रविवार, 1 अप्रैल 2018

सुर-२०१८-९१ : #नींद_क्यों_नहीं_आती?



 मूंद ली पलकें
बंद कर लिये नैन
फिर भी भीतर
मन हरपल बेचैन
कि नींद को
सरोकार नहीं इनसे
न दरकार कि
शैया पर लेटे कोई
और वो भर ले
उसे अपने आग़ोश में
सबको जीवन मे नहीं मिलता
सुख का ये वरदान
अनगिनत मखमली बिस्तरों
कोमल सिरहनों पर
बुलाते रहते निंदिया रानी को
और वो आती नहीं
जबकि थके बदन से चूर
कोई एक मज़दूर
धरती के बिछावन पर
पत्थर पर सर रख
यूं बेख़बर सो जाता पल में
ज्यूँ शिशु माँ की गोद में ।।
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०१ अप्रैल २०१८

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