मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११४ : #सीता_सिर्फ_एक_नारी_नहीं_थी #महिला_सशक्तिकरण_का__प्रतिमान_भी_थी





सीताभारतीय नारियों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक ऐसा पौराणिक पात्र जिसके आदर्श चरित्र ने सर्वाधिक स्त्रियों को आकर्षित व प्रभावित किया यही वजह कि वे उनका अनुकरण करती उनके दिये गये सिद्धांतों तथा उनके जीवन मार्ग को आत्मसात कर उनके जैसा ही बनने का प्रयास करती बावजूद इसके कि उन्होंने अपने अर्धांग रामके निर्णय को मूक शिरोधार्य किया चाहे वो उनकी अग्निपरीक्षा को लेकर हो या फिर उनको गर्भवती अवस्था में त्यागने का उन्होंने कभी-भी कहीं भी उनका प्रतिरोध नहीं किया ।

क्योंकि, उनकी अर्धांगिनी होने के कारण वे इसके पीछे की वजह को बेहतर तरीके से जानती थी और उन्हें ये भी अच्छी तरह से ज्ञात था कि वे कोई साधारण आम महिला नहीं बल्कि, एक राजकन्या और राज कुलवधू हैं जिनके सर पर पृथ्वी की समस्त नारी जाति के गौरव का भार हैं उनकी एक छोटी-सी भी गलती या गलत कदम आने वाली कई पीढ़ियों को कुमार्ग की तरफ प्रेरित कर सकती हैं क्योंकि, प्रजा जिन्हें अपना रोल-मॉडलया आदर्शसमझती उनसे वे बेहद ही संतुलित, आदर्श, नैतिक और सदव्यवहार की अपेक्षा करती हैं ।

ऐसे में यदि उसके चरित्र में तनिक भी विपरीत लक्षण या निश्चित मापदंडों के प्रतिकूल कोई भी लक्षण नजर आता तो वो उसे उसके उस उच्च सिंहासन से तुरंत नीचे गिरा देती ऐसे में उनको हर कदम हर एक काम व व्यवहार बेहद सोच-समझकर करना पड़ता सामाजिक व्यवहार का यही भार उनके पति श्रीरामपर भी था जो केवल एक राजकुमार ही नहीं अयोध्या के राजा भी थे तो ऐसे में किस तरह वे अपने राज्य के नियम-कानून या संविधान के विपरीत कोई भी निर्णय ले सकते थे अतः उन्होंने अपने पद, अपने कर्तव्य, अपने राजधर्म के अनुकूल हर कार्य किया ।

जिस तरह आज भी उच्च पद पर स्थित किसी भी अधिकारी या नेता को संविधान की मान-मर्यादा का ध्यान रखना पड़ता अपने पद की गरिमा से वो बंधा होता थी उसी तरह वे सब भी राजकुल से जुड़े होने के वजह से नियमाधीन थे तो उसके अनुसार ही उन्होंने अपने सभी निर्णय लिये जिसे व्यक्तिगत या दुसरे शब्दों में सकुंचित दृष्टिकोण कहे तो अधिक उचित होगा से वे हमको गलत नजर आते लेकिन, यदि हम उस कालखंड के अनुसार उनकी व्याख्या करें तो वे उचित प्रतीत होते जिसे उस वक्त बदलना या धारा के प्रवाह के विरुद्ध बहना संभव नहीं था ।

अन्यथा अपने मनोनुकूल कानून में परिवर्तन करने से प्रजा भी निरंकुश हो जाती तो जो उस समय सही था श्रीरामने वही किया और सीता जी ने भी बिना किसी सवाल के उसका पालन किया मगर, जब अंत में वे उनको लेने आये तो उन्होंने एक पत्नी या एक माँ या एक रानी नहीं सिर्फ एक बेटी की तरह अपनी माँ की गोद में समाने का फैसला किया क्योंकि, उस वक़्त वे राजधर्म की मर्यादाओं से बाहर थी तो एक स्त्री मन की तरह अपने आत्म्सामन को प्राथमिकता देते हुये एक नया कीर्तिमान स्थापित किया ।

जिसने महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में पहला ठोस उदाहरण प्रस्तुत किया इस तरह सीताने जहाँ एक आदर्श बेटी, एक आदर्श बहु, एक आदर्श पत्नी और एक आदर्श माँ के रूप में अपनी भूमिका का पूर्ण रूप से निर्वहन किया तो एक नारी हृदय होने का भी प्रतिमान स्थापित किया जो दर्शाता कि अपने सीमित दायरे में घर की चारदीवारी के भीतर रहने पर यदि वो अपने नारी धर्म का पालन कर सकती हैं तो दहलीज के बहर भी अपनी छवि को स्वच्छ रखते हुये अपने भावी जीवन की दिशा तय कर सकती हैं ।          

वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि सीता नवमीया जानकी नवमीया मिथिलेश के जन्मोत्सवया जनकनंदिनी के प्रकाट्य दिवसके रूप में मनाई जाती तो हम सबकी प्रिय हमें अपने स्त्री धर्म का पाठ पढ़ाने वाली और प्रतिकूल परिस्थतियों में भी बिना घबराये शत्रु का मुकाबला करने वाली, त्यागे जाने पर भी एकाकी अपनी सन्तान को जन्म देकर पालने वाली, अपने आत्मसम्मान को अक्षुण रखते हुये धरती की कोख में समाने वाली और एक साथ कोमल व मजबूत गुणों को अपने भीतर रखने वाली वैदेहीको जन्मदिवस की अनंत शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ अप्रैल २०१८

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