी बात जताने की मूक मगर सशक्त भाषाओँ का ज्ञान कराता जिसमें एक ‘चुंबन’ भी होता मगर, बिना नजदीकी या स्पर्श के उसे किस तरह से अपनों तक अपनी बात पहुँचाना ये जानने के बाद वो अपने अंतर को पवित्र व पारदर्शी बनाने को सतत प्रयत्नशील रहता हैं

मौन से मौन की बात केवल तभी संभव होती जबकि हृदय में किसी तरह की मलिनता या दुराव-छिपाव न हो और जो इस रहस्य को समझ जाता वो अपने मन को किसी ‘ट्रांसमीटर’ की तरह बना लेता जो कि अपनों के भेजे हुये ‘सिग्नल्स’ को ग्रहण कर सके तो साथ ही जरूरत पड़ने पर अपनों को अपने अंतर की बातें तरगों के जरिये भेज भी सके और जो ऐसा कर पाने में सफल होता उसे अपनों से बिछड़कर भी दूरी का आभास नहीं होता कभी । इसी विधा से तो आकाश में स्थित रहने वाले तारागणों के बीच भी लोग अपनों को पहचान लेते तो हजारों किलोमीटर के फ़ासले पर रहने वाले अपने प्रिय को बिना चिट्ठी-तार के महज़ दिल ही दिल से संदेश भेज देते और सिर्फ़ संदेश नहीं प्रेम के एहसास को भी प्रेषित कर देते चाहे वो फिर स्पर्श का हो या प्रेम से चूमे जाने का कि समस्त ब्रम्हांड में बिखरे सूक्ष्म कण ही तो यहाँ से वहाँ विचरण कर किसी भी संदेश का अपनों में आदान-प्रदान करते हैं ।

यदि ये समझ जाये प्रेमीजन कि जिसे वो फ़िल्मी पर्दे पर देखते या जिसे वो किस समझते उससे इतर भी इसके विस्तृत मायने हैं और फ्लाईंग किस की तरह इसे वाकई हवाओं से पकड़ा जा सकता हैं केवल, जरूरत होती उस न दिखने वाली तरंगों को अपने स्थूल नेत्रों से देख पाने की जो पकड़ में न आकर भी आपको अपनों का पैगाम पकड़ा देती... मोबाइल में जो संदेश आ रहे वो भी तो उसी का एक प्रकार हैं... जब ये नहीं था लोग तब भी तो बिना किसी खत या मैसेज के अपनों की बात समझ लेते थे क्योंकि, उनके भीतर महसूस करने की शक्ति थी जो अब लुप्त हो रही तो उसे बचाये... ऐसे किस डे मनाये... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१३ फरवरी २०१८

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