सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-५० : #मन_हुआ_आज_हर्षित_आई_छत्रपति_शिवाजी_जयंती



‘मोबाइल’ और ‘कंप्यूटर’ के चाहे जितने भी फायदे हो लेकिन, जो नुकसान हैं वे बेहद गंभीर और जड़ों को खोखला कर देने वाले हैं क्योंकि इनकी वजह से लोग अपनों से ही नहीं अपनी भारतीय संस्कृति और अपने गौरवशाली इतिहास व उनसे जुड़े आदर्शों की जीवन गाथा से वंचित हो रहे जिन्हें सुनकर न जाने कितने नवजवान प्रेरित हुये और उनके जीवन की दिशा ही बदल गयी पर, जो अब फ़िल्मी नायक-नायिकाओं या विदेशी नाटकों को देखकर उनकी  कहानियों से प्रभावित होकर उन्हें अपना रोल मॉडल बना रहे उनसे उम्मीद की जा सकती कि यदि देश पर कोई संकट आये तो वे शत्रुओं को धूल चटा सकते हैं जबकि, १९ फरवरी १६३० में जन्मे ‘शिवाजी शाह राजे भोसले’ पर अपनी माँ जीजाबाई की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव था जो उन्हें रामायण-महाभारत ही नहीं अन्य वेद ग्रंथों में वर्णित महान चरित्रों की कहानियां सुनाया करती जिसने उनके बालमन पर ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि आजीवन वे अपनी माता के दिखाये पथ पर अविचलित चलते रहे और उसी के बल पर उन्होंने वो कर दिखाया जो आज आज़ाद भारत में भी संभव नहीं तभी तो इतिहास में वे एक अध्याय या मात्र गाथा नहीं बल्कि एक स्वर्ण युग के रूप में दर्ज हैं

उनके भीतर अदम्य साहस और शौर्य ही नहीं बौद्धिकता भी कूट-कूटकर भरी थी इसलिए तो वे औरंगजेब जैसे क्रूरतम अत्याचारी की कैद से भी आज़ाद होकर आ गये और जिन किलों को उन लोगों ने ‘पुरंदर समझौते’ के तहत चालाकियों से हथिया लिया उसे अपनी हिम्मत से पुनः प्राप्त किया जिसने उनको ‘छत्रपति’ का ख़िताब दिलवाया और उनकी ‘गोरिल्ला रणनीति’ से उनकी विलक्षण बुद्धि और असाधारण प्रतिभा का पता चलता हैं जिसने मुगलों को हैरानी में डाल दिया था । मुगलों की एक खासियत थी धोखाधड़ी और पीठ पर वार करना जिसका परिचय उन्होंने हमेशा दिया यही वजह कि वे अपने दमखम पर नहीं केवल चालाकियों से ही जीत पाते थे तो ऐसा ही एक वाकया ‘शिवाजी’ के साथ भी हुआ जब आदिलशाह की विधवा बेगम ने अफज़ल खां को उनके पास बात करने भेजा तो जैसे ही शिवाजी उससे गले मिले उसने पीठ पर वार कर दिया जैसा कि मुगलों की आदत होती हैं परंतु, शिवाजी सावधान थे तो उन्हें ‘बघनखा’ उसके पेट में घुसेड बीजापुर पर अपना अधिकार जमा लिया और दुश्मन को बता दिया कि उनको जीतना नामुमकिन हैं ।

उनमें केवल युद्ध कौशल, राजनैतिक दक्षता या कुशल शासनिक क्षमता ही नहीं बल्कि, प्रेम, वात्सल्यता, सहनशीलता, धार्मिकता और सहज मानवीय गुण भी भरे हुये थे जिसने उनको जन-जन का प्रिय और अपनी प्रजा का लोकप्रिय राजा बना दिया जिनसे जनता अपने मन की बात कह सकती थी और जिनके लिये अपना देश, अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपनी धरोहर, अपनी परम्परायें आज के लोगों की तरह शर्म नहीं गर्व का विषय था तो इसकी रक्षा हेतु वे किसी भी हद तक जा सकते थे । ‘हिंदवी स्वराज्य’ की अपनी अवधारणा को लागू करने उन्होंने हर तरह के प्रयास किये परंतु, दूसरे धर्मों की न तो अवहेलना की न ही जबरदस्ती उसे लादने की कोशिश की और स्त्रियों को तो बेहद मान देते थे उनकी इसी न्यायप्रियता को देखकर उनके समकालीन कवि ‘भूषण’ ने कहा कि ‘यदि शिवाजी न होते तो काशी अपनी संस्कृति खो चुका होता, मथुरा मस्जिदों में बदल गया होता और सब कुछ सूना हो गया होता’ तो इस तरह उन्होंने मुगलों के मध्य अपने धर्म का पूर्ण निष्ठा से पालन कर उसे पतित होने से बचाकर भारतभूमि की प्रतिष्ठा और आन-बान-शान को कायम रखा हम उनके ऋणी हैं जो आज हम अपनी शुचिता के साथ जीवित हैं... आज उनकी जयंती पर यही कामना करते कि उन जैसे सपूत जन्म ले जो फिर देश को उसी मुकाम पर लाये... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१९ फरवरी २०१८

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