बुधवार, 31 जनवरी 2018

सुर-२०१८-३१ : #मिर्ज़ा_गालिब_की_शायरी_की_आत्मा_सुरैया



संगीत उनकी आत्मा में बसा हुआ था इसलिये तो बचपन से ही पार्श्व गायिका बनने का सपना उसकी आँखों में समा गया था मगर, किस्मत में तो इससे ज्यादा ही कुछ लिखा था तो १५ जून १०२९ को ‘गुजरावाला’ में जन्मी ‘सुरैया जमाल शेख़’ जब १९४१ में बारह साल की अबोध उम्र में स्कूल की छुट्टियों के दौरान मोहन स्टूडियो जाकर फिल्म ‘ताजमहल’ की शूटिंग देख रही थी तभी डायरेक्टर ‘नानूभाई वकील’ की नजर उन पर पड़ी बस, तब ही उन्होंने ‘सुरैया’ ‘मुमताज महल’ का बचपन रोल दे दिया जिसने अभिनय के रूप में उनके सामने एकदम नई दुनिया का द्वार खोल दिया पर, अभी तो एक गायिकी को भी मुकाम पाना था तो ‘आल इंडिया रेडियो’ के एक कार्यक्रम के दौरान संगीत सम्राट ‘नौशाद’ ने जब उनकी खनकती कानों में रस घोलती मधुर आवाज़ सुनी तो ‘शारदा’ फिल्म में उनसे गाना गंवाया और इस तरह ‘गायिकी’ का सिलसिला शुरू हुआ याने कि एक साथ अभियन और गायन दोनों के ही क्षेत्र के दरवाजे एक साथ उनके लिये खुल गये थे

उसी समय भारत के विभाजन की दुखद घड़ी आई जिसमें उस दौर की सबसे कामयाब और प्रभावशाली गले की मल्लिका ‘नूरजहाँ’ ने ‘पाकिस्तान’ की राह चुनी तो फिर उनके सिवाय कोई दूसरी ऐसी अभिनेत्री नहीं थी जो गाने में भी उतनी ही जोरदार हो जितने की नायाब उनके नाज़ो-अंदाज और चेहरे की भाव-भंगिमायें होती थी जिसके प्रति उनके प्रसंशकों की दीवानगी का आलम ये था कि फिल्म में उनका होना ही काफी होता था और फिल्म सुपरहिट की श्रेणी में दर्ज हो जाती थी यही वजह थी कि उस वक़्त वे हिंदी सिने जगत की सबसे अधिक पारिश्रमिक लेने वाली अभिनेत्री होने का दर्जा प्राप्त कर सकी और उनके कंठ के सुरीलेपन का अंदाजा तो इसी से लगाया जा सकता हैं कि उस समय देश के पहले प्रधानमंत्री ‘पंडित जवाहर लाल नेहरु’ भी उनकी आवाज़ सुनकर इस कदर प्रभावित हुये कि १९५४ में आई ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ में उनकी गाई गजलों के लिये उन्होंने कहा कि, “सुरैया ने मिर्ज़ा ग़ालिब की लिखी शायरी को अपनी अनूठी गायिकी व अपनी मखमली आवाज़ से अमर कर दिया हैं”

आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक
कौन जीता हैं तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

एक आह, एक पीड़ा उनके भीतर भरी हुई थी अपने अधूरे प्रेम की जिसने उनके गीतों में दर्द की ऐसी लहर भर दी कि सुनने वाला उसे महसूस कर सकता हैं और इस गज़ल में भी वो वेदना झलकती हैं... जिसे अपने सीने में लेकर वो आज ही के दिन इस दुनिया से रुखसत तो कर गयी लेकिन, अपनी तमाम फिल्मों के रूप में अपनी यादें हमारे पास ही छोड़ गयी जिनके माध्यम से हम उन्हें न केवल देख सकते बल्कि सुन भी सकते और ‘सुरैया’ के अफ़साने फिर से दोहरा सकते जो आज भी फिजाओं में गूंज रहे हैं ।      

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३१ जनवरी २०१८

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