रविवार, 8 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-९८ : #आज़ादी_की_मशाल_जलाये #क्रांतिकारियों_को_मार्ग_बताये_मंगल_पांडे




८ अप्रैल १८५७ से १५ अगस्त १९४७ के मध्य महज नब्बे बरसों का अन्तराल हैं जिसे इतना कम करने का श्रेय एक ही क्रांतिवीर को जाता हैं जिसका नाम ‘मंगल पांडे’ था जिसकी एक दहाड़ ने अंग्रेजों को इस कदर भयभीत किया कि उसकी गूँज के कंपन से उन्हें अहसास हो गया कि अब वे इस धरती पर अधिक दिन तक अपने पैर जमाकर नहीं रख पायेंगे क्योंकि, जिन्हें उन लोगों ने कमजोर या बेजुबान समझ रखा था दरअसल वे बेहद शक्तिशाली और बेबाक थे पर, धूर्त नहीं इसलिये उचित समय के इंतजार में बैठे थे

जब उनको ये समझ आया कि व्यापार करने को आने वाले इस देश की अकूत संपदा और समृद्धि देखकर इस कदर ललचा गये कि उस पर कब्जा करने की नीयत से यहाँ बोरिया-बिस्तर डाल के हुकुमत ही करने लग गये तो देर से ही सही भोले-भाले लोगों ने इस चालाकी को समझकर ये तय कर लिया था कि अब मेहमानों को उनके घर भेजना ही पड़ेगा क्योंकि अतिथि भले ही बिना किसी तिथि के आ धमके लेकिन, उनके जाने की एक निश्चित तिथि होना जरुरी हैं अन्यथा वे पराये घर को अपना समझ मकान-मालिक को ही खदेड़ देते हैं

ऐसे में उस तिथि का मुहूर्त निकालने और स्वाधीनता की महाजंग को छेड़ने का सरकार के अधीन काम करने वाले एक सिपाही ने ही बीड़ा उठाया और ऐसी खिलाफ़त की जिसकी वजह से भले उसकी जान चली गयी लेकिन, उसकी आवाज़ न केवल  लाखों के दिल की बात को कहने का जरिया बनी बल्कि, उस तीस वर्षीय नवजवान की हिम्मत, साहस व बलिदान ने भारतीय जवानों की रगों में उस प्रेरणा का संचार किया जिसके बल पर वो आज़ादी जिसका दूर-दूर तक पता न था उस शहादत के बाद महज़ ९० साल के फासले पर सरक आई ।

आज के दिन ‘मंगल पांडे’ को फंसी पर जरुर चढ़ा दिया गया लेकिन, उनकी मौत ने भारतमाता के पैरों में पड़ी गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का पूरा इंतजाम कर दिया जिसका नतीजा कि क्रांति की चिंगारी ने ऐसी ज्वाला भड़काई जिसकी तपन ने उन बेड़ियों को पिघला दिया ऐसे में आज उस वीर को शत-शत नमन जिसकी वजह से ये संभव हुआ... मंगलकारी मंगल पांडे... तुम न होते अगर, तो इतनी जल्दी न हम आज़ादी पाते... वंदे मातरम, जय हिंद...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०८ अप्रैल २०१८

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