दृश्य – ०१
: कालजयी फिल्म ‘देवदास’ में शीर्षक भूमिका निभाने वाले ‘दिलीप कुमार’ नदी
के किनारे एकाकी बैठे पारो को याद करते हुये गा रहे हैं...
मितवा,लागी रे ये कैसी
अनबुझ आग
मितवा, मितवा, मितवा... नही आई
लागी रे ये कैसी
ब्याकुल जियरा ब्याकुल नैना
एक एक चुप में सौ सौ बैना
रह गये आँसू लुट गये रात
मितवा मितवा मितवा...
दृश्य – ०२ : ‘पतिता’ फिल्म में सदाबहार अभिनेता
‘देव आनंद’ अपनी पत्नी बनी अदाकारा ‘उषा किरण’ के सर को अपनी गोद में लेकर
सांत्वना देते हुये गा रहे हैं...
हैं सबसे मधुर वो गीत
जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं
जब हद से गुज़र जाती हैं ख़ुशी
आंसू भी छलकते आते हैं...
दृश्य – ०३ : फिल्म ‘बेवफ़ा’ में हर दिल अजीज ‘राज
कपूर’ अभिनेत्री ‘नर्गिस’ के घर के बाहर बैठे उसका इंतजार करते हुये गा रहे हैं...
तू आये न आये तेरी ख़ुशी
हम आस लगाये बैठे हैं...
दृश्य – ०४ : फिल्म ‘सुजाता’ में शीर्षक भूमिका
निभा रही संजीदा अदाकारा ‘नूतन’ को एक फोन आता हैं और दूसरी तरह संवेदनशील अदाकार ‘सुनील
दत्त’ गा रहे हैं...
जलते हैं जिसके लिये तेरी आँखों के दिये
ढूंढ लाया हूँ वही गीत मैं तेरे लिये...
दृश्य – ०५ : फिल्म ‘एक साल’ हिंदी साइन जगत के
महान कलाकार दादामुनि ‘अशोक कुमार’ कमरे में अकेले हैं तभी उन्हें अहसास होता हैं
कि कमरे में उनकी आत्मा भी हैं जो उन्हें उनकी भूल का अहसास दिलाने ये गीत गा रही
हैं...
करते रहे ख़िज़ाँ से हम सौदा बहार का
बदला दिया तो क्या ये दिया उनके प्यार का
सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया?
दिन में अगर चराग़ जलाये तो क्या किया?
ये तो महज़ चंद तराने ऐसे अनगिनत गीत उस गले से
निकले जिसे उनके रूहानी स्वर के लिए जाना जाता हैं याने कि मखमली आवाज़ के मालिक ‘तलत
महमूद’...
दिलों को छू ले ऐसी आवाजें तो कई सुनाई देती
लेकिन, जो स्पर्श करे आत्मा और देह की सुध-बुध भूलाकर ले जाये किसी दुसरे लोक में
जहाँ हो तो सिर्फ़ चैन और सुकूं के साथ खुद के रूह होने का रूहानी अहसास ऐसा तभी
संभव जब गाने वाला खुद अल्फाजों को महसूस कर डूबकर इस तरह से अपने कंठ से निकाले
कि उनके साथ भीतर का सारा दर्द आँखों के जरिये बह जाये वो तूफ़ान जिसे सीने में
छिपाये फिरते हो हम सबसे छिपाकर न बयां ही किया जा सके और न ही जब्त करना ही
मुमकिन हो तो ऐसी स्थिति में अंदरूनी तनाव से गुजरता व्यक्ति या तो अवसाद में चला
जाता या फिर कोई खतरनाक कदम उठा लेता हैं ।
लेकिन, जिसे पता हो कि इस वेदना को मुक्त कर के
हल्का हुआ जा सकता हैं फिर से नये जोश से भरकर जीवन को उसी तयशुदा बोरिंग ढर्रे पर
नूतन ऊर्जा के साथ न केवल सकारात्मक ढंग से बल्कि तनावरहित होकर जिंदादिली से जिया
जा सकता हैं वो उस उपाय को ही ढूंढेगा फिर भले उसका रास्ता मयकदे को जाता हो या
किसी सूनसान कोने में मगर, जो इस तरह के गलत विकल्पों को न अपनाकर दैविक या
आध्यात्मिक मार्ग को चुनते वो खुद एक दिन आत्मा बनकर परमात्मा में मिल जाते मगर,
कुछ ऐसे भी होते जिनको इनमें से कोई भी राह न भाती तो उनके लिये फिर समजा सेवा या
परहित ही सर्वोत्तम साधन होता उसके बाद भी कुछ ऐसे बच ही जाते जिनको न तो घर और न
ही बाहर राहत मिलती ।
ऐसे लोग हमेशा अपने पास संगीत का ऐसा खजाना रखते
जिसको सुनकर पल भर में अपनी सारी तकलीफों को भूल जाते कि ‘म्यूजिक थेरेपी’ भी
दर्दे-दिल का एक बेहतर इलाज़ पर, यही भी प्रश्न उठता कि ऐसी कौन-सी वो आवाज़ हैं
जिसमें ऐसा शिफ़ा हो कि कर्ण से हृदय में प्रवेश कर सीधे आत्मा में उतर जाये तो एक ही
नाम जेहन में आता वो ‘तलत महमूद’ हैं जिनका गाया गर एक नगमा, हर एक गजल, हर एक
नज्म और तराना सुनने वाले को किसी दूसरी दुनिया में ले जाती जहाँ उसके इर्द-गिर्द
मुश्किलों का नहीं केवल सुकूं का मेला होता हैं यूँ लगता जैसे किसी ने गहरे जख्म पर
नर्म रुई का फाहा रखा दिया हो या जैसे किसी ने मन के सूने आंगन में आशा की कोई
ज्योत जागृत कर दी हो जिसके उजियारे में सभी समस्याओं का समाधान दिखाई देने लगा हो
।
उनकी आवाज़ की इसी कशिश के कारण अभिनय सम्राट और
ट्रेजेडी किंग कहे जाने वाले ‘दिलीप कुमार’ के अधिकांश गानों के लिये उन्हीं को
फिल्म में लिया जाता था जिसकी वजह से लोग उनकी उस आत्मीय आवाज़ को ही दिलीप साहब की
वास्तविक आवाज़ समझते थे जिस तरह ‘मुकेश’ की आवाज़ ‘राज कपूर’ की समझी जाती थी उस
दौर में एक तरह से इन नायकों के लिये गायक भी व्यक्तिगत रूप से किसी कॉम्बो पैक या
किसी कम्प्लीट मूवी पैकेज की तरह निर्धारित होते थे हालाँकि कहानी की जरूरत और
किरदार की मांग के अनुसार अन्य गायकों के द्वारा भी गवा लिया जाता था उसके बावजूद
भी सुपर सितारा के लिये उनके प्रिय सिंगर को ही अनुबंधित किया जाता था पर, ‘तलत महमूद’ की पुरकशिश गायिकी के कारण उन्हें
सभी नायकों के लिये गाने का अवसर मिला और ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ बनकर जैसे उनकी संगीत
साधना को पूर्णता प्राप्त हो गयी ।
आज उसी महान गायक का जन्मदिन हैं तो उन्हें उनके
गीतों और अपने शब्दों के द्वारा ये छोटी-सी आदरांजलि... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ फरवरी २०१८
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