गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-३२ : #आकाशीय_करिश्मा_कल्पना_चावला




‘करनाल’ से ‘अंतरिक्ष’ तक की उड़ान भरने वाली देश की बेटी ‘कल्पना चावला’ को बचपन से ही आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों से बड़ा प्यार था और उनके बारे में जानने की गहन उत्सुकता ही थी जो उन्हें पहले एक छोटे-से गाँव से विदेश और फिर वहां से आसमान तक ले गयी और उसके बाद उसी जगत में वो खो भी गयी इस तरह से अपनी ही बात को सच साबित कर गयी जिसे वो जाने-अनजाने अक्सर कहा करती थी, “मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनीं हूं, हर पल अंतरिक्ष के लिए बिताया और इसी के लिए मरूंगी” तो १ फरवरी २००३ को जब हर कोई उनके वापस लौटकर आने और अंतरिक्ष में बिताये अपने बहुमूल्य समय में हुये अनुभवों की दास्तान सबको सुनाने की प्रतीक्षा कर रहा था तभी वो दर्दनाक हादसा घटित हुआ उनका यान ‘कोलंबिया’ जो आकाश से धरती को छूने ही वाला था ने जैसे ही पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया, वैसे ही उसकी उष्मारोधी परतें फट गईं और यान का तापमान बढ़ने से वो दर्दनाक हादसा घटित हुआ जिसने धरती की बेटी को वापस अंतरिक्ष में बुला लिया इस तरह भारत को गौरवान्वित करने वाली और जन्म से पहले ही कोख़ में मरने वाली अनेक अजन्मी बच्चियों को बचाने वाली आकाशीय परी सूक्ष्म तरगों में विलीन हम सबसे हमेशा-हमेशा के लिये जुदा हो गयी मगर, बेटियों को एक संदेश दे गयी कि अगर वो कोशिश करें तो आसमान भी उनकी पहुंच से दूर नहीं बस, उड़ान भरने की देर हैं

ऐसा नहीं हैं कि ‘कल्पना’ के लिये ये यात्रा आसान थी वो भी उस राज्य में जहाँ बेटियों के लिये खुलकर साँस लेना भी आसान नहीं होता जहाँ की संकुचित विचारधारा और रुढ़िवादी माहौल में दम घुटता हैं वहां उसने एक मध्यमवर्गीय परिवार में १७ मार्च १९६२ को जनम लिया इसके बाद शुरू हुआ अपने लक्ष्य तक पहुंचने का दुर्गम सफर जब उन्होंने स्कली पढ़ाई समाप्त करने के बाद चंडीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया । उस समय तक भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में उतनी तरक्की नहीं की थी अतः अपने सपने को पूरा करने और ‘अंतरिक्ष’ तक पहुंचने के लिये एकमात्र रास्ता ‘नासा’ से ही गुजरता था तो १९८२ में वे अमेरिका चली गईं जहाँ उन्होंने ‘टैक्सस यूनिवर्सिटी’ से ‘एयरोस्पेस इंजीनियरिंग’ में ‘एम.टेक’ की पढ़ाई पूरी करने के बाद ‘यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो’ से ‘डॉक्टरेट’ की डिग्री भी हासिल की याने कि अंतरिक्ष जगत का उच्चतम ज्ञान प्राप्त कर लिया । अब बारी थी इस ज्ञान को व्यवहार में उतारने की की जिसके लिये अन्तरिक्ष में उतरना जरूरी था तो आख़िरकार १९८८ में ‘कल्पना चावला’ को अपनी तयशुदा मंजिल ‘नासा’ के ‘रिसर्च सेंटर’ में नियुक्ति मिल गयी जिसने उनके मन में ये विश्वास जगाया कि अब वो दिन दूर नहीं जब वो उड़कर सितारों के पास पहुंच जायेगी उनको छूकर अपनी कल्पना से मिलान कर सकेगी

फिर आया साल १९९५ जो उनके लिये बड़ी खुशखबरी लाया जब मार्च में उनको पहली अंतरिक्ष उड़ान के लिए चुन लिया गया और उनका पहला अंतरिक्ष मिशन १९ नवंबर १९९७ को शुरू हुआ जिसमें ६ अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उन्होंने उड़ान भरी और अंतरिक्ष में पहुंचकर उन्हें लगा मानो उनका ख़्वाब पूरा हुआ कि यही वो जगह थी जहाँ वो शुरू से ही पहुंचना चाहती थी इस यात्रा ने उनके भीतर उत्साह ही नहीं परम आत्म-विश्वास से भर दिया कि यदि आत्मबल मजबूत हो तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं और उनकी इस सफ़लता ने देश की बेटियों को भी आत्माभिमान से भर दिया कि आसमान भी दूर नहीं चाहे तो उसे वे हाथ बढ़ाकर छू सकती हैं उसके बाद २००० में उनको दूसरे अंतरिक्ष मिशन के लिए भी चुन लिया गया परंतु, हमारा दुर्भाग्य कि ये उनके जीवन का आखिरी मिशन भी साबित हुआ क्योंकि इसकी शुरुआत ही तकनीकि गड़बड़ियों के साथ हुई जिसकी वजह से वो काफी विलंब से १६ जनवरी २००३ को उड़ान भर पाया इस मिशन में वे १६ दिन अंतरिक्ष में बिताकर जब आज के दिन ही वापस लौट रही थी तो धरती पर कदम रखने से पहले ही हवाओं में बिखर गयी पुनः अंतरिक्ष में लौट गयी मगर, ये कह गयी कि “स्वप्न से सफ़लता तक पहुंचने का कोई मार्ग नहीं लेकिन, यदि आपके पास अपना कोई ख्वाब हैं तो रास्ता आपको स्वयं ही ढूँढना होगा और फिर उस पर लक्ष्य प्राप्ति तक चलने का हौंसला भी करना होगा” उनके अनुभव से निकली ये सीख हम सबके लिये प्रेरणा हैं... नमन... देश की बेटी को...
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०१ फरवरी २०१८

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