मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-३८ : ‘वसंतोत्सव बनाम वैलेंटाइन डे के सात दिन’ ‘पहला – रोज डे’ !!!

साथियों... नमस्कार...

पुरातन काल से ही हमारे यहाँ वसंतोत्सव मनाने की परंपरा रही हैं जिसे ‘प्रेमोत्सव' भी कहा जाता कि इस ऋतुराज बसंत के आगमन से चहुँऔर प्राकृतिक परिवेश में कुदरत की कारीगरी नजर आने लगती हैं तितलियाँ फूलों पर मंडराती हुई दिखाई देती हैं तो भंवरें भी गुंजन करते हुये उनके चारों तरफ विचरण करते हैं और फूलों से लदी डालियाँ मन को आकर्षित करने लगती हैं जिससे मन स्वतः ही उस मनोरम वातावरण को देखकर न सिर्फ राहत महसूस करता हैं बल्कि उसके भीतर ख़ुशी का हार्मोन भी स्त्रावित होने लगता हैं जिसके कारण वो खुद को पंछियों की तरह हल्का महसूस करता हैं और उसी की तरह उड़ने की चाह भी अंतर में पैदा होने लगती हैं तो पतंग उड़ाकर अपने आप को ही आसमान में उड़ता अनुभूत कर प्रसन्न हो जाता हैं कि कहीं न कहीं उसकी डोर उसके ही हाथों में ही होती हैं और पैर जमीन पर टिके उसे उसकी वास्तिकता का भान कराते हैं...

सिर्फ पूरब में ही नहीं पश्चिम में भी इन दिनों लोगों की मानसिक और दैहिक दशा कुछ यूँ ही होती तभी तो इधर हम ‘वसंतोत्सव’ मनाने में मगन रहते तो उधर वो साप्ताहिक  ‘प्रेमोत्सव’ मना हर दिन अपने दिल की एल अलहदा भावनाओं को प्रकट करते इस तरह से अनुभूतियों के धरातल पर पूर्व-पश्चिम का मिलन होता और अब जबकि तकनीक ने वैश्विक परिदृश्य में सबको एक ही स्तर पर खड़ा कर दिया तो बहुत से भेदभाव खत्म हुये ख़ास तौर पर इन पर्वों के आयोजन में तो समानता दिखाई देने लगी जिसका विरोध कर कुछ लोग अपनी संस्कृति की दुहाई देते लेकिन जब सडकों पर वही तार-तार होती तो घर में चुपचाप बैठकर चैन से सोते याने कि अपनी सभ्यता की परवाह हैं लेकिन केवल एक या दो दिन दिखावा करने से वो थोड़े न बचेगी बल्कि हर दिन उसे अपनाना और जीना होगा तब वो पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित होगी वरना बाकी दिन पश्चिमी अन्धानुकरण और कुछ ख़ास दिन उसी का विरोध जबकि अब आपकी जीवन शैली भी उसी की तरह व्यस्ततम होती जा रही तो फिर यही उप शेष कि आप भी दिन विशेष पर अपने प्रेम का इज़हार कर साल भर फुर्सत से रहे....

आज का दिन जो प्रेमोत्सव का प्रथम दिवस हैं ‘रोज़ डे’ कहलाता जब कोई अपने दिल की बात किसी ख़ास रंग का गुलाब देकर व्यक्त करता तो अपनी हेक्टिक लाइफ में यदि हम इसे इस तरह से अपना ले तो कोई बुराई नहीं कि अपनों को वो सब कहे जो कहते नहीं तो फिर ये अपना सा लगेगा... क्योंकि प्रेम की कोई भाषा नहीं होती लेकिन गुलाब के रंग की होती हैं जो बिन कहे ही सामने वाले के दिल की बात बोल देता ये तभी गलत होता जब हम इसे अपने तरह से परिभाषित करते और हर बरस किसी नये साथी की तलाश कर उसके जज्बातों से खेलते लेकिन यदि हम अपने ही दोस्तों, रिश्तेदारों और प्रिय को एक गुलाब देकर ‘हैप्पी रोज डे’ कहे तो फिर कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये किस देश की रवायत हैं या ये एक आयातित त्यौहार हैं वैसे भी हम हिंदुस्तानी तो हर दिन कोई न कोई उत्सव मनाते तो फिर आज यही सही... वंसत बनाम वैलेंटाइन डे के उपलक्ष्य में ये सात दिवसीय श्रृंखला जिसकी ये पहली कड़ी... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०७ फरवरी २०१७

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