मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-१०७ : #जम्मू_कश्मीर_हमारे_देश_का_हिस्सा #चलती_वहां_मगर_उनकी_अपनी_दंड_संहिता




१ जनवरी २०१३ शाम ५ बजकर ७ मिनट पर तत्कालीन मानव संसाधन राज्य मंत्री ‘शशि थरूर जी’ ने उस वक़्त के सबसे जघन्य और शर्मनाक बलात्कार कांड पर पीड़िता जिसे कि ‘निर्भया’ नाम दिया गया था के वास्तविक नाम को गुमनाम रखने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुये एक ट्वीट किया...
 
Wondering what interest is served by continuing anonymity of #DelhGangRape victim. Why not name & honor her as a real person w/own identity?

(मुझे समझ नहीं आता की पीड़ित को गुमनाम रख कर क्या मिलेगा। क्यों न उसे उसके नाम और असली पहचान के साथ सम्मान दिया जाए?)

5:07 PM - Jan 1, 2013

उसी के दो मिनट बाद ही ५ बजकर ९ मिनट पर उनका अगला ट्वीट अगली कड़ी के रूप में सामने आया जिसका मन्तव्य था कि हमें पीड़िता का असली नाम सबके सामने लाना चाहिये और नया कानून भी उसके नाम से ही बनाना चाहिये...


Unless her parents object, she should be honoured & the revised anti-rape law named after her. She was a human being w/a name,not just a symbol

(अगर उसके माता-पिता को आपत्ति न हो तो उस महिला को सम्मान देना चाहिए और रेप से जुड़ा जो नया कानून बनाया जा रहा है उसका नाम उस महिला के नाम पर रखना चाहिए। वो महिला भी एक इंसान थी, अपने नाम के साथ, वो सिर्फ एक प्रतीक नहीं थी।)

5:09 PM - Jan 1, 2013

इन दोनों ट्वीटस के बाद राजनीतिक हलकों और ‘सोशल मीडिया’ पर इस बात को लेकर बहस चालू हो गयी जिसमें ज्यादातर लोगों की दलील थी कि इससे पीड़ित बेटी की पहचान जाहिर हो जाएगी और ऐसा करना गैरकानूनी है यहाँ तक कि महिला आयोग ने भी इसे दुरुस्त नहीं माना उसका कहना था कि ऐसा करने से भारतीय समाज बलात्कार पीड़ित या उसके परिवार को कभी सहज भाव से नहीं स्वीकारेगा । भारतीय कानून भी इसकी इजाजत नहीं देता, किसी भी यौण शोषण की शिकार महिला का नाम या पहचान बताना एक दंडनीय अपराध है आईपीसी की सेक्शन 228A के मुताबिक ऐसा करने पर दो साल की सज़ा हो सकती है और दिल्ली के दो अखबारों के खिलाफ दिल्ली गैंगरेप पीड़ित की पहचान का खुलासा करने पर केस तक दर्ज हो चुका है । उस वक़्त कांग्रेस ने कहा है कि इससे पार्टी का कुछ भी लेना-देना नहीं है और यह थरूर के व्यक्तिगत विचार हो सकते हैं इस तरह उसने इस विवाद से अपना पल्ला छुड़ा लिया ।


इसके बाद २६ जुलाई २०१६ की घटना हैं जब दिल्ली महिला आयोग की चीफ ‘स्वाति मालीवाल’ के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया और उन पर रेप पीड़िता लड़की की पहचान उजागर करने का आरोप लगा सूत्रों के अनुसार बुराड़ी इलाके में 14 वर्षीय किशोरी से रेप का मामला प्रकाश में आया था पीड़ित किशोरी की इलाज के दौरान मौत हो गई थी तो इस मामले में दिल्ली महिला आयोग की चीफ ‘स्वाति मालीवाल’ ने बुराड़ी थाने के एसएचओ को चिट्ठी लिखकर कार्रवाई की मांग की थी। दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि आईपीसी की धारा 228 के तहत केस दर्ज किया गया है क्योंकि, चिट्ठी में मालीवाल ने बच्ची के नाम को उजागर किया इतना ही नहीं उन्होंने चिट्ठी को व्हाट्सएप पर अपलोड कर मीडिया को भेज दिया था।

इसी साल इसी तरह के एक और ट्वीट ने हंगामा मचा दिया जब बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष ‘तेजस्वी यादव’ ने सोशल मीडिया पर ‘गया’ में दरिंगदी का शिकार हुई बच्ची की फोटो और नाम उजागर कर दिया तब ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ ने इस मामले में गंभीर आपत्ति दर्ज की तथा आयोग की मेंबर ‘सुषमा साहू’ ने कहा कि रेप विक्टिम की पहचान बताना अपराध है, इसलिए महिला आयोग ‘तेजस्वी यादव’ को नोटिस भेजेगा।

ये हाल ही की घटना हैं जब ११ मार्च २०१८ को महिला आयोग सदस्य, कांग्रेस और शिवसेना के पदाधिकारियों ने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए बाल चिकित्सालय में भर्ती हैवानियत की शिकार चित्तौड़गढ़ के भदेसर निवासी 5 साल की मासूम बच्ची और उसकी मां के फोटो सार्वजनिक कर मीडिया को जारी कर दिए संवेदनहीनता की हद तो यह है कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बने महिला आयोग की सदस्य ‘सुषमा कुमावत’ ने मासूम और उसकी मां की फोटो sushmakumawat105@gmail.com ईमेल से खबर प्रकाशित कराने के लिए मीडिया तक को भेज दी। वहीं भदेसर के पूर्व प्रधान और कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह चुंडावत ने भी बच्ची और उसकी मां के फोटो krishnapalsinghmlsu@gmail.com ईमेल से भेज सार्वजनिक कर दिए। ऐसे ही शिवसेना ने gaurav.nagdashivsena@gmail.com से बच्ची की मां की फोटो मय प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी जब दैनिक भास्कर ने उनसे इस बारे में सवाल किया था तीनों के ही पदाधिकारियों ने गलती स्वीकार करते हुए कहा कि-हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई है।

यूँ तो हम सब ही जानते कि भारतीय कानून इसकी इजाजत नहीं देता और किसी भी यौन शोषण की शिकार महिला का नाम या पहचान बताना एक दंडनीय अपराध है तथा आई.पी.सी. के सेक्शन 228A के मुताबिक ऐसा करने पर दो साल की सज़ा हो सकती है । यहाँ तक कि दिल्ली के दो अखबारों के खिलाफ दिल्ली गैंगरेप पीड़ित की पहचान का खुलासा करने पर केस तक दर्ज हो चुका है । फिर भी वर्तमान में देश में एक ऐसा प्रकरण नाम सहित न केवल देश को बदनाम कर रहा बल्कि, एक धर्म विशेष को भी टारगेट कर अपनी विकृत मानसिकता को ज़ाहिर कर रहा ऐसे में ये जानना जरूरी हैं कि बलात्कार पीड़िता का नाम लेना गैर-क़ानूनी हैं या नहीं और किन परिस्थितियों में ये लिया जाना कानून का उल्लंघन नहीं होता

इस तरह की परिस्थिति में पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन अथवा ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी द्वारा, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है या पीडित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है या जहां पीड़ित व्यक्ति की मॄत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकॄतचित्त है वहां पीड़ित व्यक्ति के निकट संबंधी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से नाम प्रयुक्त किया जा सकता है लेकिन, जो कोई व्यक्ति उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना कोई बात मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा । केवल किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में कोई अपराध नहीं है ।


ऐसे में वे सभी जो कि इस तरह की मुहीम चला रहे या इसमें भागीदार बन रहे स्वयं सोच ले कि कितना बड़ा अपराध कर रहे हैं अपने कानून की खुलेआम खिल्ली उड़ा रहे जिनकी यदि शिकायत हो जाये तो दंड भी हो सकता अतः किसी भी घटना में अंधानुकरण करने या भेड़ की तरह किसी के पीछे आँख मूंदकर चलने से पहले ये सोच ले कि जो हम कर रहे कहीं वो कानूनन जुर्म तो नहीं ? इसके अतिरिक्त जिसके लिये नाम लेकर लड़ रहे उनके यहाँ तो हमारा कानून तक नहीं चलता हमारे देश का हिस्सा होकर भी वे खुद को अलग समझते और वहां अपनी अलग न्याय व्यवस्था चलाते हैं

सर्वाधिक गौर करने लायक बात हैं कि भारत भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code, IPC) भारत के अन्दर (जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर) भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा व दण्ड का प्रावधान करती है किन्तु, जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर रणबीर दण्ड संहिता (RPC) लागू होती है।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१७ अप्रैल २०१८

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