रविवार, 30 जून 2019

सुर-२०१९-१८० : #टेलेंट_छिपा_अंडर_बुर्का #छोड़ा_बॉलीवुड_फ़ॉर_खुदा




रविवार की खुशनुमा सुबह एक ऐसा पैगाम लाई जिसमें फतवे का कहीं जिक्र नहीं था लेकिन, वो अपने आप में ही मन से लिखा गया कोई खुला ख़त नहीं बल्कि, किसी दबाब में या किसी के द्वारा जबरन लिखाया गया पत्र जरूर लग रहा था ऐसा इसलिये क्योंकि, उसकी अधिकांश बातें किसी मनोभाव या ख़्वाहिश को ज़ाहिर नहीं कर रही थी बल्कि, एकाएक ही स्वप्रेरणा या कुरान की किसी आयत से प्रभावित होकर फिल्मी दुनिया को छोड़ने का ऐलान करने वाली ये पोस्ट एक तरह से उस संकीर्ण सोच या बुर्के का ही समर्थन करती प्रतीत हो रही थी जिससे बाहर निकलने न जाने कितनी मुस्लिम लड़कियां, औरतें नकाब के पीछे अपने आंसू छिपाये रहती फिर भी उन्हें उसके बाहर झांकने तक का मौका नहीं मिलता है और, एक कमसिन ‘जायरा वसीम’ है जिन्हें कि आमिर खान की मेगा मूवी ‘दंगल’ से न केवल अपने हुनर को दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ बल्कि, गॉडफादर व मेंटर के रूप में उनका अमूल्य मार्गदर्शन व सहयोग भी मिला जिसकी बदौलत वे उनकी अगली फिल्म ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ में बड़ी भूमिका भी पा सकी और ट्रोल किये जाने पर जवाब देने की हिम्मत भी दिखाने लगी

जिस तरह के दबंग किरदार उन्होंने निभाये उनमें केवल उनके काल्पनिक पात्र के ही दर्शन नहीं हुये बल्कि, कहीं न कहीं वो लड़की भी दिखाई दी जो अपने आस-पास के दमघोंटू माहौल व परिवार की बंदिशों, भेदभाव के खिलाफ अपने रोष को भी छिपाये बैठी है जिसे निकलने का मार्ग यदि मिला तो उसकी शख्सियत पूरी तरह उभर आयेगी मगर, ये अचानक जो सामने आया वो इतना अप्रत्याशित व हैरत में डालने वाला है कि इसके मायने समझ नहीं आ रहे है जिसकी एक वजह तो ये भी है कि फिल्मी कलाकारों को इस तरह से लाइम लाइट में आने एवं कंट्रोवर्सी खड़ी करने की भी आदत है जो कि इनके प्रोफेशन का ही हिस्सा है और इनकी नई फिल्म ‘स्काई इज पिंक’ आ रही तो हो सकता ये उसके प्रमोशन का ही कोई पार्ट हो दूसरी वजह कि जो कारण उन्होंने बताये उस हिसाब से तो किसी भी मुस्लिम कलाकार का इस तरह से काम करना गलत व मज़हब विरोधी है तब तो जो इस पेशे से जुड़े सभी खुदा को छोड़कर गलत राह पर चल रहे होंगे और, तीसरी महत्वपूर्ण वजह कि एकदम से उन्हें ये अहसास किस तरह हुआ जैसा कि हम देख रहे मुस्लिम युवाओं को अल्लाह के नाम पर बरगलाकर आतंकी तक बनाया जा रहा और इस तरह से उनके दिमाग में ये बात ठूंस दी जाती कि दूसरों को मारकर खुद की जान देकर अपराध जैसे काम करने को भी वे दीन की सेवा समझते तो कहीं ऐसा ही कुछ इनके मामले में भी तो नहीं कि किसी ने इनके जेहन को इस तरह से बदल दिया कि जो कल तक एक्टिंग को अपना ख्वाब बता रही थी आज लिख रही कि जब से वे इस दुनिया में आई अपनी अंतर्रात्मा से लड़ रही और 5 साल बाद ये समझी कि अभिनय करना गलत है ।

‘जायरा’ ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि, “5 साल पहले उनके बॉलीवुड में कदम रखने के फैसले ने किस तरह उनकी लाइफ को बदल दिया है उनको जो भी पहचान मिली है वो उससे बहुत खुश हैं फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ने के बाद उन्हें लोगों का काफी प्यार और सपोर्ट मिला लेकिन, एक्ट्रेस बनने की वजह से वो अपने इस्लाम धर्म से दूर होती जा रही हैं पिछले पांच सालों से वो अपनी अत्मा से लड़ रही हैं एक कामयाब पहचान मिलने के बाद भी वो खुश नहीं हैं क्योंकि, ये वो पहचान नहीं है जो वो अपनी जिंदगी से चाहती हैं उनको लंबे समय से उन्हें ऐसा लगा रहा है कि वो कुछ और ही बनने की जद्दोजहद कर रही हैं और उन्हें एहसास हो गया है कि उनकी नई लाइफस्टाइल, फेम और कल्चर में वो खुद को फिट तो कर सकती हैं, लेकिन वो इस प्लेटफ़ॉर्म के लिए नहीं बनी हैं हालाँकि, बीते कुछ समय से खुद को समझाने की कोशिश कर रही थीं कि वो जो कर रही हैं वो सब सही है लेकिन, उन्हें आखिरकार समझ आ गया है कि अपने धर्म इस्लाम की बताई हुई राह पर चलने में वो एक बार नहीं बल्कि 100 बार असफल रहीं हैं ऐसे में वो अपनी छोटी से जिंदगी में इतनी लंबी लड़ाई नहीं लड़ पा रही हैं और वो बहुत सोच समझकर बॉलीवुड को अलविदा कहने का फैसला ले रही हैं”

यूँ तो ये उनका जीवन वो इसे जैसे चाहे वैसे जिये, जो चाहे वही फैसले ले किसी को कोई हक नहीं बनता उन पर ऊँगली उठाने या उनकी बातों का पोस्टमार्टम करने का मगर, चूँकि उन्होंने इसे सार्वजानिक किया और सोशल मीडिया पर सबके साथ साँझा किया अतः सबको अपने हिसाब से उस पर अपनी राय देने का इख़्तियार है जिस तरह से उन्होंने इस्लाम के नाम पर अपना निर्णय लिया वो बेहद चौंकाने वाले है क्योंकि, यदि इस नजरिये से देखा जाये तो फिर किसी भी मुस्लिम का फिल्मों में काम करना इस्लाम के हिसाब से गलत है जबकि, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उनका ही कब्जा नजर आता चाहे कहानीकार हो या गीतकार या फिर निर्देशन या अभिनय सब जगह उनका साम्राज्य है जब से हिंदी सिने जगत का आगाज़ हुआ अधिकांश कलाकार मुसलमान ही रहे चाहे वो दिलीप कुमार हो या रहमान या फिर मीना कुमारी, मधुबाला या फिर नर्गिस या नौशाद नाम कई है चंद ही लिखे जो नामचीन है इनमें से किसी को कभी ये ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ जो चिंताजनक है एक तरफ ‘मलाला युसुफजई’ जैसी बहादुर लडकियाँ जो अपने कौम की लडकियों की शिक्षा हेतु लड़ने का जोखिम ही नहीं लेती गोली भी खाती है दूसरी तरफ ‘तसलीमा नसरीन’ भी है जो फतवों के बावजूद भी लिखना नहीं छोड़ती वो भी उस दौर में जबकि, ये सब बेहद कठिन था अब तो काफी सकारात्मक व सहयोगी वातावरण है जहाँ आपकी आवाज़ को समर्थन देने बहुत से मानवतावादी और नारीवादी सन्गठन खड़े उसके बाद इस तरह का का कायराना निर्णय बहुत से सवाल खड़ा करता है कहाँ तो मुस्लिम समाज की अधिकांश लडकियाँ इनको देखकर अपना रोल मॉडल समझकर घर से निकलने की प्रेरणा प्प्राप्त कर रही होगी और कहाँ अब उनके अम्मी-अब्बू उन्हें ‘ज़ायरा’ की मिसाल देकर मजहबी बनने की सलाह देंगे इस तरह उन्होंने उनकी आज़ादी पर पाबंदियां बढ़ा दी है उन्हें यदि सचमुच सन्यास लेना ही था तो वे ख़ामोशी से भी अलविदा कर सकती थी यहाँ तो बड़े-से-बड़े अदाकार चले गये तो काम न रुका फिर इनके न होने से क्या फर्क पड़ता लेकिन, इस तरह ढिंढोरा पीटकर जाना जताता कि या तो कोई दबाब है या ये अपनी तरह दूसरों की जिंदगियों को भी चारदीवारी में बुर्के के भीतर बंद कर देना चाहती है । कश्मीर में बहुत कुछ ऐसा चला रहा जो तब समझ में आता जब कोई हादसा घटित हो जाता ‘शाह फैसल’ भी कुछ दिनों पूर्व प्रशासनिक सेवा से त्यागपत्र देकर राजनीती में आये और अब ‘ज़ायरा’ का ये कदम बहुत कुछ कहता जिसे समझने में काफी वक़्त लगेगा तब तक इसे पहेली ही समझा जाये जिसे हल करना सबके वश की बात नहीं है ।

इतना तो यकीन है कि यदि ऐसा कुछ किसी हिन्दू अभिनेत्री ने लिखा होता कि वो धर्म के लिये फिल्में छोड़ रही है या भगवान श्रीराम से दूर हो रही इसलिये उसने अभिनय को गुडबाय कहने का मन बना लिया है तो सारी बड़ी बिंदी गैंग, वामपंथी, सो काल्ड मानवतावादी, फर्जी सेकुलर और फेक मीडिया ने अब तक हंगामा बरपा दिया होता कि हिन्दू धर्मवादी लडकियों को बहका रहे, उनकी प्रतिभा पर अंकुश लगा रहे है जो सरासर गलत है । वे तो तीज-त्योहारों पर वर्किंग वीमेन के ससुराल जाकर वहां के रीति-रिवाज निभाने एवं चार दिनों के लिये घुंघट लेने पर ही इतनी हाय-तौबा मचाती मानो इसके बाद उन पर ही सर पर पल्लू रखने का नियम लागू हो जायेगा पर, कभी बुर्का, तीन तलाक या हलाला पर भूले से भी कलम नहीं चलाती न ही आतंकवाद के मज़हब को स्वीकारने तैयार होती पर, जहाँ मोब लिंचिंग की बात हो तपाक से धर्म निर्धारण कर देती उनकी इस सलेक्टिव अजेंडा वाली अदा ने जिस तरह से उनको बेपर्दा किया वैसा इसके पहले नहीं किया था तो सोशल मीडिया का ये लाभ तो है कि यहाँ कौन किधर, किसके खिलाफ़  सबकी पहचान हो जाती है ।
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून ३०, २०१९

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