सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-४३ : #प्रेमोत्सव_का_षष्ठम_दिवस_हग_डे


जन्म से पूर्व कोख़ के भीतर ही शिशु ममत्व की ऊष्मा व सुरक्षा के घेरे में रहकर आलिंगन के स्वाद से परिचित हो जाता हैं और उसकी अहमियत को भी महसूस कर लेता हैं जहाँ से निकलकर फिर वो मजबूत बाहों में जाता तो चैन-सुकून की नींद में खो जाता कि दुनिया में इससे बढ़कर सुरक्षित दूसरा कोई स्थान नहीं याने कि बाहुपाश शब्द ही ऐसा जिसका पाश डरता नहीं बल्कि, आकर्षित करता हैं बाजुओं के इस बंधन को कोई भी बंधन नहीं बल्कि प्रेम दर्शाने का एक माध्यम ही समझता हैं कि ये प्रेम की वो भाषा जिसकी कोई व्याकरण या कोई शब्दकोश नहीं इसे तो केवल दिल बोलता और समझता हैं स्पर्श से मन का भाव दूसरे के अंतर में संचारित होकर उसे प्रेम की गहनता का आभास कराता हैं इसलिये माँ भी अपने बच्चे को कभी प्यार से तो कभी नींद में उसके चौंक जाने या एकाएक किसी बात से घबरा जाने पर उसको जब अपनी गोद में समेट लेती तो सब कुछ भूलकर वो इस ममता की इस आश्वस्ति से पुनः अभय होकर निश्चिंत हो जाता एक विश्वास उसके मन में समा जाता कि इस दायरे में कोई भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता हैं

‘आलिंगन’ या ‘गले लगाना’ महज़ एक क्रिया नहीं बल्कि यह एक दवा की तरह भी काम करता हैं जब भी कोई व्यक्ति बीमार हो या फिर किसी का आत्मविश्वास किसी भी वजह से खो गया हो या फिर गहन अवसाद ने किसी के सोचने-समझने की शक्ति क्षीण कर उसको चिडचिडा बना दिया हो तो ऐसे में यदि जिसे वो सर्वाधिक चाहता हैं या जिससे उसे प्रेम की उम्मीद यदि वो अपने पहलू में भर ले तो काफी हद तक बिना इलाज़ के ही उसको मानसिक स्तर पर राहत देकर उसके अंदर की बैचेनी व अनिश्चितता को कम किया जा सकता हैं इसका सफल प्रयोग ‘मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस.’ फिल्म में ‘जादू की झप्पी’ के रूप में दिखाया गया हैं जहाँ फिल्म का नायक ‘मुन्ना भाई’ किसी को भी परेशां देखता तो आगे बढ़कर उसको बेहिचक मूक अपने गले से लगाकर अपनेपन का अहसास दिलाता तो प्रेम का ये मौन प्रदर्शन कठोर-से-कठोर व्यक्ति और कठिन-से-कठिन बीमारी को भी सामान्य बना देता और जिसका कोई नहीं या जिसको इसके ज़ादू की शक्ति का पता नहीं वो भी ये देखकर आश्चर्यचकित रह जाता हैं कि महज़ प्यार से गले लगाना बड़े कमाल की बेमोल दवाई होती हैं ।   

कभी यूँ भी हो कि आप बेहद उदास हो मगर, आपका प्रिय आपके पास नहीं हो या फिर आप एकदम अकेले हो आपका अपना तो क्या कोई दोस्त जैसा सहारा भी न हो तो ऐसे में अपने अंतर की पीड़ा को खत्म करने का अचूक साधन हैं कि किसी दरख्त को कसकर गले लगा ले और जोर से चिल्लाये या फिर हृदय में भरी वेदना को आंसू के जरिये चुपचाप पेड़ से लिपटकर बहा दे ऐसा करने पर आप पायेंगे कि तनाव के जिस झंझावत ने आपको बुरी तरह से तोड़ दिया था या जो दर्द आपको असहनीय लग रहा था अचानक ही कपूर की भांति फिजाओं के उड़ गया और अब केवल आप हैं जो खुद को रुई की तरह हल्का महसूस कर रहे हैं पंछी की तरह हवाओं में उड़ते फिर रहे हैं जिस तनाव या दबाब ने आपके मन को भारी कर दिया था कि आपके अपने ही कदम आपके जिस्म का बोझ नहीं झेल पा रहे थे अब वही आपको लग रहा जैसे कि आपको पंख मिल गये हो और आप जमीन पर नहीं आसमां में उड़ रहे हो तो जिस ‘शय’ में इतनी अधिक सकारात्मक ऊर्जा और आपके दुःख को खत्म करने की ईश्वरीय ताकत हो उसे कम आंकना सरासर आपकी भूल हैं जिसे ठीक करना जरूरी हैं

ये भी एक अजीब विडंबना हैं कि कोई खुद को गले नहीं लगा सकता पर, ये भी एक मजे की बात कि वो दूसरे को ये सुख दे सकता तो जिनको ये नसीब नहीं या जिनको इसके फायदे का पता नहीं उनको बताये-समझाये कि अपनों को ही नहीं जिनका कोई नहीं कभी ऐसे किसी पराये को भी गले लगाये प्यार की खुशबू से सारा गुलशन महकाये इसको गलत अर्थों में न बदलने दे जिसकी वजह से ये विरोध का विषय बन जाये बल्कि, कभी वृद्धाश्रम तो कभी अनाथाश्रम और कभी मानसिक अस्पताल जाकर समाज से कटकर प्यार से वंचित होकर जीने वालों को ‘जादू की झप्पी’ का अहसास करवाये... कभी इस तरह से ‘हग डे’ मनाये... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१२ फरवरी २०१८

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