शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-५४ : #खुबसूरती_ऐसी_मधुबाला_के_पास #देखनेवाला_उसे_भूल_जाये_अपना_काम


हमें काश तुमसे मुहब्बत न होती
कहानी हमारी हक़ीकत न होती...

एक बार ‘आशा भोंसले जी’ ने रेडियो पर अपना एक संस्मरण सुनाते हुये कहा कि, जब भी मैं किसी गीत की रिकॉर्डिंग पर स्टूडियो जाती यदि उस वक़्त मेरे सामने ‘मधुबाला’ बैठी हो तो मैं अपनी पंक्तियाँ भूलकर उन्हें देखने लग जाती थी क्योंकि, जितनी वो खुबसूरत हक़ीकत में थी उसे कैद पर परदे पर दिखा पाना किसी कैमरे के बस की बात न थी वो भले किसी कम सुंदर को अद्वितीय सुंदरी दर्शा दे लेकिन, जो खुद हुस्न का जीता जागता स्वरुप थी उसे देखकर कैमरे की ऑंखें भी चुंधिया जाती थी उनके साथ काम करने वाले तो यह तक कहते हैं कि उनकी त्वचा इस कदर कोमल व मुलायम थी कि स्टूडियो की चकाचौंध रौशनी जब उन पर पड़ती तो वो उसकी ऊष्मा से मानो झुलस-सी जाती थी वो उस चमक को बर्दाश्त न कर पाती और एकदम लाल भभूका हो जाती थी जिस तरह तेज धूप में निकलने पर किसी गोरे चमड़े वाले का हाल हो जाता हैं याने कि बनाने वाले ने उनको बड़ी-ही फुर्सत और तबियत से गढ़ा था बिल्कुल उसी तरह जिस तरह संगतराश ने उनको मुगल-ऐ-आज़म फिल्म के एक दृश्य में मूर्तिवत बनाकर पेश किया था

न दिल तुमको देते, न मजबूर होते
न दुनिया, न दुनिया के दस्तूर होते
क़यामत से पहले क़यामत न होती
हमें काश तुमसे मुहब्बत...

उनकी इस अवर्णनीय सुंदरता ने ही उनको सबके दिलों में खुबसूरती की मिसाल के रूप में जीवंत रखा हैं क्योंकि, उनके पहले या बाद में भी कई नायिकायें आई लेकिन, जैसे उनके बाद सुंदरता का पैमाना ही ‘मधुबाला’ बन गया कि हर किसी को उनसे कम या ज्यादा ही आँका गया लेकिन, कोई फिर दूसरी ‘मधुबाला’ न फिर दुबारा फिर इस दुनिया में आई जो इस हद तक सुंदर हो कि देखने वाला उसे देख के अपन काम ही भूल जाये या जिसे देखने के बाद उसे कोई उससे अधिक सुंदर न नजर आये । यही वजहें थी जिसने ‘मधुबाला’ को उनके सौंदर्य से परे देखने न दिया और यदि उनके जीवन को किसी ने अन्य पहलू से देखने की कोशिश भी की तो उनकी अधूरी मुहब्बत के किस्से और उनके टूटे दिल के अनगिनत टुकड़े ही नजर आये कि इस बेपनाह हुस्न की मल्लिका जो खुद तो मुकम्मल थी परंतु, उसकी जिंदगी में मुहब्बत अपने लफ्ज़ की तरह ही आधी-अधूरी रही । जिसमें उनके नाम के साथ यूँ तो कई नाम जुड़ते रहे मगर, जब अभिनय सम्राट ‘दिलीप साहब’ के नाम एक बार उस नाम से मिला तो फिर इश्क़ नाकाम रहा लेकिन, वो दो नाम हमेशा-हमेशा के एक हो गये और आज तलक भी उनको एक-दूसरे के बिना बोले तो कोई कमी-सी लगती हैं ।

हमीं बढ़ गये इश्क़ में हद से आगे
ज़माने ने ठोकर लगायी तो जागे
अगर मर भी जाते तो हैरत न होती
हमें काश तुमसे मोहब्बत...

कभी-कभी हैरत होती कि उपरवाले ने जिसे इतना संपूर्ण बनाया कि कहीं कोई कमी या सुधार की कोई गुंजाईश शेष न रखी उसने उनके हाथ की रेखा बनाते समय क्यों नहीं प्यार की लकीर बनाई या उसकी कुंडली में प्रेम का खाना खाली ही क्यों रखा या उसकी किस्मत लिखते समय उसमें चाहत की कहानी पूरी क्यों नहीं लिखी ? इसका जवाब तो वो उपर बैठा   जादूगर ही जाने हम सब जिसके हाथों की कठपुलती और जिस पर हमारा कोई जोर चलता नहीं हैं । उसने उसकी बाहरी बनावट में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन, हृदय बनाते समय उसमें एक छेद छोड़ दिया जो अंततः असमय उनकी मौत की वजह बना और हमारा दुर्भाग्य कि आज ही के दिन वो बेहद कम उम्र में हम सबसे जुदा हो गयी और उनकी वो खाली जगह आज भी उसी तरह से सूनी आँखें लिये उनकी राह तक रही हैं कि काश, वो लौट आये और इस बार उनकी मुहब्बत ही नहीं जिंदगी भी पूरी हो तो फिर उसे न कहना पड़े कि...

तुम्हीं फूँक देते नशेमन हमारा
मुहब्बत पे एहसान होता तुम्हारा
ज़माने से कोई शिकायत न होती
हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती...!!!

‘मुगल-ऐ-आज़म’ फिल्म में उन पर ही फिल्माये गये इस गीत में उनके अंतर की पीड़ा पूरी तरह से ज़ाहिर होती हैं जो अधूरे दिल, अधूरे इश्क़ और अधूरी कहानी को उतनी ही शिद्दत से बयाँ ही नहीं कर रही आज भी अपने मुकम्मल होने का इंतजार कर रही कि काश...
 
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२३ फरवरी २०१८

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