5 जून का महत्व
इसलिये सर्वाधिक क्योंकि, ये हमें अपने आस-पास के वातावरण के प्रति सचेत करता
जिसमें कि हम जी रहे और जिसके बिना हमारा जीवन संभव नहीं फिर भी हम है कि सबसे
जरूरी उस तत्व से अनजान रहते और उसे ही जहरीला बनाते फिर जब दम घूटने लगता तो एक-दूसरे
पर दोषारोपण करने लगते । जबकि, इसे प्रदूषित करने में हम सबका बराबर
योगदान और हम इसे किस स्तर तक खतरनाक बना चुके इसके लिये आये दिन हमारे वैज्ञानिक
व शोधकर्ता लगातार हमें लेटेस्ट अपडेट देते रहते जिनकी जानकारी होना बेहद जरूरी । अन्यथा, एक दिन हम भविष्य की उन घातक संभावनाओं को भी पार कर लेंगे जो
फ़िलहाल इन अध्ययनों में व्यक्त की जा रही इस तरह अपनी मौत को हम खुद आमंत्रित
करेंगे जिससे हमारे ही नहीं भूमंडल के समस्त प्राणियों के आस्तित्व पर संकट आ जायेगा
।
आइये, उससे
पहले हम देखें कि हमारे पर्यावरण के को लेकर अब तक किस तरह की रिपोर्ट्स सामने आ
चुकी है उनमें से चंद इस प्रकार है...
रिपोर्ट – ०१ :
दुनिया में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा) पैदा करने वाले शीर्ष पांच देशों में भारत का नाम भी शुमार है । इसके अलावा इस सूची में चीन, अमेरिका,
जापान और जर्मनी है एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है । पांच जून को ‘पर्यावरण दिवस’ से एक दिन पहले सोमवार को प्रमुख वाणिज्य
एवं उद्योग मंडल एसोचैम और एनईसी (नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल) द्वारा जारी रिपोर्ट के
मुताबिक ‘भारत में करीब 20 लाख टन सालाना
ई-कचरा पैदा होता है और कुल 4,38,085 टन कचरा सालाना रिसाइकिल किया जाता है । ई-कचरे में आम तौर पर फेंके हुए कंप्यूटर मॉनीटर, मदरबोर्ड, कैथोड रे ट्यूब (सीआरटी), प्रिंटेड
सर्किट बोर्ड (पीसीबी), मोबाइल फोन और
चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन के साथ एलसीडी (लिक्विड क्रिस्टल
डिस्प्ले) या प्लाज्मा टीवी, एयर कंडीशनर,
रेफ्रिजरेटर शामिल हैं’ ।
रिपोर्ट – ०२ :
राजस्थान के ‘चुरू’ जिले में शनिवार 1 जून को अधिकतम तापमान 50.8 डिग्री सेल्सियस
रिकार्ड किया गया । राजस्थान के ही श्रीगंगा नगर शहर में अधिकतम तापमान 49.6
डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा । जबकि, इलाहाबाद शहर
में इस बार अधिकतम तापमान 48.6 डिग्री सेल्सियस तक रिकार्ड किया गया । यह 1994 के
बाद का सबसे गर्म दिन था । वहीं, दिल्ली के पालम
में पारा इस बार 46.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है जो कि 1998 के बाद से अब
तक का रिकार्ड है । दुनिया की 15 सबसे गर्म जगहों में 8 भारत की ही रहीं ।
रिपोर्ट – ०३ :
हवाई में मौजूद अमरीकी प्रयोगशाला में रोजाना होने वाले कार्बन डाई ऑक्साइड (Co2) के उत्सर्जन की माप से अंदाजा मिला है कि
पहली बार इस गैस का उत्सर्जन 400 पार्ट्स प्रति 10 लाख के स्तर पर पहुंच गया है । ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी के मौसम परिवर्तन विभाग के प्रमुख ब्रायन
हस्किंस का कहना है कि कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस के आंकड़े यह संकेत दे रहे हैं कि
दुनिया की सरकारों को इसके लिए उचित क़दम उठाना चाहिए ।
रिपोर्ट – ०४ :
वर्ष 2015 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक रूस में हर एक व्यक्ति के ऊपर पेड़ों
की संख्या 4856 है जबकि, अमेरिका में यह
संख्या हर व्यक्ति पर 699 है । चीन में हर व्यक्ति के ऊपर पेड़ों की संख्या 130 है
जबकि, हमारे भारत में एक व्यक्ति के ऊपर
पेड़ों की संख्या सिर्फ 28 है। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर पर्यावरण की अनदेखी
सबसे बड़ी चिंता का विषय है । 2050 तक विश्व की आबादी बढ़कर 9.8 बिलियन हो जाएगी
इसमें लगभग 66 प्रतिशत आबादी उन देशों की होगी, जहां विकास दयनीय स्थिति में है भारत भी इनमें से एक है।
रिपोर्ट – ०५ :
‘रोहन आर्थर’, मैसूर स्थित
नेशनल कंजर्वेशन फाउंडेशन में तटीय और समुद्री विषयों के वैज्ञानिक हैं और आजकल
काफी चिन्तित हैं । आर्थर का मानना है कि लक्षद्वीप का मानचित्र से सफाया होने
वाला है । कारण हैः एल-नीनो के कारण प्रवाल या मूँगे का बड़े पैमाने पर क्षय हो
रहा है, जिसे ब्लीचिंग कहते हैं । एल-नीनो एक
गर्म समुद्री धारा है, जो दुनिया भर
में तापमान बढ़ाती है । लक्षद्वीप, केरल तट के पास
36 प्रवालद्वीप और मूँगे की चट्टानों का एक उष्ण कटिबंधीय द्वीप समूह है । समुद्री
तापमान बढ़ने से प्रवाल का क्षय हो रहा है और यदि इसे रोका नहीं गया, तो ये समाप्त हो जाएँगे, इसके साथ ही कई अन्य द्वीप भी खत्म हो जाएँगे । इसी तरह से यूएस जर्नल
सांइस में छपे अध्ययन के मुताबिक, मानवीय
गतिविधियों से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के ज़्यादा अम्लीय होने के
चलते साल 2100 से पहले कोरल रीफ के घुलने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी । बतौर
अध्ययन, कार्बन डायऑक्साइड पानी में अम्ल का
निर्माण करती है जिससे रीफ और कार्बोनेट अर्गेनिज़्म के घुलने का खतरा बढ़ जाता है ।
रिपोर्ट – ०६ :
मानव स्वास्थ्य पर ‘वायु प्रदूषण’ के दुष्प्रभावों संबंधी रिपोर्टें समय-समय पर
सामने आती रहती हैं । आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में होने वाली कुल मौतों में से
लगभग एक चौथाई वायु प्रदूषण के कारण होती हैं । प्रदूषित हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोन
से कम आकार के महीन कण या पीएम-2.5 के संपर्क में आने से ये मौतें होती हैं । हाल
ही में लेंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित अमेरिका के रोग विशेषज्ञों द्वारा किए
गए एक नए अध्ययन में पता चला है कि पीएम-2.5 मधुमेह की बीमारी को भी प्रभावित करता
है । भारत में वर्ष 2017 में मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या 7.2 करोड़ आंकी गई
थी, जो विश्व के कुल मधुमेह रोगियों के
लगभग आधे के बराबर है । यह संख्या वर्ष 2025 तक दोगुनी हो सकती है । विकासशील
देशों में वायु प्रदूषण न केवल मृत्यु का एक प्रमुख कारण है, बल्कि हृदय संबंधी एवं श्वसन रोगों के साथ-साथ
संज्ञानात्मक व्यवहार में कमी और डिमेंशिया जैसी विकृतियों को बढ़ावा देने के लिए
जिम्मेदार माना जाता है ।
रिपोर्ट – ०७
: 'प्योर हिमालयन एयर' नामक एक कंपनी
टिन के कनस्तरों में ₹550 प्रति बोतल
की दर से 'ताज़ी हवा' बेच रही है जिसमें 10 लीटर हवा है और इससे करीब 160 बार सांस ली जा
सकती है । कंपनी का दावा है कि सीधे हिमालय के आसपास के इलाकों से कैन भरने के लिए
उसने कोल्ड प्रेस कंप्रेशन का इस्तेमाल किया है ।
रिपोर्ट – ०८ :
वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्र में रहने वाले सभी जानवरों के शरीर में छोटे
प्लास्टिक की मात्रा पाई गई है । दरअसल, पानी
में रहने वाले जीवों पर की गई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ । बता दें कि
ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर और प्लायमाउथ मरीन लेबोरेटरी (पीएमएल) के
शोधकर्ताओं ने डॉल्फिन, सील और व्हेल
की 10 प्रजातियों के करीब 50 जानवरों की जांच की और उन सभी के शरीर में
माइक्रोप्लास्टिक पाया । उनके शरीर में ज्यादातर कण (84 प्रतिशत) सिंथेटिक फाइबर
थे, जो कपड़े, मछली पकड़ने के जाल और टूथब्रश सहित अनेक जगहों से आ सकते हैं ।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इनके अलावा कुछ टुकड़े उनके शरीर में खाने के पैकेजिंग
और प्लास्टिक की बोतलों के जरिये भी आए ।
रिपोर्ट – ०९ :
अमेरिका में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अंतरिक्ष में 'कचरा' खतरनाक स्तर पर
पहुंच गया है । अमेरिका की नेशनल रिसर्च काउंसिल ने एक रिपोर्ट में कहा है कि
बेकार हुए बूसटर और पुराने उपग्रह पृथ्वी के कक्ष में पृथ्वी के आसपास चक्कर लगा
रहे हैं । इस रिपोर्ट में ये भी कहा है कि इनसे अंतरिक्ष यान और उपयोगी उपग्रह
नष्ट हो सकते हैं और इससे पहले कि कोई भीषण दुर्घटना हो जाए, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को इन्हें हटाने
का काम करना चाहिए । नेशनल रिसर्च काउंसिल यानी राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद ने अपनी
रिपोर्ट में आहवान किया है कि अंतरिक्ष में जमा हुए 'कचरे' को सीमित करने
के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम बनाए जाने चाहिए।
रिपोर्ट – १० :
वैज्ञानिक भाषा में भूमिगत जल के तल को बढ़ाना रिचार्ज कहा जाता है । रिचार्ज का
स्तर 31 प्रतिशत से थोड़ा नीचे रहे, तो
ज्यादा चिंता की बात नहीं, लेकिन पर्वतीय
क्षेत्र के वनों में पानी के रिचार्ज के संबंध में कराए गए एक अध्ययन के जो परिणाम
निकले हैं, वे अनुकूल नहीं हैं । शोध के मुताबिक,
कुल बारिश का औसतन 13 प्रतिशत पानी ही धरती के
भीतर जमा हो रहा है देश के पूरे हिमालयी क्षेत्र में भी कमोबेश यही स्थिति है । जब
हिमालयी क्षेत्र में ऐसा है, तो मैदानों को
कैसे पर्याप्त जल मिलेगा? धरती के भीतर
पानी जमा न होने के कारण एक ओर नदियां व जलस्रोत सूख रहे हैं, तो दूसरी ओर, बरसात में मैदानी इलाकों में बाढ़ की समस्या विकट होती जा रही है। वर्ष
1982 में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पूर्वी अमेरिका के कुछ घने वनों में शोध करके यह
निष्कर्ष निकाला कि साल भर में होने वाली कुल बारिश का कम से कम 31 प्रतिशत पानी
धरती के भीतर जमा होना चाहिए, तभी संबंधित
क्षेत्र की नदियों, जल स्रोतों आदि
में पर्याप्त पानी रहेगा।
इन अलग-अलग
रिपोर्ट्स में हमने देखा कि चाहे धरती हो या असमान या फिर अन्तरिक्ष इन्सान ने हर
जगह पहुंचकर वहां कचरा फैला दिया है जिससे पर्यावरण का संतुलन गड़बड़ा गया जिसे हम
अभी भी नियंत्रित कर सकते है इसलिये जागरूक बने और इनकी गंभीरता को समझते हुये इनमें
आने वाले कल को लेकर जो खतरे बताये गये है उनको रोकने सर्तःक कदम उठाये या फिर इस
पृथ्वी सहित मरने को तैयार हो जाये फैसला हमें ही करना है आखिर, जीवन हमारा ही है ।
इन
परिस्थितियों में शुभकामनायें देने जैसा कुछ नहीं बल्कि, जागृत होने का सन्देश है
यदि वो कर लिया तो ये पृथ्वी खुद हम पर शुभाशिषों की बारिश करेगी ।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
जून ०५, २०१९
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