शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-५५ : “शिवजी ब्याहने चले... आओ हम भी बाराती बने...!!!”

साथियों... नमस्कार...


यूँ तो हर महीने ही ‘शिव-रात्रि’ आती लेकिन ‘महा-शिवरात्रि’ तो बरस में सिर्फ एक बार ही आती जिसका इंतजार हर शिव भक्त को रहता कि वो ऐसे औघड़-दानी जो कभी किसी की मन की मुराद अस्वीकार नहीं करते तभी तो उन्हें ‘भोलेनाथ’ भी कहा गया कि वे तो असुरों के तप करने पर उनको भी मनचाहा वरदान दे देते और कोई भी मुश्किल घड़ी हो या किसी दानव का आतंक बढ़ जाये तो फिर सारे देवता उनकी शरण आते तब वे पल भर में उनको हर तरह की परेशानियों से मुक्त करते इसलिये एक नाम उनका देवों के देव ‘महादेव’ भी पड़ गया और समुद्र मंथन के दौरान जब गरल निकला तो समस्त सृष्टि को बचाने उन्होंने उस कालकूट विष का पान कर किया जिससे सबने उसे ‘नीलकंठ’ का नाम दिया और इसी तरह जन स्वर्ग से गंगा को लाने का भागीरथ जी ने निश्चय किया तो उस वक़्त भी शिव ने ही आगे आकर उन्हें शीश पर धारण किया जिससे ‘गंगाधर’ उनका नाम पड़ा चूँकि वे अनादि काल से ही इस ब्रम्हांड में उपस्थित हैं व उनकी प्रेरणा से ही जगत निर्माण का कार्य किया गया तो उन्हें ‘परमपिता’ का नाम दिया गया जो इस जगत के पालक ही नहीं संहारक भी और जब दुनिया में पाप-अधर्म बढ़ जाता हैं तो वही अपने तीसरे नेत्र को खोलकर एक पल में उसका विनाश भी कर देते हैं याने कि सृष्टिपलक से संहारकर्ता भी बन जाते जो यह दर्शाता कि एक पिता अपनी संतान से यदि निःस्वार्थ प्रेम करता हैं तो उसकी गलतियों पर उसे सज़ा भी दे सकता हैं तो हमें अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिये वरना उनकी एक दृष्टि मात्र से सब ख़ाक हो जायेगा तब हमारे पास न तो पछताने और न ही विलाप करने का समय होगा तो हम उनको महज़ ‘भगवान’ न समझकर उनके नाम एवं स्वरुप में छिपे प्रतीकों को समझने का प्रयास भी करें...

‘शिवजी’ को कल्याणकारी सिर्फ इसलिये नहीं कहा गया कि वे परम शक्तिशाली और सदैव सबका हित चाहते बल्कि उन्होंने कुदरत की बनाई हर उस शय को अपने निज निवास ‘कैलाश’ में स्थान दिया जिन्हें कि अक्सर हम हेय दृष्टि से देखते चाहे फिर वो नन्ही चींटी हो या विषैला सांप या फिर उनका वाहन नंदी या वे भूत-प्रेत, निशाचर भी जिनका उल्लेख ग्रंथों में किया गया, उन्होंने सबको ही अपने हृदय में जगह दी यहाँ तक कि एक दूसरे के परस्पर विरोधी मूषक-नाग-मोर-बैल-सिंह सब एक साथ एक-जगह पर बिना विरोध के रहते जो हम सबको यह सन्देश देने का प्रयास हैं कि जिस तरह ये जानवर अपने मन के बैर-भाव को भूलकर बिना लड़ाई-झगड़े के एक साथ रह सकते तो हम इंसान जो कि परम ज्ञानी व बुद्धिमान होने का दावा करते फिर भी हम इन सबसे से ये प्रेरणा लेने की बजाय सब कुछ जानते-बूझते भी जात-पांत, उंच-नीच जैसे तुच्छ विषयों को लेकर लड़ते रहते वो भी उस भगवान के नाम पर जिसने हमको बनाया और हमारी नासमझी का भाव तो ये भी हमने उनकी बनाई दुनिया में अनेक ‘भगवान’ ही बना डाले पर, उसके बाद भी सबकी डोर उसके ही हाथ में जब चाहे जिसकी या सबकी एक साथ खींच ले क्योंकि जिस तरह से अब चारों तरफ अमानवीयता के दृश्य बढ़ते जा रहे निसंदेह वो कभी भी अपनी तीसरी आँख खोल सकते हैं तो इस रात्रि को हम इस पर भी विचार करे कि कहीं ये ‘कालरात्रि’ न बन जाये...

‘महेश्वर’ का अपना परिवार भी हैं जहाँ जगतमाता ‘पार्वती’ और उनके दो प्यारे-प्यारे बालक ‘कार्तिकेय-गणेश’ भी उनके साथ रहते और इस तरह उनके जीवन से हमें केवल मिल-जुलकर रहने का सबक ही नहीं मिलता बल्कि अपने परिजनों का ध्यान रखने का ज्ञान भी मिलता क्योंकि ‘शिव-पार्वती’ का अटूट प्रेम दाम्पत्य जीवन की आधारशिला जहाँ ‘शिव’ ने ‘पार्वती’ को सही मायनों में अपनी अर्धांगिनी मानते हुये अपना अर्धासन दिया और दोनों इस तरह से एकाकार हुये कि ‘अर्धनारीश्वर’ की कल्पना को साकार किया जहाँ उन्होंने ये साबित किया कि एक सफल वैवाहिक जीवन के लिये पति-पत्नी दोनों का एक-बराबर होना निहायत जरुरी जो केवल ‘अर्धांग-अर्धांगिनी’ कहने मात्र से हासिल नहीं होता बल्कि इसके लिये दोनों को इस तरह एक-दूसरे को अपने जीवन में जगह देनी पड़ती कि अपनी देह के आधे हिस्से की तरह से उसके साथ व्यवहार करना पड़ता जो उन दोनों के इस स्वरुप से पता चलता और उनका अटूट संबंध इतना गहन कि ‘सती’ रूप में वे अपने जीवनसाथी की उपेक्षा बर्दाश्त न कर पाई तो अपनी उस देह का त्याग कर दिया लेकिन पुनः ‘पार्वती’ के रूप में जनम लेकर उनको ही पाने कठिन तपस्या प्रारंभ कर दी जिसकी वजह से ‘शिवजी’ ने आज रात को ही उनसे फिर एक बार विवाह किया और ऐसा कि कोई उन्हें फिर जुदा न कर सके तो उन्होंने उनको अपनी देह में ही बसा लिया जो प्रत्येक दंपति को परिणय के वास्तविक अर्थ से परिचित करवाता तो आज की इस पावन रात्रि के इन मायनों को समझने का भी प्रयास करें और अपने जीवन को उसी तरह से खुशहाल बना ले क्योंकि उन्होंने धरती रहने को ही बनाई मिटाने नहीं तो हम क्यों नहीं उसकी उस खुबसूरत दुनिया को कायम रखने कोशिश करें...     

‘महाशिवरात्रि’ को एक नये दृष्टिकोण से देखने का ये छोटा-सा प्रयास आपका जीवन बदल सकता कि ये केवल ‘शिव-पार्वती विवाह’ की परम-पावन बेला नहीं बल्कि उसमें निहित गुढ़ार्थों को एक अलग नजरिये से देखने की भी शुभ-रात्रि हैं तो आये हम उनके विभिन्न नामों, उनके अर्थ और उनके परिवार में सम्मिलत प्रत्येक जीव के होने के दर्शन के साथ-साथ उनके और पार्वती के ‘अर्धनारीश्वर’ स्वरूप व उनके अपनी संतान के प्रति पालक वाला स्नेह की गहनता को अपनी भ्रकुटी में स्थित सुप्त तृतीय नेत्र के माध्यम से देखने का प्रयास करें यही इस ‘महाशिवरात्रि’ की सार्थकता होगी... सबको इसी आशा के साथ मंगलमय शुभकामनायें कि वे आज की रात को व्यर्थ न जाने देंगे... अपने अंतर में छिपी उस दिव्य रौशनी रूपी आत्मा को महसूस करेंगे... :) :) :) !!!      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ फरवरी २०१७

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