मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

सुर-२०१८-५१ : #लघुकथा_कौमी_एकता


अख़बार की सुर्ख़ियों पर नजर डालता ‘अक्षत’ अचानक बोल उठा, यार, देख ये क्या छपा हैं फिर एक सिरफिरे ने अजीब बयानबाजी कर दी कि, आज़ादी के समय सिर्फ 17 करोड़ मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाया था और आज तो फिर भी 20 करोड़ मुसलमान हैं तो दूसरा देश क्यों नहीं बना सकते? अरे, ये लोग समझते क्यों नहीं हमारे इस पवित्र देश में मजहब के नाम पर दंगे-फ़साद ही नहीं हत्या जैसी जघन्य अपराध को भी अंजाम देते जबकि, पूरी दुनिया में भारत को ‘कौमी एकता’ की मिसाल के रूप में देखा जाता हैं

उसकी बात सुनकर, ‘सुशांत’ बोला अच्छा पहले तू ये बता ‘कौमी एकता’ के मायने क्या हैं ?

उसकी बात सुनकर पहले तो ‘अक्षत’ ने चौंककर उसे देखा लेकिन, फिर उसके चेहरे पर गंभीरता के चिन्ह देखे तो संभलकर जवाब दिया, अरे यार, वही जो बचपन से हमें बताया गया कि अलग-अलग धर्म के लोगों का एक साथ एक मुल्क में मिलकर रहना और क्या...

उसका उत्तर सुनकर ‘सुशांत’ के चेहरे पर ऐसी हंसी आई जैसे बच्चे के मासूम जवाब से पिता के होंठो पर आती जिससे ‘अक्षत’ झुंझला गया और बोला, अच्छा तो तू ही बता इसके सिवा दूसरा कौन-सा अर्थ होता इसका उसकी इस बात से ‘सुशांत’ ने फिर एक सवाल दागा कि, पहले तू ये बता ‘कौम’ का अर्थ क्या होता हैं?

‘अक्षत’ को लगा जैसे आज ‘सुशांत’ उससे बहस के मूड में हैं तो तुरंत बोला, ‘कौम याने कोई संप्रदाय विशेष या कोई विशेष जाति के लोगों का समूह’ ‘सुशांत’ को लगा जैसे ‘अक्षत’ ने उसके मन की बात कह दी तो प्रतिउत्तर में ताली बजाते हुये कहा, यस, एकदम सही... जब कौम याने एक विशेष मजहब के लोग तो फिर ‘कौमी एकता’ का मतलब विभिन्न समुदायों के बीच एकता किस तरह हो सकता यदि ऐसा होता तो इसी देश के दूसरे हिस्से में केवल एक ही धर्म के लोग नहीं रहते और न कश्मीर में इतना विवाद होता क्योंकि, दूसरों के लिये तो इसका अर्थ सिर्फ अपनों के बीच ही एकता होता हैं यार, सच कहूँ तो देश के साथ इसके मीनिंग भी बदल जाते और बेटा, ये झुनझुना सिर्फ हमारे लिये तो ऐसे ही बजाते रहो हा... हा... हा... ।        

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० फरवरी २०१८


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