सोमवार, 30 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-१२० : #अप्प_दीपो_भव #जीवन_का_सर्वोत्तम_मंत्र



‘अप्प दीपो भवः’ समिधा लगने से पूर्व ‘गौतम बुद्ध’ ने अपने शिष्यों को अपने बाद सत्य का मार्ग देखने के लिये यह मंत्र दिया था जिस पर चलकर कोई भी व्यक्ति जो कि वास्तव में आत्म साक्षत्कार करना चाहता हैं उनकी ही तरह इस एक संबल के सहारे बिना किसी गुरु के भी उस रहस्यमय ज्ञान को प्राप्त कर सकता हैं और जीवन के अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर भी बिल्कुल उसी तरह अपने ही भीतर से पा सकता हैं जिस तरह उन्होंने स्वयं ही उन्हें खोजा था वो भी तब जब पहली बार जीवन की दुखद सच्चाइयों से सामना हुआ था तो जीवन के उस स्याह पक्ष को देखकर उनके भीतर अनगिनत सवालों के साथ श्वेत रौशनी की एक किरण जाग गयी जिसके बाद उनको राजमहल के बेहिसाब सुख और अनगिनत सुविधायें भी नहीं रोक पाई जीवन के उजाले की तलाश में वो काली रात में ही सब कुछ त्याग कर चले गये वो भी मात्र ३० वर्ष की अल्पायु में जिसे हम यौवन कहते हैं

आज के बहुत से युवा तो इस वय में अपने मकसद तक को नहीं समझते उस पर जीवन के रहस्यों के प्रति तो उनका क्षणिक भी लगाव नहीं तब वो दुर्लभतम ज्ञान किस तरह से प्राप्त हो उसके लिये तो खुद को तपाना पड़ता ध्यान की गहराइयों में जाकर आत्म दीपक को जलाना पड़ता जिसके प्रकाश में हमें वो खजाना भी दिखाई देने लगता जो हमारी ही अंतर की अँधेरी गुफाओं में छिपा हुआ पड़ा रहता जिसे उन्होंने भी आँखें मूंदकर बाह्य जगत से नाता तोड़कर पाया था आज जो युवा पीढ़ी इंटरनेट पर नफ़रत बाँट रही या अश्लीलता फ़ैलाने में लगी वो भला कब ये समझ पायेगी कि किस तरह से वो अपने अनमोल जीवन को नष्ट कर रही उसे तो अपनी ही खबर नहीं फिर भला उसके प्रति जिज्ञासा किस तरह से पैदा होगी जिसे उसने न देखा और न ही जिसके बारे में उसे तनिक भी कोई रूचि ये तो महज़ अपनी आंतरिक और आत्मिक बोध की बात हैं जो किसी को किसी भी पल हो सकता हैं

जिस तरह ‘राजकुमार सिद्धार्थ’ को सिर्फ चार दृश्यों को देखकर हुआ था पर, हमें नित पल-पल अपने हाथों में रखे ‘मोबाइल’ पर बिना कहीं जाये ही उनके दर्शन हो रहे पर, आत्मचक्षु खुल ही नहीं बल्कि बोले तो बाहरी नेत्र ही इतने अधिक चुंधिया रहे कि चश्मे लग रहे या नेत्र ज्योति पर ही खतरे मंडरा रहे ऐसे में अआरा ज्ञान या वे सभी मंत्र व्यर्थ जो उन्होंने अपने आपको खोकर हमें दिये कि हम तो उनके होने पर भी खुद को खो रहे फ़िज़ूल बातों में शायद, किसी दिन हम उनकी तरह ही ये समझ जाये कि जीवन केवल चार दृश्यों का ही खेल हैं उसके पहले हमें उसे सार्थक बनाना हैं अन्यथा दुनिया में हर क्षण आने-जाने की कोई कमी नहीं याद तो सिर्फ वही रहते जो अपनी छाप छोड़ जाता जैसे ‘राजकुमार सिद्दार्थ’ ने ‘गौतम बुद्ध’ बनकर केवल स्वयं का ही नहीं पूर्ण समष्टि का उद्धार किया कुछ ऐसे ही आध्यात्मिक, सामाजिक, जीवन दर्शनों से परिचित कराने प्रतिवर्ष वैशाख महीने में ‘बुद्ध पूर्णिमा’ आती हैं काश, इस बार ये ‘अप्प दीपो भव’ को फलीभूत कर दे हम सबके लिये... यही शुभकामना हैं... ☺ ☺ ☺ !!!        

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० अप्रैल २०१८

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