शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-३४ : #चौदहवीं_का_चाँद_वहीदा_रहमान


चौदहवीं का चाँद हो
या आफ़ताब हो
जो भी तुम खुदा की कसम
लाज़वाब हो...

इस एक गीत से केवल उसकी खुबसूरती का अंदाजा लिया जा सकता जो निसंदेह लाज़वाब हैं क्योंकि, बड़ी-बड़ी बोलती हुई शरारती आँखें उस पर कमान-सी तनी हुई भवें और उनके बीच से निकलती नुकीली पतली गढ़ी हुई सुतवां नाक जिस पर हीरे की लौंग ऐसी जंचती कि पता न चलता किसकी अहमियत अधिक फिर उसे देखकर ये पक्का हो जाता कि उसने पहनी इसलिये हीरा चमक उठा हैं यकीन न हो तो ‘तीसरी कसम’ एक बार जरुर देख ले जिसमें उनके किरदार का नाम भी ‘हीरा ही हैं अब बात करें यदि उनके फूल की पंखुरी के मानिंद गुलाबी-गुलाबी होंठों की तो लगता जैसे कोई गुलाब ही खिल उठा हो और जिस सुराहीदार गर्दन पर ये पूरा चाँद-सा मुखड़ा टिका उसका क्या कहना कि खुदा ने बड़ी फुर्सत से बनाया होगा इसे... ये जुमला ‘वहीदा रहमान’ पर सटीक बैठता हैं जिनकी देहयिष्ट भी सांचे में ढली हुई जैसे किसी संगतराश ने बड़े ही इत्मीनान से एक-एक अंग को तराशकार उस आकार में गढ़ा हो जैसा कि नायिकाओं का वर्णन साहित्य में किया गया हैं

खुदा भी आसमां से
जब ज़मीं पर देखता होगा
मेरे मेहबूब को किसने बनाया
सोचता होगा ?

ये गीत भी निश्चित उनके अनुपम और मुगलई सौंदर्य को देखकर ही लिखा गया होगा लेकिन, इसे पढ़कर कहीं आप ये न सोचने लगन कि वो महज़ सुंदरता की एक जीती-जागती प्रतिमा मात्र हैं बल्कि, उनमें अभिनय प्रतिभा भी उतनी ही शिद्दत से भरी हुई थी तो ऐसे में सोचिये जब वो रजतपट पर नमूदार होती होंगी तो किस तरह का जादू बिखरता होगा तो वही हुआ जब उन्होंने हिंदी सिने जगत के सबसे सुनहरे दौर में इस क्षेत्र को चुना जिसका श्रेय उस जमाने के सर्वाधिक प्रतिभावान निर्देशक-अभिनेता ‘गुरुदत्त’ को जाता हैं जिन्होंने दक्षिण में तमिलनाडु के मुस्लिम परिवार में जन्मी ‘वहीदा’ की सादगी-सुंदरता, नृत्य में प्रवीणता और तहजीबी नाजों-अंदाज के चलते उन्हें अपनी ‘सी.आई.डी’ मूवी में बेहद छोटी-सी वो भी नकारात्मक भूमिका दी परंतु जब उन्होंने इस चरित्र में अपने नैनों के बाण चलाये और अपनी अदाओं के जलवे बिखेरें तो देखने वाले उसके किरदार के मुताबिक दिखाये गये लटकों-झटकों की गिरफ़्त में आ गये हालाँकि रोल बेहद छोटा था पर, जब वे ‘देव आनंद’ से बड़े ही रहस्यमय अंदाज में कहती हैं कि ‘मुझे एक गूंगा तोता चाहिये’ तब उनकी संवाद अदायगी, आँखों की भाव-भंगिमायें और हाथों के सधे हुये संचालन ने फ़िल्मी दुनिया में उनके भविष्य को सुनिश्चित कर उसे इतिहास में अपना नाम दर्ज करने का मौका दे दिया

कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
जीने दो ज़ालिम बनाओ न दीवाना
कोई न जाने इरादे हैं किधर के
मार न देना तीर नज़र का किसी के जिगर पे
नाज़ुक ये दिल है बचाना ओ बचाना
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

इस एक गीत ने उनके अंदर छिपी नैसर्गिक अभिनय क्षमता का परिचय दे दिया और इसके शब्दों ने उनके इरादे भी ज़ाहिर कर दिये ‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना’ याने कि आज ‘खलनायिका’ का रोल जरुर कर रही हूँ लेकिन, एक दिन जरुर ‘अभिनेत्री’ बनकर इस पर्दे पर छा जाउंगी तो जब उस दौर के नामचीन अभिनेताओं और निर्देशकों का साथ उनको मिला तो फिर मानो उनका स्वप्न सत्य हो गया और एक के बाद एक प्यासा, कागज़ के फूल, साहिब बीबी और ग़ुलाम, तीसरी कसम, ख़ामोशी, गाइड, काला बाज़ार, सोलवां साल, बात एक रात की, मुझे जीने दो, आदमी, दिल दिया दर्द लिया, फागुन, कोहरा, प्रेम पुजारी, पत्थर के सनम, नीलकमल, बीस साल बाद, शगुन, मशाल, अदालत, एक फूल चार कांटे, धरती, नमकीन, एक दिल सौ अफ़साने जैसी अनगिनत फिल्मों का हिस्सा बनकर उन्होंने कीर्तिमान रचा और आज भी वे यदा-कदा रजत परदे पर नजर आ जाती हैं याने कि उनकी प्रभावशाली गरिमामय उपस्थिति अब भी हमको उस सुनहरे अतीत से जोड़े हुये हैं... आज उनके जन्मदिवस पर उनको अपने सभी चाहने वालों की तरफ से ढेर सारी शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०३ फरवरी २०१८

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