शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-४१ : ‘वसंतोत्सव बनाम वैलेंटाइन डे के सात दिन’ ‘चौथा – टेडी डे’ !!!

साथियों... नमस्कार...


‘टेडी’ एक छोटा-सा प्यारा-सा नर्म-मुलायम खिलौना जिसे हाथ में लेते ही उसकी छुवन हाथों और मन को एक कोमल सुकून देती और उसका भोला-मासूम चेहरा अनायास ही होंठो पर मुस्कान ले आता तो उसे सीने से लगाते ही अपनेपन का वो अहसास भीतर भर जाता जिसके सहारे अकेलेपन के मायूस पलों को भी आसानी से गुज़ारा जा सकता तभी बच्चों को शुरू से ही इस तरह के कपड़ो से बने खेल-खिलौने उनकी नानी-दादियाँ देती आई हैं जो अब पूरी तरह विलुप्त हो चके और उनकी जगह कृत्रिम फ़र से बने सॉफ्ट टॉयज ने ले ली लेकिन इस दिन को यदि हम अपने तरीके से मनाये तो हमें वो दिन याद आते जब हमारे पास रंग-बिरंगे कपड़ो से बनी गुड़ियाँ होती थी जिन्हें एक पसंदीदा नाम देकर हम तरह-तरह से सजाकर न जाने कितने खेल खेलते थे और इस तरह वो गुड्डा या गुड़िया हमारे प्रिय दोस्त बन जाते जिसे हम सदैव अपने साथ रखते लेकिन समय के साथ उनका रूप ही नहीं नाम भी बदल गया पर, उनसे जुड़े जज्बात तो वही हैं...

उनकी इसी ख़ासियत के कारण वो हर जगह उतने ही लोकप्रिय हैं और सब अपने नन्हे-मुन्नों को ये प्यारी-प्यारी सौगातें देते जिनसे उसका मनोरंजन ही नहीं होता बल्कि वो खेल-खेल में कई तरह के सबक भी सीख जाते जिन्हें यूँ समझाना या बताना आसान नहीं होता लेकिन इन नाज़ुक साथियों के साथ कठिन बातें भी सरल तरीके से उनके मन के किसी कोने में इस तरह बिठाई जा सकती कि बड़े होकर भी वो उन्हें न भूले जैसे उनकी देखभाल करना, उनका ध्यान रहना, उनको साफ़ करना, पुराना हो जाने पर फेंकने की जगह किसी जरूरतमंद को उसे तोहफ़े में देना याने कि इस तरह से हमारे छुटकू-छुटकी रिश्तों की गहराई को भी समझ सकते जब हम उनका उनके लिये खरीदे गये खिलौनों से दोस्ताना संबंध जोड़ देते तो फिर कोई भी अवसर या पल हो वे उसे नहीं भूलते जिसकी वजह से उन्हें कभी अकेलापन महसूस नहीं होता और वे हर जगह उसे अपने साथ ले जाना चाहते यहाँ तक कि रात को भी उसे साथ लेकर ही सोते तो फिर अँधेरे में भी उनको डर नहीं लगता कि नरम रेशों की ऊष्मा उनको गर्मजोशी से भर देती...

इस ‘टेडी डे’ पर हम यूँ भी कर सकते कि कुछ ‘टेडी’ खरीदकर या वो संभव न हो तो अपने बच्चों के पुराने हो चुके टेडी या खिलौने उन बच्चों को बांटे जिनके पास इसे खरीदने के पैसे नहीं और उस उनके चेहरे पर आई मुस्कराहट में दिन की सार्थकता की ख़ुशी अनुभूत करे और ये भी जरुरी नहीं कि इस अनमोल अहसास को पाने हम आज के दिन का ही इंतजार करे बल्कि जब हमें ऐसा कोई मासूम नजर आये जो इस अहसास से महरूम हैं तो उसके हाथों में ये तोहफ़ा थमा दे और शायद, यही होता किसी भी उत्सव या पर्व के आयोजन का वास्तविक उद्देश्य जिसे भुलाकर हम सिर्फ अपने और अपनों के बीच खोकर इस बेहद महत्वपूर्ण बात को नजरअंदाज कर देते जबकि ऐसा नहीं कि हमें ऐसा कोई जरूरतमंद नजर नहीं आता लेकिन हमारी ही आँखों पर स्वार्थ का पर्दा पड़ जाता तो फिर हम अपने सिवा किसी को देखना नहीं चाहते... तो आओ ‘टेडी डे’ पर ‘टेडी’ रूपी खुशियाँ बांटे... :) :) :) !!!       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१० फरवरी २०१७

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