मंगलवार, 18 जून 2019

सुर-२०१८-१६८ : #रानी_लक्ष्मी_बाई_सम_बनो #अपने_अधिकारों_के_लिये_लड़ो



झांसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद जब अंग्रेजों ने रानी के पास फरमान भिजवाया कि दत्तक पुत्र को वे वैध नहीं मानते अतः कोई वारिस न होने के कारण उनके राज्य झांसी को सरकार अपने अधीन करना चाहती है और रानी के लिए पेंशन की व्यवथा करने का प्रस्ताव भेजा पर, रानी को ब्रिटिश शासन की ये नीति पसन्द नहीं आई कि जिस पर हमारा राज और जो हमारा अपना हिस्सा उसे किस अधिकार से बाहर से आये विदेशी उनसे छीन लेना चाहते है  केवल, इसलिये कि उन्होंने जबरदस्ती हमारे देश पर कब्जा किया हुआ है यदि ऐसा ही चला तो इस तरह वे हर प्रान्त को अपने कब्जे में लेकर संपूर्ण भारतवर्ष को हमेशा गुलाम बनाकर रखेंगे इसलिये अभी इनका प्रतिरोध जरूरी नहीं तो कल को तो ये हमें ही अपने वतन से बाहर निकालकर खदेड़ देंगे अतः विपरीत परिस्थितियां व संसाधन न होने के बाद भी उन्होंने वीरतापूर्वक अपने हक के लिये लड़ने का कठोर फैसला लिया औऱ किसी भी दबाब के आगे न झुकने के उनके इस निर्णय ने दर्शाया कि नारी को यदि सत्ता सौंपी जाये तो फिर चाहे जो परिस्थिति आये वो पीछे नहीं हटती अपनी जिम्मेदारी को पूरे तरीके से निभाती है

इसलिये उन्होंने भी जब ये देखा कि जंग के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं तब भी घबराई नहीं क्योंकि, तलवार-ढाल तो उसके बालपन के खिलौने थे जिसको किस तरह से इस्तेमाल करना वे अच्छी तरह जानती थी तो उन्होंने जान गंवाने की अंतिम स्थिति में भी अपने फैसले पर कायम रही आखिर, बात अधिकार और हक की थी जिसके लिए हर कीमत कम है तो उस जमाने में जबकि, नारी को अबला या घर की लाज या कोमल-कमजोर कहा जाता था उन्होंने उस कल्पित छवि को न केवल तोड़ा बल्कि, ऐसी नवीन मजबूत इमेज बनाई कि स्त्री के लिये प्रयुक्त होने वाले तमाम शब्द कम पड़ गये शब्दकोश में ढूंढने पर भी कोई ऐसा विशेषण नहीं मिला जो उनके अदम्य साहस, शौर्य व वीरता को परिभाषित कर सके क्योंकि, उन्होंने रणक्षेत्र में अपने योद्धकौशल ही नहीं बुद्धिमता का भी भरपूर प्रदर्शन किया जैसा कि उसके पूर्व इस तरह से देखने में नहीं आया था

इसलिये जब उनकी बहादुरी को अभिव्यक्त करने का समय आया तो उनके लिये ‘मर्दानी’ जैसा एकदम नूतन विशेषण गढ़ा गया जिसमें मर्दानगी की तरह झूठा दम्भ नहीं बल्कि, एक नारी के पराक्रम की कहानी समाई हुई थी जो स्त्रियों को ऐसी ही प्रतिकूल परिस्थिति आने पर निडरता के साथ सामना करने की प्रेरणा देता है आज ही वो तिथि थी जब उन्होंने बड़ी बहादुरी के साथ अंग्रेजों से लड़ते हुये अपने प्राण गंवाये उनका स्मरण हमें ये बल देता कि हम भी उनकी तरह बनने का संकल्प ले यदि पहले से ही उनके पदचिन्हों पर चले होते तो आज हमें महिला सशक्तिकरण की जरूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि, सौ सालों से अधिक का ये समय हमको बराबरी के दर्जे पर खड़ा कर चुका होता जिसके लिये अभी भी न जाने कितना इंतजार करना पड़ेगा वाकई, जो अपने इतिहास को नकारते या उससे कोई शिक्षा ग्रहण नहीं करते उनकी सहायता भला फिर कौन करेगा ये अतीत के पन्नों से निकले ये दिन हमें यही याद दिलाने तो आते है  
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून १८, २०१९

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