रविवार, 29 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११९ : #बदलती_हर_पल_ज़िंदगी_की_लय #धून_पर_जिसकी_करते_हम_सब_नृत्य




नृत्य ही तो कुदरत है अपने दिल की आवाज सुनिए, वो अपनी ही धुन में नाच रहा है
---बिरजू महाराज

भले ही किसी ने नृत्य की विधिवत शिक्षा न ली हो लेकिन, नाचना हर किसी को आता हैं क्योंकि, हमारे जन्म से लेकर हर एक रस्म-रिवाज और उत्सव में इसका समावेश हैं तो फिर हम इससे अनभिज्ञ किस तरह रह सकते उस पर जब आस-पास प्रकृति की तरफ नजर डालते तो उसकी भी हर एक शय अपनी धून में मगन नजर आती हो तो फिर कौन भला जो अपने थिरकते कदमों को मचलने से रोक सकता हैं इसलिये तो पंछी-पेड़-नदिया ही नहीं फूल-पत्ते-तितलियाँ और झरने-पहाड़-सीपियाँ भी पवन के झोंकों पर लहराते दिखाई देते हैं जो दर्शाता कि सजीव ही नहीं निर्जीव भी इसके जीवंत प्रभाव से अछूते नहीं हैं

बाहर ही नहीं भीतर अपने झांके तो वहां भी अपने हृदय की धडकनों को सुन सकते जो एक विशेष लय पर गिरती-उठती और जिसकी इस संगत पर अदृश्य आत्मा बिन घुंघरू बांधे ही कदमताल करती रहती और जब तक इनकी ये आपसी जुगलबंदी सम पर चलती रहती तब तक तन-मन के मध्य भी आपसी सामंजस्य बरकरार रहता और सकारात्मकता की तरंगें उत्पन्न होती लेकिन, यदि इनके बीच मतभेद हो तो अर्थात आत्मा अपने अंतर की ही आवाज़ को अनसुना करें तो बेकाबू होकर वो अपनी मनमानी करती जिससे नकारात्मकता उत्पन्न होती इसलिये इनके बीच तालमेल जरूरी होता हैं

जीवन के हर एक अहसास में नृत्य शामिल होता हैं जब भी कोई ख़ुशी महसूस हो तो तन-मन अपने आप ही नाचने लगता और यदि कहीं कोई गम मिले या उदासी भीतर प्रवेश कर जाये तो कदमों को झटककर उसे दूर किया जा सकता और हाथों को सांसों की गति के साथ उपर-नीचे करने मात्र से ही बड़े-से-बड़े तनाव को भी दूर किया जा सकता इस तरह यदि देखें तो पाते कि नृत्य भी एक ‘थेरेपी’ की तरह हैं जो हमारे मानसिक अवसाद या भीतरी असंतुलन को खत्म कर हमें राहत की अनुभूति से परिचित करवाती और गहन निराशा के क्षणों में भी आशा की मुस्कान होंठो पर लाती हैं
  
इतना ही नहीं इसके माध्यम से तो हम आध्यात्मिक परमानंद को प्राप्त कर सकते हैं और आत्मा-परमात्मा के मिलन की ऊंचाइयों तक भी पहुँच सकते हैं इसके लिये केवल अपने भीतर उतरने की आवश्यकता हैं जो इतना कठिन भी नहीं लेकिन, सबके वश की बात भी नहीं क्योंकि, हर किसी के अंदर सूक्ष्म जगत को अपने इशारों मात्र से चलाने वाले उस महानतम नर्तक से मिलने की उतनी तीव्र इच्छा भी नहीं तो फिर गहराई में उतरे बिना मोती की जगह पत्थर ही हाथ आते जितनी अधिक इसकी साधना की जाती उतना ही हम अलौकिक जगत की गहनतम अनुभूतियों से गुजरते हैं    
  
'पलक झपकने के साथ ही नाचने वाले आएंगे और जाएंगे, डांस हमेशा कायम रहेगा'
---माइकल जैक्सन
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ अप्रैल २०१८

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