बुधवार, 12 जून 2019

सुर-२०१९-१६३ : #जब_तक_गरीबी_रहेगी #बालश्रम_की_मजबूरी_भी_होगी



आज ‘विश्व बालश्रम निषेध दिवस’ जिसका उद्देश्य बच्चों से जबरन काम कराने से रोकना एवं उनको अपने बचपन को जीने का नैसर्गिक हक दिलाना है क्योंकि, इन नन्हे-नन्हे फूलों से ही तो देश का चमन गुलज़ार और आगे चलकर इन्हें ही तो इस देश की बागडोर सम्भालना है तो जब तक उनकी नींव मजबूत न होगी उनको शिक्षा व सभी सुविधायें हासिल न होगी वे किस तरह से इस जिम्मेदार को उठा पायेंगे लेकिन, तमाम कानूनों व सरकार की नीतियों के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे क्यों ???

यदि इस सवाल का जवाब खोजे तो ज्ञात होता कि सरकार के ये सारे प्रयास भी मिलकर गरीबी के दैत्य से लड़ नहीं पा रहे आज़ादी के 72 बरसों बाद भी गरीबी हटाओ के भरपूर नारों के साथ भी देश में गरीब थे और आज भी है तथा कल भी रहेंगे कि जिस दिन ये गरीबी समाप्त हमारे राजनेता फिर किसे लुभायेंगे किसकी बिसात पर अपनी दुकान जमायेंगे इससे बेहतर उनके पास दूसरा विकल्प नहीं ऐसे में किस तरह से हम ये कल्पना कर सकते कि एक दिन अवश्य गरीबी खत्म होगी और जब गरीबी है बचपन भी मजदूरी करने को अभिशप्त रहेगा कि बच्चों द्वारा काम किये जाने की सबसे महत्वपूर्ण वजह ‘गरीबी’ ही है

कोई माता-पिता ये नहीं चाहते कि उनकी सन्तान पढ़ने-लिखने की उम्र में कलम की जगह बोझ उठाये या किसी के घर पर झाड़ू-पौंछा लगाये या किसी के बर्तन धोये या फिर किसी दुकान पर छोटू बनकर मालिक का हुकुम बजाये ये तो उनके हालत या मजबूरियां होती जो वे अपने बच्चों को वक़्त से पहले ही जिम्मेदारी के उस चक्र में फंसा देते जो आजीवन घूमता रहता और इसमें फंसने वाला अभिमन्यु की तरह इससे बाहर निकलने का मार्ग नहीं जानता और इसे ही अपनी नियति समझकर इसके समक्ष घुटने टेक देता कुछ ऐसे भी होते जो ऐसी परिस्थति में भी अपने जीवन को संवार लेते और इन चुनौतियों को स्वीकार कर अपने आत्मबल के दम पर अपने जीवन की दिशा मोड़ लेते है

इस तरह के आर्थिक अभाव की वजह से चंद अपराध की अँधेरी गलियों में भी फिसल जाते जहाँ उनका हर तरह से शोषण किया जाता जो उन्हें शातिर अपराधी में बदल देता ऐसे में सरकार को चाहिये कि बालश्रम की जड़ पर प्रहार करें न कि कानून बनाकर निश्चिन्त रहे कि इसके भय से लोग बच्चों को अपने यहाँ काम पर न रखेंगे बल्कि, वे तो खुद अपना पैसा बचाना चाहते इसलिये बच्चों को ही काम पर रखते ताकि, उन्हें अधिक मेहनताना न देना पड़े ऐसे में जागरूकता व दिवस के बाद भी बड़े-बड़े घर हो या कारखाने या होटल्स या दुकानें या फिर कोई भी संस्थान आपको ज्यादातर बच्चे की काम करते दिखाई देंगे कि इनसे काम करवाना, इन पर शासन करना तथा इन पर विश्वास करना आसान होता है

 ऐसे में इस दिवस को सार्थकता देने केवल सरकार के भरोसे बैठे रहना हमारी भी गलती है अतः हमें बच्चों को न केवल इससे बचना है बल्कि, ऐसे प्रयास भी करना है कोई मजबूरी या हालात किसी पालक को इतना विवश न कर दे कि अपने जिगर के टुकड़े को छाँव देने की जगह कड़ी धूप में घर से बाहर निकालना पड़े तो उनकी आर्थिक सहायता के लिये उन्हें ऐसी सरकारी योजनाओं व एन.जी.ओ. से परिचित करवाना है जिसकी मदद से वे निश्चिंत होकर बच्चों को स्कूल भेज सकें न कि इस चिंता में घुलते रहे कि कल भोजन मिलेगा या नहीं हालाँकि, सरकार हर तरह से उनकी सहायता कर रही फिर भी स्थिति में यदि सुधार नहीं हो तो जिम्मेदार हम सब ही है  
        
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून १२, २०१९

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