शनिवार, 15 जून 2019

सुर-२०१९-१६५ : #अपने_अधिकारों_के_प्रति_सचेत_रहे #कर्तव्यों_से_भी_मगर_न_कभी_डिगे



10 जून सोमवार, कोलकाता के एक सरकारी एन.आर.एस. मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक 75 साल के बुजुर्ग ‘मोहम्मद सईद’ को दिल का दौरा पड़ने के बाद एडमिट कराया गया जहां ‘मोहम्‍मद सईद’ को दूसरा दिल का दौरा पड़ा । उसी रात को ड्यूटी पर तैनात जूनियर डॉक्टर्स ने सईद को जीवनरक्षक इंजेक्शन लगाया, लेकिन वे उसकी जान नहीं बचा पाए शायद, कंडीशन अधिक गंभीर हो चुकी थी । ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ अनेक लोगों के साथ अनेकों बार हुआ होगा जब उनके प्रिय को अस्पताल ले जाने के बावजूद भी बचाया जाना संभव नहीं होगा पर, यहाँ इसके बाद हालात बिगड़ गये परिजन अस्‍पताल में ही हंगामा करने लगे । ये भी कोई नई बात नहीं कभी-कभी स्थिति काबू से बाहर हो जाती और मरीज के साथ आये लोग उसका चले जाना सहन नहीं कर पाते तो झडप हो जाती जो कि स्वाभाविक भी है डॉक्टर्स भी उसकी मनोभावनाओं को समझकर इसे सामान्य तरीके से ही लेते हुये बुरा भी नहीं मानते पर, इस बार मामला कुछ अधिक ही बिगड़ गया क्योंकि, मरीज के परिजनों ने अपने इलाके से कुछ लोगों को बुलाया ।

फिर रात में करीब 11 बजे दो ट्रकों में भरकर लोग अस्‍पताल में पहुंचे जिन्होंने ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर ‘परिवह मुखर्जी’ और ‘यश टेकवानी’ की बुरी तरह पिटाई कर दी । इस वजह से ईंट की चोट लगी और मुखर्जी के सिर में फ्रैक्चर हो गया जिसके बाद उनको एक निजी नर्सिंग होम में एडमिट कराया गया परन्तु, जब इस घटना की खबर अन्य डॉक्टर्स को लगी तो उन्होंने इसके विरोध में डॉक्टर हड़ताल करने का निश्चय किया कई डॉक्टर्स ने इस्तीफ़ा भी दे दिया जिसमें देश भर के डॉक्टर्स उनके साथ जुड़ते गये और ये राज्य की जगह राष्ट्रीय स्तर का मामला बन गया । उसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी बयानबाजी से डॉक्टर्स के जख्मों पर मरहम लगाने की बजाय नमक छिड़क दिया और इसने राजनीतिक रंग भी ले लिया सबने अपने-अपने तरह से प्रतिक्रिया दी किसी ने डॉक्टर का साथ दिया तो कोई उनके विरोध में भी अपना मत रखने सामने आया पर, जो भी ये तो तय है कि ये मामला किसी भी व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति के अधिकारों के खिलाफ है

इसने डॉक्टर्स को ये अहसास कराया कि वे अपने परिसर में सुरक्षित नहीं है और यदि अभी इसका प्रतिरोध नहीं किया गया तो आगे से कोई भी इसी तरह से उनके साथ हिंसा का प्रयोग कर सकता है इसमें उनके पेशे से जुड़े सभी लोगों ने उनके पक्ष में खड़े होकर उन्हें समर्थन दिया और ये साबित किया कि एकजुटता से कोई काम किया जाये तो नेता क्या सरकार से भी अपनी बात मनवा सकते है आखिरकार, मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी को ये स्वीकार करना पड़ा कि ये उनकी धमकी या अल्टीमेटम से उनकी बात नहीं मानने वाले तो वे उनकी शर्तें मानने को भी तैयार हो गयी पर, वे इतने से राजी नहीं है पश्चिम बंगाल लगातार सुर्ख़ियों में बना हुआ वजह चाहे जो भी हो वहां जिस तरह से तानाशाही का माहौल बना हुआ वो संविधान के मुताबिक भी सही नहीं है । ऐसे में डॉक्टर्स के द्वारा उठाया गया ये कदम एक निर्णायक फैसला है जिसने सरकार को ये जता दिया कि वे भले सरकार के अधीन काम करते लेकिन, उनके गुलाम नहीं, न ही मूक भेड़ें जो उनके अनुशरण करती रहेंगी ।       

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून १५, २०१९

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