सोमवार, 3 जून 2019

सुर-२०१९-१५३ : #प्रकृति_सावित्री_और_शनि #पूजा_से_इनकी_हर_बाधा_टली



सनातन धर्म आदिकाल से जो कह रहा या कर रहा यदि हम उन पर ही अमल करते चलते तो आज पूरी दुनिया में जो समस्याएं विकराल मुंह खोले खड़ी है वे या तो होती नहीं या इस स्तर तक नहीं पहुंचती कि मानव जीवन के लिए ही खतरा बन जाती । समस्त वेद-पुराण पढ़कर देख ले वहां आपको प्रकृति पूजा का वर्णन और धरती के सभी जीव-जंतुओं के साथ सह-अस्तित्व की भावना का उल्लेख अवश्य मिलेगा क्योंकि, कुदरत की गोद में खेलकर जो अनुभव ऋषि-मुनियों व तपस्वियों को हुये उनके आधार पर उन्होंने आंकलन कर लिया कि यदि हम इन भावों को लेकर आगे बढ़ेंगे तो निश्चित ही सबका विकास होगा और सब एक-दूसरे को सहयोग देकर अपनी महत्ता साबित करते हुये अपने अस्तित्व को भी कायम रख सकेंगे ।

इस नेक विचारधारा या बोले सर्वे भवन्तु सुखिनः का ये सूत्र हर किसी की जीवन रक्षा से जुड़ा न कि स्वार्थ की इस भावना से संचालित होता कि खुद के अस्तित्व को बचाये रखने अन्य को समाप्त कर देना ही उचित है जैसा कि बाद के कालखण्डों में सामने आया कि जैसे-जैसे आधुनिकता बढ़ी अपने घर, व्यापार व लालच को पोषित करने में यदि कोई आड़ बना तो उसे मिटाकर भी अपना राज कायम किया । जिसका नतीजा कि धरती, आकाश, जल, नदी, तालाब, झरने, पहाड़ जैसी प्राकृतिक सम्पदाएँ ही नहीं छोटे-छोटे कीट-पतंग से लेकर बड़े-बड़े जानवर तक काल के गाल में समा गये शेष रहा तो केवल स्वार्थी इंसान जिसे अपने सिवाय किसी से कोई मतलब नहीं वो सिर्फ अपने इन्द्रिय सुख की ही सोचता है ।

हमारे पूर्वजों ने अपने परिवेश, वायुमण्डल, अंतरिक्ष, जंगल, वन, पेड़-पौधों व पशु-पक्षी के बारे में न केवल सोचा बल्कि, ऐसी व्यवस्था बनाई कि हम उनको नगण्य या अनुपयोगी समझकर मार न डाले उनकी जरूरत व उपयोगिता को समझकर उनसे तारतम्य मिलाकर आगे बढ़े पर, ऐसा हुआ धीरे-धीरे अनमोल प्रजातियां लुप्त होने लगी और अब तो जो नाममात्र की बची उन्हें भी आदमी अपने लालच की भेंट चढ़ा रहा । चींटी जैसी नन्ही जान ही नहीं भारी-भरकम हाथी-गैंडे भी पता नहीं कब गायब हो गये जिधर देखो बड़ी-बड़ी इमारतें और आदम जात ही नजर आती तमाम आपदाओं व ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्यायों से भी जो चिंतित होने की जगह ऐसी मशीन या यंत्र का निर्माण करती जिनसे तापमान का लेवल कम होने की बजाय अधिक बढ़ जाता पर, उसे तो केवल अपने सुख व सुविधाओं से मतलब जिसके लिए अब वो अपनों की बलि लेने से भी नहीं हिचकता है ।

काश, उसने अपनी लौकिक परंपराओं का ही पालन किया होता उन्हें उनकी महत्ता के साथ मनाया होता तो परिदृश्य कुछ और ही होता जिसका विचार कर बड़ी दूरदर्शिता के साथ हमारे पुरखों ने सोमवती अमावस्या, वट सावित्री व शनि जयंती जैसे पर्वों का विधान रहा जिनसे एकरसता खत्म होने के साथ-साथ प्रकृति ही नहीं हमारे पारिवारिक संबंधों की भी रक्षा होती और ग्रह-नक्षत्र भी हमारे अनुकूल होते कि हम सबकी प्रसन्नता हेतु कोई न कोई रीति-रिवाज अपने घरों में स्थापित करते पर, अब तो जो बचे उन्हें भी वामपंथी व तथाकथिय बुद्धिजीवी अपने एजेंडे के जरिये मिटाने में लगे हुए है । ऐसे में हमको ही अपने इन तीज-त्यौहारों के बारे में जानकारी रखकर इनको बचाना होगा और इनकी सार्थकता समझनी होगी जिनका उद्देश्य हमें मूढ़ या कूपमंडूक नहीं बल्कि, वैश्विक स्तर पर इतना महान बनाना है कि जिस तरह कभी विदेशों से लोग यहां की सभ्यता-संस्कृति को पढ़ने-जानने यहां आते थे उसी तरह फिर से आये न कि हम उनका अंधानुकरण कर अपनी ही पहचान खोकर उन जैसे बन जाये ।

ज्येष्ठ माह की अमावस्या आज सोमवार में पड़ने से जहां सोमवती अमावस्या का शुभ मुहूर्त बना वहीं शनिदेव महाराज जी का जन्मदिवस होने से शनि जयंती का कारक भी बना और वट-सावित्री के व्रत से इसका महत्व कई गुना बढ़ा तो हम सब मिलकर इन तीनों ही पर्वों का आनंद ले और दूसरों को भी बताये कि हम बरगद की पूजा करने वाले वो पहले देश है जिसने हरियाली की महिमा बहुत पहले ही समझ ली थी और आपसी रिश्तों में नवीनता लाने वट सावित्री का उपवास करते तो शनि ग्रह को देवता मानकर आकाशीय पिंडों को भी अपने पक्ष में करना जानते है बाकी देशों में तो खुद के लिए जीना ही सर्वोपरि और ये सोच अब हमारे यहां भी पांव पसार रही इससे पहले कि ये समूची ही हम पर कब्जा जमा ले हमें उसे उखाड़ फेंक देना चाहिए और वापस वेदों की दुनिया में चलकर उसी अलौकिक जीवन जीने की पद्धति को दोबारा सीखना चाहिये इससे पहले कि हम नष्ट हो जाये यही तो इन दिनों की सार्थकता है ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून ०३, २०१९

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