बड़ी आसानी से
पाकर अवसर छपने
का
वो भी घर
बैठे-बैठे
बस, चंद जुमलों के टुकड़े
इनबॉक्स में
फेंककर
हथिया लिये
सम्मान भी कई
बिखेर मुस्कान
की चांदनी
तो हो गयी
ग़लतफ़हमी उनको
कि हो गये हम
नामचीन
एकाएक बन गये
बड़े लेखक
उच्च दर्जे के
साहित्यकार
मगर, दिन एक हो गयी मुलाक़ात
जब साहित्य के
बड़े मर्मज्ञ से
तब हुआ अहसास
कि
कविता का 'क' भी
नहीं पता
और समझ लिया
खुद को
हर विधा का
जानकार
बाँटने भी लगे
सबको ज्ञान पर,
अब खोलकर
ग्रंथों के पन्ने
पढ़ रहे पीछे
छूटा हुआ ज्ञान तमाम
जो अगर जान
लेते पहले तो
मुगालते में न
गुज़रते वे दिन-रात ।।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
१६ अप्रैल २०१८
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