शुक्रवार, 14 जून 2019

सुर-२०१९-१६४ : #रक्त_न_करे_कभी_भेदभाव #वक्ते_जरूरत_बचाये_सबकी_जान




आये दिन कुछ ऐसा देखने में आता जो दर्शाता कि जिस तरह कुदरत ने सबको समान रूप से जमीन, आसमान, सूरज, चांद, बारिश और हर एक शय बिना किसी भेदभाव के दी उसी तरह उस परमपिता परमेश्वर ने भी सबके भीतर दौड़ने-भागने वाले लहू के रंग में भी कोई भेदभाव नहीं किया केवल उनका वर्ग अलग हो सकता फितरत सबकी मगर, एक सी हो होती उसके बिना शरीर की कार्यप्रणाली संचालित नहीं होती इसलिये ये नसों के द्वारा लोगों को जोड़ने का काम करता है

जिसकी बानगी किसी भी दृश्य में नजर आ सकती है

दृश्य - ०१ : रक्तदान शिविर में बड़ी हलचल थी बड़ी संख्या में युवा रक्तदान करने आये थे जिसे जमा कर के रखा जा रहा था और आश्चर्य की बात की बाहर से अलग-अलग समाज, समुदाय व धर्म को मानने वालों का खून एक ही समूह होने के कारण एक ही पैकेट में रखा जा रहा था जिसमें कोई भी भेदभाव नजर नहीं आ रहा था और न ही कभी खून की आवश्यकता होने पर किसी ने ऐसी मांग रखी कि उसे उसी व्यक्ति का रक्त चाहिये जो उसके मज़हब से संबंध रखता हो और ये कोई नई बात नहीं सभी जानते कि सबके शरीर एक समान पंचतत्वों से बने जिसको बनाने वाला भी वही एक है जो ऊपर बैठा फिर भी लोग अपने-अपने समुदाय के लिये लड़ाई-झगड़ा करते ऐसे में रगों में दौड़ने वाला लहू ही है जो उनको धर्म निरपेक्षता व अमन का पाठ पढ़ा सकता है ।

दृश्य - ०२ : यदि रक्तदान दिवस पर मानवीयता के लिये अपने रक्त का खुशी-खुशी दान करने वाला कोई ऐसी शर्त रख दे कि ये उसी व्यक्ति को दिया जाये जो सभी धर्मों का सम्मान करता हो, सबको इंसान समझता हो और जिसकी नजरों में किसी तरह का कोई भेदभाव न हो क्योंकि, कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आती जब किसी अमीर को किसी गरीब का रक्त दिया जाता जो उसकी जान बचाता पर, उसे ये अहसास नहीं दिलाता कि भले, उसने पैसों के दम पर खून का इंतज़ाम कर लिया हो मगर, अब उसके भीतर जो बह रहा वो कम से कम उसके भीतर ये भाव तो जगा ही सकता कि उसने जिसे इंसान नहीं खुद से कमतर माना और हमेशा उसी दृष्टि से देखा लेकिन, आज जरूरत के समय वही काम आया तो ये ख्याल ही उसके भीतर समता का नजरिया सृजित कर सकता है ।

दृश्य - ०३ : लहू तो नफरतों को भी खत्म करने का काम करता अलग-अलग धर्म के दो लोग जो आपस में एक-दूसरे को नापसन्द करते हो यहां तक कि एक-दूसरे की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करते हो पर, अनजाने में कभी ऐसा हो जाता जबकि, उन दोनों को आवश्यकता पड़ने पर एक-दूसरे का रक्त दिया जाता और जब इस बात का खुलासा होता तो जो कभी सूरत देखना तक गंवारा नहीं करते थे अब साथ बैठकर खाते-पीते और दोस्ताना निभाते है याने कि खून ही ऐसा जो लोगों को इस तरह से खून के रिश्तों में बांध सकता है ऐसी तासीर सबकी कहाँ क्योंकि, यही जिसकी जरूरत अमूमन सबको कभी-न-कभी तो जरूर ही होती है तब ये अपनी इस अनेकता में एकता वाली विशेषता का प्रदर्शन करता है ।

एक ‘रक्त’ ही है जिसमें इतनी खासियत होती कि वो व्यक्ति को इंसान बनाकर उसके भीतर इंसानियत जगा सकता है इसलिए ‘रक्तदान दिवस’ ही नहीं मनाना बल्कि, इसके गुढ़ सन्देशों को भी समझना है जो हमारे अंदर बहता हुआ रक्त हमसे हरदम कहता है कि

सबके भीतर मैं ही समाया
मैंने ही हर सोये अंग को जगाया,
समझो मेरी तासीर दोस्तों
भेदभाव की तोड़कर दीवारें सारी
मैंने सबको एक बनाया ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून १४, २०१९


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