शनिवार, 22 जून 2019

सुर-२०१९-१७२ : #लघुकथा #नारी_न_मोहे_नारी_के_रूपा




प्रिया, क्या ये भी तुम्हारी दुकान से कपड़े खरीदती है ?

प्रिया के बुटीक में घुसते हुये मिसेज खोसला ने बेहद आश्चर्य से ये प्रश्न किया ।

प्रिया ने उसके चेहरे पर दिखने वाले असमंजस के भाव और आश्चर्य से फैलती नजरों का पीछा किया तो वो समझ गयी ये क्या कहना चाहती है फिर भी अनजान बनकर सहजता से पूछने लगी, कौन भाभी आप किसकी बात कर रही है ???

अरे, वो माया मेरी काम वाली जो मेरे घर में झाड़ू पौंछा करती है उसकी बात कर रही अभी वही तो निकली न तुम्हारी दुकान से ।

ओह, आप उसकी बात कर रही मैं समझी नहीं भाभी, ये दुकान तो सबके लिए खुली इसलिये कोई भी आ सकता कोई बंधन नहीं है ।

अरे वाह, ऐसे कैसे आ सकता है । हममें और उसमें कोई फर्क ही नहीं है क्या ? वो हमारी बराबरी करेगी, हमारे जैसे कपड़े पहनेगी, जहां से उसकी मालकिन खरीदती वहां से लेगी फिर तो लगता मुझे यहां से ड्रेसेस खरीदना बन्द करना पड़ेगा ।

प्रिया ने तुरंत बात बदलते हुये कहा, भाभी आपको याद है अभी दो-चार दिन पहले ही आप दिल्ली में महिलाओं के लिये फ्री मेट्रो की सुविधा के पक्ष में सोशल मीडिया में आवाज़ उठा रही थी ।

बिल्कुल, याद है अच्छी तरह से याद है वो एक अच्छी पहल इसलिए मैं उसका समर्थन कर रही थी और आज भी कर रही हूं पर, तुझे वो बात अभी इस वक़्त क्यों याद आ गई?

वो इसलिए कि कुछ महिलाएं इसका विरोध करते हुये आपकी पोस्ट पर लिख रही थी कि, अब तो मजदूरी और घरेलू काम करने वाली औरतें भी हमारे साथ बैठेंगी जो एकदम गलत है । तब आपने मुझसे कहा था कि ये महिलाएं किस मुंह से स्त्री समानता और सशक्तिकरण की बात करती है जब ये महिला-महिला में भेद कर रही । छि, ऐसी ओछी मानसिकता लोगों में कैसे आ जाती मुझे समझ में नहीं आता मेरा ख्याल है आज आप आपको अपने उस सवाल का जवाब मिल गया होगा ।

उसकी बात सुनकर मिसेज खोसला को लगा जैसे किसी ने अचानक उनके सामने आईना रख दिया हो ।
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून २२, २०१९

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