बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-३८ : #प्रेमोत्सव_प्रथम_दिवस_रोज_डे


'बसंतोत्सव' याने कि प्रकृति के रंग में रंग जाना सब भूलकर कुछ पल खुद को हसीन नजारों के सुपुर्द कर देना ज़िंदगी की उलझनों और समरसता से बोझिल होकर जो नीरसता या चिड़चिड़ाहट मिज़ाज में समा गई उसे छिटककर खुद से परे उन खुबसूरत दृश्यों से ऊर्जा प्राप्त कर पुनः ऊर्जावान हो जाना ये हमारी संस्कृति हैं । हमारे यहां त्यौहार और प्रत्येक आयोजन के पीछे बड़ी वैज्ञानिक और तार्किक धारणाएं छिपी हुई जिनको न समझकर हम अनजाने में उनकी अवहेलना करते पर, जब कुछ हो जाता या कुछ मनोनुकूल नजर न आता तब फिर लौटकर वहीं आना पड़ता कि ये नियम, ये परंपराएं और ये उत्सव अपने आप में बहुत कुछ समेटे जिनको यदि उसी तरह से नियमानुसार मनाये तो निश्चित ही तन-मन दोनों को फायदा होता कि हर मौसम व ऋतु परिवर्तन के साथ हमारा आहार, विचार, व्यवहार, पहनावा बदलता जिसमें कोताही बरतना हमारे स्वास्थ्य के लिए हितकर न होता इसलिये धीरे-धीरे कुदरत के साथ कदम मिलाकर चलने की सलाह हमारे बुजुर्ग हमको देते हैं । इसी क्रम में बसंत की आमद होते ही वातावरण में ठंडक कुछ कम होने लगती और प्रकृति की इस अंगड़ाई से कलियां खिलकर मुस्कुराने लगती तो भँवरें गुन-गुन कर मंडराने लगते और पेड़ों पर नई कोंपलें तो आम पर बौर आने लगते जिससे आदमी का बौराना भी कुदरतन होता तो प्रेम के इस माहौल में वो भी कुछ-कुछ होता हैं टाइप भीतर महसूस ऐसे में भीतरी और बाहरी दोनों स्तरों पर तालमेल बिठाने के लिए मदनोत्सव का आयोजन किया जाता ।

इसी का पश्चिमीकरण 'वैलेंटाइन वीक' हैं जिसमें 7 फरवरी से 14 फरवरी तक 8 दिन का एक साप्ताहिक कार्यक्रम होता जिसमें हर दिन अहसासों के अलग-अलग मूड को महसूस कर सेलिब्रेट किया जाता और कोई उपहार भेंट कर उसे स्मृति में संजो लिया जाता जिसे मनाया जाने यूं तो बाजारवाद की देन हैं फिर भी किसी के लबों पर मुस्कान लाने या किसी की उदासी को खुशी में बदलने इसे मना लेना कोई गलत नहीं परंतु, जब इसमें स्वार्थ और वासना का समावेश हो जाता तो ये विरोध का विषय बन जाता तो ऐसे में यदि हम इसको अपने भारतीय तरीके से मनाये और इन सातों दिनों में अपनों को छोटी-छोटी सौगातें देकर उनकी सोच को बदलने का प्रयास करें तो इस देशी तड़के से ये भी देशी चाउमीन की तरह हमारा अपना हो जायेगा ।

आज प्रेमोत्सव का प्रथम दिवस जिसे 'रोज डे' कहते मनाया जा रहा तो तो इसे यूं मनाये एक गुलाब लेकर अपने रूठों को मनाये प्रेम प्रतीक के रूप में सुर्ख गुलाब का चयन इसलिये ही किया गया कि ये देखने वाले को सकारात्मकता का संदेश देता जहां इसका लाल रंग उत्साह का संदेश देता वहीं कांटों के बीच हंसता फूल मुश्किलों से लड़ने की प्रेरणा देता और पंखुड़ियां अपनी कोमलता को सहेजने की चुनौती देती तो हरी पत्तियां विपरीत हालातों में भी सुरक्षित रहने की शिक्षा देती याने कि गुलाब महज़ फूल नहीं अपने आप में एक जीवन दर्शन हैं जो किसी की कमजोर मानसिकता को मज़बूत बना सकता तो आज इस सोच के साथ किसी के टूटे मनोबल को जोड़ने का प्रयास करते हुए इसे सार्थकता प्रदान करें हैप्पी रोज़ डे कहकर गुलाब थमाते हुये इसी तरह खिलखिलाने की शुभकामना दे... तो आप सब भी गुलाब की तरह दुनिया के गुलशन में अपनी चमक बिखेरें और मुरझा भी गये तो गम नहीं यादों का हिस्सा बन भविष्य को भी मुस्कुराने की वजह दीजिये इसी शुभकामना के साथ सबको इस दिन की बधाई...☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०७ फरवरी २०१८

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