सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-३६ : #आधुनिक_मीरा_जुथिका_रॉय



हम सबने ‘मीरा’ के भजन पढ़े हैं लेकिन, उन्हें ‘मीरा’ के सुमधुर कंठ से सुनने का सौभाग्य हमें प्राप्त नहीं हुआ तो शायद, इसलिये ईश्वर ने उस आवाज़ को २० अप्रैल १९२० में बंगाल के अविभाजित ‘हावड़ा’ जिले ‘आमता’ नामक स्थान में ‘जुथिका रॉय’ के नाम से फिर एक बार इस धरती पर भेजा ताकि हम उस अमृतमयी वाणी का आस्वादन कर सके और तकनीक के वरदान की वजह से हम सब इतने भाग्यशाली कि जो हम उस वक़्त न सुन सके वो आज ‘यू-ट्यूब’ या ‘इंटरनेट’ के जरिये देख-सुन सकते इसके साथ ही हम अंदाजा लगा सकते कि जब ये स्वर फिजाओं में गूंजते होंगे तो कैसा समां बनता होगा बिल्कुल वैसा ही जैसा कभी ‘मीरा बाई’ के गाने से भक्तिकाल में निर्मित होता होगा जिसको सुनकर जड़-चेतन सभी मंत्रमुग्ध होकर जहाँ के तहां स्थिर रह जाते थे और ये कामना करते थे कि ये स्वर लहरियां इसी तरह इस माहौल को संगीतमय बनाकर सबके अंतर में सुरीलापन घोल दे

उन पर माँ सरस्वती की विशेष अनुकंपा थी तभी तो मात्र १२ साल की उम्र में १९३२ से ही उन्होंने गायन का श्रीगणेश कर दिया और न केवल गाया बल्कि इस कमसिन आयु में उनका प्रथम म्यूजिक अलबम भी रिलीज हो गया जिसने ये जता दिया कि आने वाला समय इस गायिका को न केवल संगीत की दुनिया का सितारा बनायेगा बल्कि, ‘आधुनिक मीरा’ का ख़िताब देकर इतिहास में हमेशा-हमेशा के लिये अमर बना देगा ‘जुथिका रॉय’ की इस अलौकिक प्रतिभा को कवि काजी ‘नजरूल इस्लाम’ और कम्पोजर ‘कमल दास गुप्ता’ ने पहचाना व तराशा जिसकी वजह से १९४० व १९५० में वे देश की शीर्षस्थ गायिकाओं में उनका नाम दर्ज हुआ और उनके गाये भजन ‘घुघंट के पट खोल...’, ‘पग घुंघुरू बांध मीरा नाची...’, ‘तोरे अंग से अंग मिलाके कन्हाई...’, ‘मैं राम नाम की चुड़ियाँ पहनूं...’, ‘मैं तो वारी जाऊं राम...’ इत्यादि ।


१५ अगस्त १९४७ को जब भारत आज़ाद हुआ तो उसके प्रथम स्वतंत्रता दिवस पर देश के पहले प्रधानमंत्री ‘पंडित जवाहर लाला नेहरूजी’ उनसे व्यक्तिगत रूप से विनती की कि, वे जब तक तिरंगा फहराये उन्हें रेडियो पर लगातार अपने गाने को जारी रखना चाहिये जो ये साबित करता कि उनकी आवाज़ असाधारण थी जिसे उसी स्तर का सम्मान देने के लिये इससे उपयुक्त वक़्त और कालखंड दूसरा नहीं हैं । वैसे तो हमने हमेशा यही पढ़ा कि ‘गाँधी जी’ का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेणे कहिये, जे पीर पराई जाणे रे...’ हैं परंतु, ये एकमात्र ऐसी स्वर साधिका जिनके गाये भजनों को ‘गांधीजी’ भी पसंद करते थे और कहते हैं कि जब वे पुणे की जेल में थे तब उनके गाने हर दिन सुनते थे और हर सुबह प्रार्थना सभा की शुरूआत उनके ही गाने बजाकर करते थे किसी भी गायिका के लिये इससे बड़ी उपलब्धि भला और क्या होगी ।   

इतनी बड़ी-बड़ी और महानतम शख्सियतों को अपने गायन से प्रभावित करने वाली इस कोकिला को भारत सरकार ने उन्हे देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्म श्री’ से भी सम्मानित किया जो निश्चित ही उस पुरस्कार से कम था जो उन्हें अपने प्रसंशकों के द्वारा प्राप्त हुआ लेकिन, सरकार का इस प्रकार उनकी कला को मान देना ‘जुथिका रॉय’ को सदैव के लिये सुधीजनों के हृदय में अंकित कर गया ऐसे में आज के दिन ५ फरवरी २०१४ में वे हम सबको छोड़कर चली गयी लेकिन, अपनी आवाज़ के रूप में सदा हमारे बीच उपस्थित रहेंगी... मन से नमन... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०५ फरवरी २०१८

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