एक अनजान दुनिया से किसी खाली मेमोरी कार्ड की
तरह आता हैं बच्चा जिसके मस्तिष्क की ब्लेंक स्पेस में उसकी जन्मदात्री ही सबसे
पहले अपनी जुबान से बोले शब्दों से एक एक बाद एक अनगिनत फ़ाइल का निर्माण करती हैं
जिसमें प्रत्येक शब्द उसी भाषा में दर्ज होता हैं जो उसकी माँ बोलती हैं फिर चाहे
वो हिंदी हो या अंग्रेजी या फिर सिंधी या पंजाबी या हो गुजराती, मराठी, तमिल,
तेलुगु या मलयालम या कोई भी क्षेत्रीय बोली या सांकेतिक भाषा सब माँ के द्वारा ही
उसके कार्ड में इनपुट की जाती ।
इस तरह शब्दों व भाषा से उसका प्रथम परिचय उसकी प्रथम शिक्षिका माँ ही कराती और जो
भी माँ बोलती वो बोली ‘मातृभाषा’ बन जाती जिसका स्थान कोई भी भाषा नहीं ले सकती
क्योंकि ये किसी भी व्यक्ति की पहचान होती हैं जिसे भूला पाना नामुमिकन होता कि ये
तो व्यक्ति की रगों में लहू की तरह आजीवन बहती रहती हैं और चूँकि ये माँ के द्वारा
बोली जाती इसलिये माँ की तरह व्यक्ति का भविष्य संवारती उसके जीवन को आकार देती कि
इसी के माध्यम से वो हर तरह का ज्ञान प्राप्त करता हैं ।
‘मातृभाषा दिवस’ को
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाना ये दर्शाता कि अब बहुत-सी भाषायें विलुप्ति की कगार
पर तो उन्हें सहेजा जाये उनके प्रति लोगों में सरंक्षण की भावना पैदा की जाये
अन्यथा एक दिन हमारा देश जो बहुभाषी होने के लिये जाना जाता एक दिन अपनी ‘मातृभाषा’
को भूलकर किसी पराई या विदेशी भाषा की फोटोकॉपी मात्र बनकर न रह जाये तो इस दिन पर
यही संकल्प ले कि कोस-कोस पर बदलने वाली हमारी बोलियाँ कहीं इतिहास का किस्सा न बन
जाये जिसे हम उस भाषा में दोहरा भी न पाये । ‘मातृभाषा’ किसी तरह हमारे अस्तित्व
का अभिन्न अंग और हमारी पहचान होती इसे समझने के लिये बचपन में सुनी ‘तेनालीराम’
की एक कहानी याद आ रही...
एक दिन की बात है कि ‘राजा कृष्णदेव राय’ के
दरबार में एक बहुत विद्वान ब्राह्मण आया उसने महाराज को अपना परिचय देने के बाद
कहा- राजन! मैंने सुना है कि आपके पास एक से एक विद्वान दरबारी हैं। आपने ठीक सुना
है ब्रह्मादेव, महाराज ने खुशी से ‘तेनालीराम’ की ओर देखकर गर्व करने वाले लहेजे
में कहा, हमें अपने दरबारियों की बुद्धिमता पर गर्व है।
तब उस ब्राह्मण ने कहा, तो क्या कोई बता सकता है
कि मेरी ‘मातृभाषा’ क्या है? यह कहकर उस ब्राह्मण ने धारा प्रवाह बोलना आरंभ किया।
पहले ‘तेलुगू’ में बोला, फिर
‘तमिल’ में, ‘कन्नड़’, ‘मराठी’, ‘मलयालम’
और ‘मराठी’ भाषा में भी उसने धाराप्रवाह व्याख्यान दिया। वह जब भी जो भाषा बोलता लगता
था कि वही उसकी ‘मातृभाषा’ है, क्योंकि हर भाषा पर उसका पूरा अधिकार था। अपनी
बात पूरी करने के बाद वह बोला- राजन क्या आप या आपका कोई दरबारी बता सकता है कि
मेरी ‘मातृभाषा’ क्या है? सभी
दरबारी चुप। कोई समझ न पाया। महाराज ने तेनालीराम की ओर देखा, तब
वे अपने स्थान से उठे और बोले महाराज मेरी प्रार्थना है कि इन विद्वान अतिथि को
कुछ दिन अतिथि गृह में ठहराएं। मुझे इनकी सेवा का अवसर प्रदान करें। ऐसा ही किया
गया। तेनालीराम उसी दिन से उनकी सेवा में लग गए।
एक दिन जब अतिथि एक वृक्ष के नीचे आसन पर बैठे
थे कि पांव छूने के बहाने ‘तेनालीराम’ ने उनके पांव में कांटा चुभा दिया। पंडितजी
दर्द से छटपटाए और ‘तमिल भाषा’ में अम्मा-अम्मा करने लगे। ‘तेनालीराम’ ने वैद्य को
बुलाकर तत्काल उनका उपचार कराया। दूसरे दिन विद्वान सभा में आए और बोले- महाराज आज
चौथा दिन है, क्या
मेरे प्रश्न का उत्तर मिलेगा। महाराज ‘कृष्णदेव राय’ ने ‘तेनालीराम’ की ओर देखा तो
वे उठकर बोले- महाराज इनकी ‘मातृभाषा’ तमिल है। वाह-वाह, ‘तेनालीराम’ के कुछ कहने
के पहले ही अतिथि बोल पड़े- आपने बिल्कुल सही बताया, लेकिन आपको ये कैसे पता चला?
सम्मानित अतिथि आपके पांव में जब मैंने कल कांटा
चुभाया था, तब
आप तमिल भाषा में अम्मा-अम्मा पुकार रहे थे। इसी से मैंने अनुमान लगाया कि आपकी ‘मातृभाषा’
तमिल है, क्योंकि
जब व्यक्ति किसी दुख तकलीफ या संकट में होता है, तब आडंबर छोड़कर अपने वास्तविक
रूप में आ जाता है और अपनी स्वाभाविक भाषा यानी अपनी मातृभाषा में अपनी मां और
परमात्मा को याद करता है। यही जानने के लिए मैंने जानबूझकर आपके पांव में कांटा
चुभाया था, इसके
लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं। आप धन्य हैं ‘तेनालीराम’ आप वास्तव में विद्वान और
तीव्र बुद्धि वाले हैं। महाराज मैं ‘तेनालीराम’ के उत्तर से संतुष्ट हूं।
वाकई कोई भी मुसीबत की घड़ी हो या संकट के कोई
कठिन पल हमारे मुंह पर माँ का नाम ही नहीं ‘मातृभाषा’ भी स्वतः ही आ जाती ऐसी माँ
के समान हमारी पीड़ा को हरने वाली ‘मातृभाषा’ को नमन और इस दिवस को सार्थक बनाने
हमारी पहल हो कि हम अपनी गुम होती जा रही भाषाओँ को बचाये, उनको पुनः उनके खोये
स्थान पर स्थापित कराये... इसी शपथ के साथ हम ये दिन मनाये... सबको ‘अंतर्राष्ट्रीय
मातृभाषा दिवस’ की अनंत शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!
_____________________________________________________
© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ फरवरी २०१८
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें