मंगलवार, 4 जून 2019

सुर-२०१९-१५४ : #नैसर्गिक_अभिनय_का_प्रतीक #बेमिसाल_अभिनेत्री_नूतन



पीढियां भले ही बदल गयी हो लोग टॉकीज की जगह मल्टीप्लेक्स और अब मोबाइल पर सिनेमा देखने लगे हो यहाँ तक कि फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों की भी नई जमात रजत पर्दे पर धूम मचाने आ गयी हो इसके बावजूद भी कुछ अदाकार कभी-भी न तो हाशिये पर धकेले जा सकते और न ही कोई इनको विस्मृत कर सकता और न ही कभी कोई इनकी फिल्मों को अपने जेहन की परतों में से मिटा सकता है क्योंकि, ये महज़ कलाकार नहीं बल्कि, स्वाभाविकता को अपने अभिनय के जरिये सेल्युलाइड पर उभारने वाले वो सहज-सरल सिने सितारे थे जिनकी अदाकारी कभी कृत्रिम या बनावटी नहीं लगती थी

उन्हें सिनेमा के सिल्वर स्क्रीन पर देखकर यूँ महसूस होता मानो वे मानवीय भावनाओं की अदायगी करने वाले कोई बहरूपिया नहीं वरन सहजता की जीवंत मूर्तियाँ हो जो काल्पनिक पात्रों के किरदारों में इस तरह से ढल गये हो जैसे उनका हकीकत में अपना सचमुच कोई अस्तित्व हो इसलिये तो वे अपने देखने वालों के मस्तिष्क में सदा-सदा के लिये अंकित हो गये उनमें एक नाम नैसर्गिक अभिनय की प्रतीक माने जाने वाली खुबसूरत व बेमिसाल अभनेत्री ‘नूतन’ का  है जो अपनी माँ ‘शोभना समर्थ’ जो कि खुद अपने जमाने की मशहूर व संवेदनशील अदाकारा थी के बाद फिल्मों में आने वाली नेक्स्ट जनरेशन की फर्स्ट एक्ट्रेस थी

यूँ तो फिल्मों में आने से पहले ही उन्होंने सौन्दर्य प्रतियोगिता में जीतकर अपनी अप्रतिम सुन्दरता से तो सबको प्रभावित कर लिया था और जब अभिनय की दुनिया में आने का फैसला किया तो वहां भी अपनी सहज-सरल अदाकारी व बहुमुखी प्रतिभा से सबको अचम्भित कर दिया और एक के बाद एक लगातार अपनी फिल्मों से असा जादू किया कि उनके द्वारा निभाये गये चरित्र उनकी पहचान बन गये चाहे वो ‘सीमा’ हो या ‘सुजाता’ या ‘बन्दिनी’ या फिर ‘कालीगंज की बहू’ सभी किरदार उनके अभिनय की जीती-जागती मिसाल है और सदैव वे इसी तरह फ़िल्मी जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज करते रहेंगे चाहे दौर कोई भी हो

उनके अंतर की हर एक हलचल को चाहे वो सूक्ष्म हो या स्थूल उनके भावप्रणव चेहरे पर बड़ी आसानी-से देखा जा सकता था इस तरह कह सकते है कि उनका चेहरा उनके भीतर उमड़ते-घुमड़ते संवेगों का दर्पण था जिसमें हम नकली किरदार का असली अक्स देख पाते थे इसलिये ही वो जिस चरित्र को निभाती उसको हूबहू साकार कर देती उस किरदार की त्वचा में प्रवेश कर वही बन जाती थी तब वे ‘नूतन’ नहीं वही दिखाई देती जिसे अभिनीत कर रही होती उनकी इसी खासियत ने उनको नित नूतन बनाये रखा जिनके पास अपने हर एक चरित्र को देने के लिये कुछ न कुछ नया हमेशा होता था जिससे वो सदाबहार बन जाते ।

वे केवल एक कुशल अभिनेत्री ही नहीं बल्कि, अपने भीतर के अहसासों को पन्नों पर उतरने की कला में भी माहिर थी तो कभी-कभी कोई गज़ल लिखकर अपने मनोभावों को ज़ाहिर कर देती थी आज उनके जन्मदिन पर उनकी लिखी ऐसी ही एक गज़ल साँझा कर रही हूँ...

उन्हें संग उठाने की आदत वही है
हमें सर उठाने की आदत वही है
सितमगर सितम कर चला दिल से खंजर
हमें जख्म खाने की आदत वही है
नहीं डर कि दिल पर रहेगा न काबू
इसे टूट जाने की आदत वही है
गिले-शिकवे होंठों पे आते भी कैसे
हमें चुप उगाने की आदत वही है
हमें आ गया है सम्भलकर भी चलना
मगर लड़खड़ाने की आदत वही है
ग़मों का ये बोझ अब बढ़े भी तो क्या गम
हमें मुस्कुराने की आदत वही है
अभी तक बुरे है, भले लोग ‘नूतन’
हमारे जमाने की आदत वही है            

इस गजल के हर एक अशआर से उनके भीतर छिपी कोमलता व् जीवन को देखने के अनुभवी नजरिये का पता चलता जो अपनी पैनी दृष्टि से परखने का हुनर भी रखता था और जब मौका मिलता तो उसे इस तरह से सफों पर उकेर देता आज उनके बर्थ डे पर ये उनकी तरफ से उत्कृष्ट तोहफ़ा है जो वे अपनी फिल्मों के अलावा हमें देकर गयी है

हैप्पी बर्थ डे... ‘नूतन’... !!!    
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून ०४, २०१९

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