यदि तुम जाति,
देश और व्यक्तिगत पक्षपातों से जरा ऊँचे उठ जाओ
तो निःसंदेह तुम देवता के समान बन जाओगे।
---ख़लील ज़िब्रान
जीवन की गहन
समझ और सतत अनुभवों से ही उसके प्रति कोई अनूठा नजरिया बनता जो व्यक्ति को आमजन से
पृथक एक विशिष्ट श्रेणी में रख देता । जीवन की हर छोटी से छोटी बातों व
दिन-प्रतिदिन नजर आने वाले दृश्यों को यूं तो सब देखते लेकिन, कोई एक उनमें वो ख़ासियत या अलहदा पहलू ढूँढ लेता
जो अक्सर, सबको दिखाई नहीं देता क्योंकि,
उसके सोचने-समझने का ढंग सबसे जुदा होता । अक्सर,
ऐसा करने वाला संघर्षों की एक लंबी श्रृंखला से
गुजरता जिसकी महीन चक्की में पीसकर मस्तिष्क की हर एक रज्जू, हर नस और रगों के बंद छिद्र खुल जाते जिनके
जरिये वो हर घटना के समस्त पक्षों पर विचार करने की क्षमता हासिल कर लेता । इसलिये
जब किसी को पढ़ो या किसी की अनुभव भरी बातें सुनो तो उसके पीछे की दृष्टि को समझने
का प्रयास करना चाहिए कि, जो इसने लिखा
या कहा उसी घटना में हमें वो पहलू नजर क्यों नहीं आया या हम उसकी तरह क्यों नहीं
सोच पाये तब हमें अहसास होगा कि ये एक दिन में होने वाला चमत्कार नहीं इसके पीछे
वर्षों की साधना छिपी हुई जिसका परिणाम कि अंतर्दृष्टि व अन्तःचक्षु इस तरह से खुल
गये कि सूक्ष्म से सूक्ष्म बिंदु भी लक्षित होने लगा ।
'खलील जिब्रान'
जिनकी आज हम बात कर रहे वे सिर्फ अरबी, अंगरेजी व फारसी के ज्ञाता ही नहीं महानतम
दार्शनिक और चित्रकार भी थे। जिनके चिंतन व क्रांतिकारी विचारों ने समकालीन
पादरियों और बड़े-बड़े अधिकारीयों की रातों की नींद उड़ा दी और उनकी कलम से निकलने
शब्दों ने उन्हें उन सबका शत्रु बना दिया जिसकी वजह से उन्हें जाति से बहिष्कृत कर
देश निकाला तक दे दिया गया था । उनकी कलम में ये धार अचानक एक दिन में ही नहीं आ
गयी थी इसके पीछे बचपन के संघर्ष भरे दिन और कष्टप्रद माहौल के साथ-साथ देश के
वर्तमान हालात भी थे जिन्होंने उन्हें मितभाषी व एकाकी बना दिया तो मौन की ताकत ने
उनके जेहन में विचारों की ऐसी तीव्र हलचल मचा दी कि अद्भुत ज्ञान दर्शन से युक्त
लघुकथाओं, उक्तियों व सूत्रों का जन्म हुआ जिसे
पढ़कर अक्सर, सोच में पड़
जाते कि किस मनोस्थिति या वस्तुस्थिति से इसका जन्म हुआ होगा । ये कुछ उनकी ही एक
लघुकथा के प्रसंग जैसा हैं...
एक बार,
एक सीप ने अपने पास पड़ी हुई दूसरी सीप से कहा,
मुझे अंदर ही अंदर अत्यधिक पीड़ा हो रही है ।
इसने मुझे चारों ओर से घेर रखा है और मैं बहुत कष्ट में हूँ । दूसरी सीप ने अंहकार
भरे स्वर में कहा, 'शुक्र है!
भगवान का और इस समुद्र का कि मेरे अंदर ऐसी कोई पीड़ा नहीं है मैं अंदर और बाहर सब
तरह से स्वस्थ और संपूर्ण हूँ ।
उसी समय वहाँ
से एक केकड़ा गुजर रहा था उसने इन दोनों सीपों की बातचीत सुनकर उस सीप से, जो अंदर और बाहर से स्वस्थ और संपूर्ण थी,
कहा, 'हाँ,
तुम स्वस्थ और संपूर्ण हो किन्तु, तुम्हारी पड़ोसन जो पीड़ा सह रही है वह एक नायाब
मोती है ।
वाकई, जिसके भीतर कष्ट-पीड़ा का भ्रूण होगा वह मोती ही
जनेगा और जो इससे रहित सिर्फ उसे देखकर टिप्पणी करेगा । अपने मोती जैसे अनमोल रतनो
रूपी विचारों को लिखने उनके पास कोई नोटबुक न होती तो वे उसे रद्दी के कागज़,
सिगरेट के पैकेट या फटे पेपर या गत्ते जो भी
मिलता उस पर ही लिख देते थे । उनकी कलम से निकले कुछ ऐसे ही बेशकीमती मोती जैसे
अनमोल विचार..
★ कुछ सुखों की इच्छा ही मेरे दुःखों का अंश है।
★ अपने सुख-दुःख अनुभव करने से बहुत पहले हम स्वयं
उन्हें चुनते हैं।
★ आप अपने रहस्य यदि पवन पर खोल देते हैं तो
वृक्षों में बात फैल जाने का दोष पवन पर मत मढ़ें।
★ आपका दिल ज्वालामुखी की तरह है। उसमे गुस्सा भरा
है आप अपने हाथों में फूलों के खिलने की उम्मीद भी कैसे कर सकते है।
★ कष्ट सह कर ही सबसे मजबूत लोग निर्मित होते हैं
सबसे महान चरित्रों पर घाव के निशान होते हैं।
उनकी ये उक्ति
तो उन पर ही सटीक बैठती हैं जो अपने घावों को फूल बनाकर लोगों में बांटते रहे और
मात्र 48 वर्ष की आयु में एक कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होकर आज ही के
दिन 10 अप्रैल 1931 को इस दुनिया से उस सूक्ष्म जगत में चले गये जहां की
अनिभूतियों को सफों पर लिखा करते थे ।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
१० अप्रैल २०१८

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