ओ मानसून,
तेरे बिना...
नदी, तलाब, पनघट
पेड़-पौधे, पशु-पंछी
सब
राह निहार रहे होकर
बैचेन
काले मेघ तो आ रहे
बरसे बिन मगर, जा
रहे
उमस ही बढ़ा रहे
धरती को भी जला
रहे
होने लगे सब बड़े
व्याकुल
कहाँ हो तुम ?
.....
तरसते नयन
आसमान को ताकते
आंसू भी अब न
रहे शेष
सूख गये सारे
तेरी एक बूंद
के प्यासे
सुनो, कर रहे करुण
पुकार
टूट न जाये उनकी
आस
बुलाते तुझे हे
मेघ
होकर सब बड़े आतुर
कहाँ हो तुम ??
.....
ढूंढ रहे
इधर-उधर, चारों
तरफ
एक तुझे ही हम
जाने किधर हो
गये गुम
आ जाओ बरसो झमाझम
कर दो हर कण नम
तुम्हें वसुंधरा
की कसम
देखो जरा नीचे
बैठे सब बड़े गुमसुम
कहाँ हो तुम ???
..... ●●●●●
#Mansoon_Please_Come_Soon
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© ® सुश्री इंदु
सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून २५, २०१९
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