शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-११७ : #लघुकथा_जाने_मुझे_क्यों_पैदा_किया_?



लगभग पूरी दुनिया के सामने मंच पर जब ‘कामिनीजी’ को उनके सामाजिक कार्यों व योगदान के लिए सम्मानित किया गया तो गर्व से उनकी गर्दन तन गयी और जब पत्रकार ने पूछा कि मैडम आपने अपने पति व अपनी एकलौती बेटी व परिवार वालों के रहते हुए ये सब कैसे मैनेज किया तो उसी तनी गर्दन को कुछ और ऊंचा उठा सर तानकर उन्होंने कहा, मेरे मन मे करने की लगन व जज्बा था तो मैंने सबके साथ मैनेज करते हुए हर काम किया और उसकी परिणाम कि मेरी बेटी आज डॉक्टर हैं

उनके इस जवाब पर उनकी बेटी ‘नियति’ का चेहरा क्रोध से लाल व मुठ्ठियाँ भींच गयी जिसे कैमरे और तेज पत्रकार की नजर ने पकड लिया तो तुरंत उससे प्रश्न पूछा आपको अपनी मम्मी पर कितना गर्व हो रहा उसने उसी मुद्रा में तीखा रिप्लाई किया किया जरा भी नहीं क्योंकि ये झूठ बोल रही हैं अपनी समाज सेवा और एन.जी.ओ. के कामों के चलते इन्होंने न मेरा ध्यान रखा और न ही मुझे समय दिया

मेरा पूरा बचपन तो आया की गोद मे बीता मेरी हर पहली हरकत, हर अदा को उसने देखा इन्हें पता ही नहीं मैं कब बड़ी हुई स्कूल या कॉलेज गयी ये तो मगन रहती अपने बेकार के कामों में मैं कब घुटने चली कब दांत टूटे कब किलकारी भरी कब साईकल सीखी इन्हें नहीं पता जब इनको फेमिना बनकर महिला सशक्तिकरण का झंडा ऊँचा कर यही सब करना था तो न जाने क्यों इन्होने मुझे पैदा किया शायद, ऐसे ही किसी दिन को क्रेडिट देने और ऐसा कह वो मुंह फेरकर वहां से चली गयी

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ अप्रैल २०१८

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