रविवार, 9 जून 2019

सुर-२०१९-१५९ : लघुकथा_आई_लव_एनिमल



सम्मलेन खत्म होने के बाद सभी भोजन की तरफ बढ़े पर, सादा खाना देख निराश हो गये तभी उनका एक दोस्त करीब आया और बोला कि, छोड़ो ये घास-फूस उधर चलो चिकन-मटन सब वहीं है । सुनकर सबकी आँखें जो बुझे बल्ब-सी अंधेरी थी एकाएक रोशन हो उठी मानो उनमें करंट दौड़ गया हो सब एकदम टूट पड़े । निहार की मासूम बेटी अपने पापा को खामोश देखती रही फिर मां के साथ जाकर दाल-चावल लेकर खाने लगी पर, भीतर कुछ सवाल बिलबिला रहे थे जिनके जवाब पापा के ही पास थे तो वो चुप थी । मां को आश्चर्य हुआ कि उसकी मिट्ठू बिटिया अचानक चुप क्यों हो गई शायद, रात अधिक होने से नींद आ रही हो तो ये सोच वे भी खाने में लग गयी लेकिन, उन्हें क्या पता कि ऊपर से शांत दिखने वाली वो चंचल बातूनी बच्ची भीतर ही भीतर बहुत परेशान थी ।

अगले दिन की शुरुआत हुई पर, नियति की चुप्पी उसी तरह कायम थी जिसे देखकर मम्मी हैरान थी लेकिन, ये सोचकर कि चलो अच्छा है नहीं तो बोल-बोलकर नाक में दम कर देती वे अपने रोजमर्रा के कामों में लग गयी । थोड़ी देर बाद पापा भी उठकर डायनिंग टेबल पर आ गये और उसे डिस्कवरी चैनल देखते हुये वाओ डिअर बढ़िया कार्यक्रम देख रही हो मुझे भी ये बहुत पसन्द है बिकॉज़ आई लव एनिमल । उसने ये कहा था कि, नियति तेज आवाज में बोल पड़ी, आप झूठ बोलते हो पापाजी आप जानवर से प्यार नहीं करते यदि करते तो उसे खाने के बारे में सोच भी नहीं सकते पर, कल तो आप बड़े मजे लेकर उसे खा रहे थे । उसकी तेज आवाज़ सुनकर किचन से बाहर आई मां समझ गयी कि उसकी नन्ही बेटी सिर्फ बोलने वाली गुड़िया नहीं अंदर से कोमल और समझदार भी है । जो अपनी सोच से केवल अपने पापा ही नहीं कई लोग को शाकाहार के लिए प्रेरित कर सकती वाकई, ये कैसे संभव कि जिसे प्यार करने का दावा उसे ही मारकर खा ले । वो इस आईडिया को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाकर कम से कह कुछ लोगों को तो नॉन वेज खाने से रोक सकती है ।

इस ख्याल ने उसको वो एक मकसद दे दिया था जिसके बिना वो अब तक बस, यूँ ही जी रही थी ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जून ०९, २०१९

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