रविवार, 18 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-४९ : #काली_माँ_के_अनन्य_भक्त_रामकृष्ण_परमहंस



अब न रहे वो गुरु
न रहे वो संत
जो शिष्य को बना सके
‘स्वामी विवेकानंद’
न मिलते ऐसे साधक
न  ऐसे उपासक
जो भक्त को करा सके
ईश्वर दर्शन
ऐसे तो बस एक ही थे
‘रामकृष्ण परमहंस’
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ये तो सिर्फ एक पक्ष हुआ कि अब ऐसे गुरुदेव या संत नहीं जो अपने शिष्य को अपनी सारी साधना, अपने सारे जीवन का पुण्य, अपनी समस्त संचित ऊर्जा ही नहीं जन्म-जन्मान्तर तक एकत्र किया संपूर्ण ज्ञान देकर इतना उच्च पद दिला सके कि आने वाली सदियाँ उसे अपना आदर्श मानकर पूजे और उससे प्रेरणा प्राप्त करती रहे लेकिन, इसी बात का एक अन्य पहलू भी तो हैं कि अब वैसे शिष्य भी तो न रहे कि जिनके भीतर वैसा ज्ञान प्राप्त करने की लालसा हो कि जिसके लिये वो अपना सर्वस्व अपने गुरु पर वार सके और जो अपने गुरुदेव को दिखाये मार्ग पर सतत अग्रसर रहे यहाँ तक कि उनकी हर एक आज्ञा को आंख मूंदकर माने इसलिये इस तरह वो एक-दूसरे को समर्पित गुरु-शिष्य की परंपरा ही खत्म हो गयी अब तो इसके उदाहरण भी गिने-चुने ही बचे कि आधुनिक युग में सबको लगता कि उसे सब कुछ पता और किसी के पास इतना ज्ञान नहीं जो वो उसे दे सके तो अपने भ्रम के इस जाल और मिथ्या अहंकार में वो किसी को कुछ समझता नहीं और न ही अपने शिक्षक का ही आदर करता और उपदेश सुनना तो उसे पसंद ही नहीं तो फिर किस तरह से ऐसे लोग शेष रहते धीरे-धीरे सभी विलुप्त हो गये ऐसे में यादें ही बाकी जिनसे ये अहसास होता कि कभी इसी धरा पर ऐसे भी लोग जन्मे जिन्होंने भारतदेश का परचम समूचे भूमंडल पर इस तरह से लहराया कि भारतभूमि को विश्वगुरु का दर्जा दिलवाया और दुनिया को ये बताया कि यही वो धरती जिसके कण-कण में भगवान और आत्मदर्शन का रहस्य छिपा हुआ हैं     

जितनी सहजता से उन्होंने ईश्वर को समझा और पाया वैसा अन्यत्र दुर्लभ हैं और उन्होंने भी यही कहा कि, किसी के मन में प्रभु को पाने की लालसा नहीं होती वरना, उन्हें पाना कोई दुष्कर कार्य नहीं परंतु, हर मनुष्य परमात्मा से केवल अपने या अपनों के लिये सुख की मांग करता किसी के भीतर उनको पाने की चाहना नहीं होती इसलिये वो भी उनको उनकी इच्छित वस्तु प्रदान करता न कि अपने दर्शन से लाभान्वित करता कि जिसको उनकी कामना होती वो मार्ग ढूंढ ही लेता जैसे ‘नरेंद्र दत्त’ ने स्वयं खोजा और फिर उनको देखकर अपनी उस धारणा को गलत साबित किया कि भगवान को पाना मुश्किल हैं बल्कि उन्हें तो ज्ञात हुआ कि अपने मन में इच्छा को पालना कठिन हैं क्योंकि, कोई ही ऐसा व्यक्ति होगा जो परमेश्वर की छवि को देखना चाहता हो सबको सिर्फ निज स्वार्थ के सिवा कोई मनोकामना नहीं होती और ‘रामकृष्ण परमहंस’ के जीवन वृतांत से हमें यही सबक मिलता कि हम खुद को सरल-सहज बनाये तब कुछ भी असाध्य नहीं होगा... आज जयंती पर उन महापुरुष को शत-शत नमन...☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१८ फरवरी २०१८

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