जितनी
बीमारियों के नाम हम आज सुनते है, उतने पहले कभी
नहीं सुने गये वो भी तब जबकि, हम आधुनिक रूप
से अत्यधिक विकसित हो चुके और हर तरह की सुविधाओं से संपन्न है । फिर भी जितना हम
आगे बढ़ रहे उतना ही हमारी उम्र घट रही, उतनी
ही जल्दी बुढ़ापे के चिन्ह चेहरे पर नजर आ रहे और उतना ही हम तनावग्रस्त अवसाद भरा
जीवन जी रहे आखिर क्यों ???
अगर, इन सवालों के जवाब ढूंढे तो जवाब एक ही होगा कि
मॉडर्न लाइफ स्टाइल को अपनाते हुये हम प्रकृति से दूर होते गये और खुद को एक
कृत्रिम वातावरण में कैद कर लिया जहाँ शुद्ध हवा तक की भी गुजर नहीं है । यदि
विश्वास नहीं आ रहा तो अपने वातानुकूलित कमरे पर नजर डाले जहाँ ठंडक का अहसास तो
है मगर, किस कीमत पर जब तक ये अहसास होता तब
तक हम अनेकानेक रोगों से ग्रसित हो चुके होते है । पहले हम जी-जान लगाकर पैसा
कमाते और जब उसको भोग करने का समय आता तो पाते कि शरीर उस अवस्था में रहा नहीं तो
उसे पुनः पहले जैसा बनाने उस कमाई को इलाज में लगा देते है । यदि इसी बात को पहले
ही समझ ले तो न केवल अपनी सेहत का ध्यान रख पायेंगे बल्कि, सुखों के जो साधन हमने जुटाये उनका भी उपयोग कर पायेंगे न कि मन को
मारकर परहेजी जीवन जीने को मजबूर होंगे जैसा कि आजकल अधिकांश लोग नजर आते है ।
हमने न केवल नेचर को ही नष्ट किया बल्कि, अपने
पूर्वजों के ज्ञान को दरकिनार कर दिया जो गहनतम बातों को भी कहावतों में ढालकर
सूत्र रूप में व्यक्त कर गये ताकि, हम उन्हें भूले
नहीं इतना दोहराये कि वो आत्मसात हो जाये जैसे कि यही ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर
में माया’ इसमें जीवन का सार छिपा है ।
हमने तो
पाश्चात्य सभ्यता को ऐसा अपनाया कि खाओ, पीओ
मस्त रहो, माय लाइफ माय चॉइस जैसे स्लोगन हमारे
आदर्श वाक्य बन गये ऐसे में इसके सिवाय क्या होता कि हम तरह-तरह की बीमारियों से
घिर जाये क्योंकि, भोगवादी
संस्कृति का यही परिणाम है । यदि हम अपनी ही पुरातन शैली पर अमल करते चलते तो
तुलसी, नीम, पीपल, हल्दी जैसे
कुदरत के वरदानों से दीर्घायु, सूर्य उपासना
से तेजस्वी एवं सात्विक खान-पान के सहज नियमों से निरोगी रहते । अब पक्के घरों में
हम अपने पड़ोसियों से ही नहीं शुद्ध हवा, रौशनी
व पेड़-पौधों से भी दूर हो गये अन्यथा पहले तो कच्चे आंगन में नीम की दातुन,
तुलसी को जल व सूर्य को अर्ध्य देकर सुबह की
शुरुआत करते थे । ज्यादातर काम जो आजकल मशीनों या अन्य इलेक्ट्रिक यंत्रों से होने
लगे वे सब हाथ से किये जाते जो हमको स्वस्थ रखते थे और भोजन भी चूल्हे पर बिना
कुकर के बनता तो बहुत-सी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें अपने आप दूर हो जाती है ।
तनाव, सरदर्द, अवसाद, चिंता, रक्त दबाब जैसी आम बीमारियाँ तो उस वक़्त प्रचलन
में ही नहीं थी जो आज हर किसी को परेशान कर रही ऐसे में समझ आता कि आधुनिक जीवन
शैली ही हर बीमारी की जड़ है ।
हमारे
ऋषि-मुनियों में प्रकृति के निकट रहकर ये जान लिया था कि यदि लम्बा स्वस्थ जीवन
जीना है तो प्राकृतिक तरीके से जीना ही एकमात्र तरीका है इसलिये उन्होंने कुदरत की
हर एक शय के गुणों का गहन अध्ययन कर ‘योगसूत्र’
की रचना करते हुये सम्पूर्ण विश्व को निरोगी
जीवन जीने का रहस्य अद्भुत ‘योग’ दिया । जिसके अधिकांश आसन प्रकृति से ही ग्रहण
किये गये है चाहे वे ‘वृक्षासन’
हो या ‘ताड़ासन’
या फिर ‘मकर’,
‘मर्कट’, ‘सिंह’, ‘कूर्म’,
‘शशक’, ‘उष्ट्र’,
‘अर्धचन्द्र’ या ‘मंडूक’ या कोई भी आसन सभी का स्त्रोत निसर्ग है । ये तो
हम ही है जिसने प्रकृति की जगह कृत्तिमता को प्राथमिकता दी तो फिर वही होना था जो
हो रहा ऐसे में अब भी सम्भल जाये तो सम्भव कि हम स्वस्थ शतायु बन सके क्योंकि,
हमारे पूर्वजों ने इसे अपने जीवन से साबित किया
जिसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं ये तो स्वतःसिद्ध है । हमारी इस विद्या को विदेशों
ने भी स्वीकार किया और 21 जून को ‘विश्व योग दिवस’
मनाने की स्वीकृति प्रदान की जिससे हमारा देश ही
नहीं संस्कृति भी गौरवान्वित हुई है अतः हम इसके मूल को समझे उसके अनुसार चले
रिजल्ट अपने आप ही अपने भीतर दिखने लगेंगे ।
अगर, हम रोज प्रातःकाल योग करते है तो जिस तरह मोबाइल
की बेट्री रिचार्ज होती उसी तरह हम भी ऊर्जा से भरपूर होकर दिन भर के लिये रेडी हो
जाते और इससे हमारी शारीरिक, मानसिक ही नहीं
आध्यात्मिक उन्नति भी होती कि हमारी आत्मा सीधे परमात्मा के नेटवर्क से जुड़ जाती
और हम उसके सिग्नल्स को रिसीव करने लगते जिनको शोर-शराबे भरी आपाधापी में सुन पाना
संभव नहीं होता और यही वो वजह जिसने नैतिक मूल्यों का पतन किया व अपराध को बढ़ावा
दिया है । अब इन सबसे निजात पाने का एकमात्र मार्ग ‘योग’ है जिसे अपने
जीवन का हिस्सा बनाकर हम ‘साधारण’
से ‘असाधारण’
बन सकते है अतः इस ‘योग दिवस’ पर इसे अपनी
लिस्ट में शामिल करें और रोज बिना नागा, बिना
किसी बहाने के योग करें भले शुरुआत में बेमन या अनिच्छा से ही करें पर, जान ले कि एक बार शुरू किया तो फिर इसके जादू से
बचना मुश्किल होगा इतना सकारात्मक प्रभाव ये हम पर डालता है इस उद्देश्य से ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के दो दिन पूर्व से ही इस श्रृंखला का आगाज किया जो जागरूकता पैदा
करेगी यही उम्मीद है ।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
जून १९,
२०१९
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