सोमवार, 1 जुलाई 2019

सुर-२०१९-१८२ : #दोस्त_जैसा_हो_अगर_डॉक्टर #हर_रोग_हो_जाये_झटपट_छूमंतर




शिल्पी – डॉक्टर साहब, मेरी तो आधी बीमारी केवल आपके यहाँ आकर आपको देखकर ही मिट जाती है और बाकी की आधी आप से बात कर इसलिये जैसे ही लक्षण दिखाई देते मैं दौड़कर आपके पास चली आती हूँ कई बात तो बिना अपॉइंटमेंट लिये भी आ जाती मगर, आप हमेशा मुस्कुराकर स्वागत करते यही वो बात है जो दर्द को खत्म कर देती काश, सारे डॉक्टर आपके जैसे हो जाये तो लोग अस्पताल आने से डरने की बजाय आने के बहाने ढूँढने लगे आखिर, दोस्तों से मिलना तो सबको ही भला लगता है  

डॉक्टर – शिल्पी, मैंने डॉक्टरी का पेशा ज्वाइन करते समय ही ये डिसाइड कर लिया था कि मैं अपने मरीजों से किसी डॉक्टर की तरह नहीं बल्कि, एक दोस्त की तरह मिलूँगा क्योंकि, एक तो दोस्त बनकर मरीजों के डर को खत्म करना आसान होता दूसरा, बड़े-से-बड़े रोग में भी उनका इलाज कर पाना सम्भव हो जाता नहीं तो साधारण बुखार में ही व्यक्ति घबराकर मर्ज बढ़ा लेता है

शिल्पी – आपकी इसी सोच ने देखिये न आपके कितने दोस्त बना दिये जो यहाँ आता अपनी ख़ुशी से आता न कि जबरन या मजबूरी में जबकि, बड़ी-से-बड़ी तकलीफ़ में भी लोगों की सोच यही होती कि जितना टाला जाना सम्भव ही उतना ही ठीक है आपके व्यवहार ने मगर, कम ही सही लोगों की सोच को बदलने का काम तो किया और हम सौभाग्यशाली है कि आप हमारे शहर में हमारे करीब है । आपको पता आपके पहले यहाँ जो डॉक्टर थे वे न तो किसी की बात ध्यान से सुनते और न ही प्यार से बोलते लगता जैसे सिर्फ ड्यूटी कर रहे हो उस पर इतना तो सड़ा-सा मुंह बनाये रहते कि सर्दी-जुकाम में भी लगता जैसे किसी बड़ी बीमारी ने जकड़ लिया हो जबकि, आपके पास आने से बड़े-से-बड़ा दर्द भी छोटा लगता है ।

डॉक्टर – ये तो इस पेशे को इतना गंभीर बना दिया गया कि सालों-साल डॉक्टरी पढ़ते-पढ़ते और फिर प्रैक्टिस करते-करते इंसान हंसना ही भूल जाता लेकिन, जो समझते कि इसमें मरीज से जुड़कर उसे बेहतर तरीके से ठीक किया जा सकता है । वे इस इस काम को उतनी ही सहजता से करते जैसे कोई दोस्त अपने दोस्त को समझता तो बिना कहे ही उसके मन की बात, उसकी तकलीफ़ समझ जाता है । यही फलसफ़ा मैंने अपने प्रोफेशन में अपनाया और देखो तुम जैसे प्यारे-प्यारे अच्छे-अच्छे दोस्त मिले जो अस्पताल या डॉक्टर का नाम सुनकर डरते नहीं बल्कि, ख़ुशी-ख़ुशी मुझसे मिलने यहाँ आते है । एक डॉक्टर के लिये भला, इससे बढ़कर दूसरी ख़ुशी की बात और क्या हो सकती है जो मैंने सोचा वो कर दिखाया और अपनी उस सोच को भी सही साबित किया जिसे अमूमन सम्भव नहीं समझा जाता है ।

शिल्पी – अब तो आपको अपनी इस सोच को भी एक रिसर्च पेपर में छपवा देना चाहिये जिससे कि दूसरे डॉक्टर्स भी आपकी तरह बने और डॉक्टर-पेशेंट के बीच दोस्ताना सम्बन्ध बने न कि आदमी ये सोचे कि डॉक्टर तो लुटेरा होता चाहे जान चली जाये मगर, अपनी फीस नहीं छोड़ता उसे किसी से कोई कोई सरोकार नहीं केवल अपनी फीस से मतलब होता यदि ऐसा हो गया तो सच, बहुत से लोग तो यूँ ही स्वस्थ हो जायेंगे ।

तभी दरवाजे पर नॉक हुई और आठ-दस लोग केबिन के भीतर आये उन्होंने डॉक्टर साहब को हेप्पी डॉक्टर डे कहकर विश किया व फूलों का गुच्छा और मिठाई का डब्बा भी थमाया ये देखकर शिल्पी भी उठकर खड़ी हुई और बोली, मुझे तो याद ही न रहा कि आज एक जुलाई डॉक्टर दिवस है सॉरी, मेरी तरफ से भी आपको बहुत-बहुत बधाई गिफ्ट ड्यू रहा नेक्स्ट टाइम जरुर दूंगी ।

डॉक्टर – मेरा गिफ्ट तो तुम सबका ये स्नेह और प्यार है जो अमूमन सभी डॉक्टर को नसीब नहीं होता तो मेरी तरफ से तुम सबका भी शुक्रिया लो सब मुंह मीठा करो आखिर, डॉक्टर डे बिना मरीजों के तो हो नहीं सकता न... और सब जोर-जोर से हंसने लगे ।
        
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जुलाई ०१, २०१९

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