बुधवार, 26 जून 2019

सुर-२०१९-१७६ : #शान_से_जीवन_जियो #नशा_रूपी_ज़हर_मत_पियो




जितने तरह के नशे होते उतनी ही उन्हें करने की वजहें भी होती लेकिन, ये खुद पर निर्भर कि हम क्या चुनते है । कुछ लोग गम में तो कुछ खुशी में इसे अपनाते पर, महसूस करेंगे तो पायेंगे कि किसी भी अहसास को कम करने या बढाने में इसकी कोई भूमिका नहीं होती । ये हमारे भीतर की सोच और उससे निकले रसायन ही होते जो नशा करने के विचार मात्र से हमारे मन के भावों में परिवर्तन कर देते है । ऐसे में यह ज्ञात होता कि सबसे बड़ा नशा या मदहोशी का आलम भीतर उठने वाले ख्यालों की दिशा बदलकर ही जगाया जा सकता जिसे हम जबरन मेहनत से कमाये पैसे व अनमोल सेहत गंवाकर प्राप्त करते है ।

हमारी सोच ही होती जो हमको हंसाती या रुलाती नशा तो उस अनुभूति से गुजरकर उसे जीने ही नहीं देता और एक ऐसा निराशापूर्ण माहौल पैदा कर देता जिससे हमारी चेतना ही भ्रमित हो जाती है । फिर इसके वशीभूत होकर हम कोई भी गलत कदम उठा सकते क्योंकि, अच्छे-बुरे का निर्देश देने वाली पवित्र आत्मा की आवाज़ इस शोर में सुनाई ही नहीं देती इसलिए ज्यादातर आपराधिक घटनायें नशे की स्थिति में ही घटित होती जिन्हें रोका जाना सम्भव होता है । जितने भी नशीले पदार्थ या नशे की सामग्री है उनसे अधिक प्रेरक नशा तो प्रकृति में बिखरा पड़ा जिसकी जगह हमने उत्तेजक द्रव्यों को जीवन में अपनाकर सिर्फ अपना ही नहीं अपने आस-पास रहने वालों का जीवन भी नरक बना दिया है ।

जिस पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण में हमने ये अपनाया ये नहीं देखा कि उनके क्लाइमेट के अनुसार ये उनके लिए दवा समान और वे इसे उसी तरह से लेते पर, हमने तो इसे स्टेटस सिंबल बना दिया जिसके बिना हमारी पावरफुल इमेज में कुछ कमी लगती है । हमसे बड़ा बेवकूफ कौन होगा जो नशे के पैकेट्स पर चेतवानी पढ़कर बोले तो आने मौत का पैगाम पढ़कर भी स्वयं उसे चुनते और अपनी मेहनत की कमाई से उसे खरीदकर खुशी-खुशी उस जहर को पीते भी है । एकमात्र सरकार ही है जो यदि चाहे तो इस पर लगाम लगा सकती है क्योंकि, वही तो जो इसे खुलेआम बेचने की अनुमति देती इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो इसे वैधानिक चेतवानी के साथ बिक्री का आदेश देती है

ये कुछ समझ नहीं आता कि एक तरफ तो सरकार की इसे बेचने की परमिशन देती तो दूसरी तरफ इसकी रोकथाम और इसके निवारण हेतु कार्यक्रम भी चलाती और केंद्र भी खुलवाती जो नशे की आदत से छुटकारा दिलाते है इस तरह नशे के माध्यम से केवल सरकार ही नहीं व्यापारी, डॉक्टर और वे संस्थायें भी लाभान्वित होती जो नशामुक्त समाज बनाने का दावा करते हुये खोली जाती इस तरह ये बहुत सारे लोगों के लिये आय का जरिया बनकर अपने आपको सेफ ज़ोन में कर लेता है इसकी वजह से क्या इसे पूर्णरूप से समाप्त नहीं किया जाता तो ऐसे में इस तरह के दिवस मनाने या बनाने का कोई औचित्य नजर नहीं आता क्योंकि, जब तक नशा मौजूद इसका निरोध असंभव है

आजकल तो ‘मोबाइल’ से बढ़कर कोई नशा दिखाई नहीं देता जिसकी गिरफ्त में हर उम्र और हर वर्ग का इन्सान नजर आता जिससे छुटकारा पाने का भी कोई उपाय नहीं क्योंकि, कोई इसके बिना रहना ही नहीं चाहता है । याने कि सबकुछ जानते हुये भी व्यक्ति खुद उस राह पर चलता जो उसे विनाश की तरफ ले जाती ऐसे में अपने आप पर नियन्त्रण व नैतिक मूल्यों की शिक्षा ही है जो उसे बचा सकती क्योंकि, नशा नाश की जड़ तो नशा करने वाले भी जानते मगर, फिर वो उसे अपनाते है । वर्तमान में हम संस्कारों से दूर हो जा रहे और नशे के करीब होते जा रहे हर एक व्यक्ति किसी न किसी नशे का शिकार जो उन नशीले पदार्थों के सेवन से बचा वो सेल फोन के स्क्रीन में गिरफ्तार है ।

हर कोई इनके दुष्प्रभाव के बारे में जानता फिर भी वो खुद को इनसे बचा नहीं पाता कि उसका खुद पर ही नियन्त्रण नहीं जिसके लिये ‘ध्यान’ व ‘योग’ मदद कर सकते तो उसकी शरण में जाये और सेहत बनाने का नशा अपनाये जिसे अपनाकर हर बुराई खुद-ब-खुद हमारे करीब नहीं आती है । नशा करना ही है तो अपने परिजनों से स्नेह का करें जिसके बाद आप अपने आप ही इससे इन्कार करेंगे क्योंकि, प्रेम में डूबे हुये प्रेमी पर फिर कोई भी नशा असर नहीं करता है । ‘नशा’ करने के सकारात्मक विकल्पों को चुनने पर नकारात्मक को ‘न’ कहना मुश्किल नहीं होगा तो आज ‘अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस’ पर यही संकल्प तो लेना है जिससे कि इस दिन को मनाना ही बंद हो कि ये कोई ख़ुशी का दिन तो नहीं है ।       

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून २६, २०१९

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