मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-५१ : हर काम में अपनी भाषा अपनाओ... ‘मातृभाषा दिवस’ को यूँ सार्थक बनाओ...!!!

साथियों... नमस्कार...


२१ फरवरी एक ऐतिहासिक दिन हैं क्योंकि इस दिन ही ‘ढाका’ में लोग ‘बंगला भाषा’ की स्वीकृति के लिए सड़कों पर उतर आये थे जिसकी वजह यह थी कि जैसा कि हम सब जानते हैं कि हर काल में शासक वर्ग की भाषा ही शिक्षा और राजकाज का माध्यम रही है जैसे कि  मुस्लिम दौर में अरबी-फारसी शिक्षा का माध्यम रही थी तो फिरंगियों के जमाने में अंग्रेजी का बोलबाला रहा तो ऐसी स्थिति इस बात की आवश्यकता महसूस की गयी कि विशेष तरह की शिक्षा या ज्ञान के लिये तो ‘अंग्रेजी’ को अपनाया जाये लेकिन एक आम हिन्दुस्तानी को आधुनिक शिक्षा उसकी अपनी ज़बान में ही दी जाये ताकि वो उसे अच्छी तरह से समझ सके  उसी वक्त ‘मदर टंग’ जैसे शब्द का अनुवाद ‘मातृभाषा’ सामने आया जो कि ‘बांग्ला शब्द’ है और उस दौर के सभी समाज सुधारक यही चाहते थे कि आम आदमी को मातृभाषा (बांग्ला भाषा) में आधुनिक शिक्षा दी जाये तो इस तरह दुनिया में भाषाई स्वीकृति के लिए पहला आन्दोलन हुआ जिसमें गोलीबारी भी हुई जिसकी वजह से कई प्रदर्शनकारी शहीद भी हुए तब ‘यूनेस्को’ महासभा ने नवम्बर 1999 में दुनियां की तमाम भाषाओँ के संरक्षण और संवर्धन की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए वर्ष 2000 से प्रतिवर्ष 21 फरवरी को ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ मनाने का निश्चय किया जो कहीं न कहीं संकट में हैं और इस महासभा में विश्व की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के संरक्षण और संवर्धन हेतु विश्व स्तर पर प्रयास किये जाने का प्रस्ताव रखा गया

इस तरह २१ फरवरी को ‘मातृभाषा दिवस’ मनाया जाने लगा जिसका उद्देश्य यह था कि संपूर्ण विश्व की सभी भाषाओ को सम्मान मिले और ख़ासतौर पर उसे जो एक बच्चा पैदाइश के बाद अपनी माँ से सीखता जिसे हम ‘मातृभाषा’ कहते जो एक देश में रहते हुये भी प्रांत या क्षेत्र अलग-अलग होने के कारण सबकी अलग हो सकती इस मामले में भारत सबसे आगे जहाँ सबसे ज्यादा भाषायें बोली व समझी जाती क्योंकि ये एक ऐसा विशाल लोकतांत्रिक देश हैं जिसने कभी किसी भी देश या जुबान की वजह से किसी को भी अपने यहाँ शरण देने से गुरेज नहीं किया अतः इस मामले में हम काफी समृद्धशाली और यदि इस पक्ष को नजरंदाज कर दे कि इस भाषाई भिन्नता के कारण हम सबको कुछ दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता फिर भी ये हमारे लिये अत्यंत गौरव का विषय कि हम उस देश के वासी हैं जहां थोड़ी-सी दूरी से ही जुबान और जल के स्वाद में फरक आ जाता हैं तो हमारे लिये तो ये दिन बड़ा ख़ुशी का हैं कि एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है एवं भारत में इन 22 भाषाओं को बोलने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 90% है तथा कुल मिलाकर भारत में इनमें से 58 भाषाओं में स्कूलों में पढ़ायी की जाती है इस तरह से देखा जाये तो हम भाषाओँ के मामले में अन्य देशों से आगे हैं ।

इसकी सार्थकता तभी हैं जब हम इस इसकी वास्तविकता को समझे और इसे अपने देश की प्रगति के उपयोग में लाये क्योंकि यदि हम गहराई से सोचे तो पायेंगे कि दुनिया के कई विकसित और विकासशील देश सफ़लता की ऊँचाइयों को छू रहे हैं तो इसकी वजह उनका अपनी मातृभाषा में काम करना हैं जिसका सबसे बेहतरीन उदहारण जापानहै जो कि वैश्विक बाज़ार में एक आर्थिक और औद्योगिक शक्ति है और इस मुकाम तक वह सिर्फ और सिर्फ अपनी मतृभाषा की बदौलत ही पहुंचा है इसी तरह चीनभी विश्‍व पटल पर एक महाशक्ति बन कर उभरा है तो इसमें भी उसकी मातृभाषा मंदारिनका अहम योगदान है तो हमें भी अपनी भाषा हिंदीको वही स्थान दिलवाना चाहिये कि अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर उसे नकारा नहीं जा सके और इस तकनीकी युग में तो ये और भी आसान क्योंकि सामान्य काम से लेकर इंटरनेट तक के क्षेत्र इसका प्रयोग बख़ूबी हो रहा है तथा भूमण्डलीकरण के इस दौड़ में जबकि देशों की भौगोलिक दूरियां मिटती जा रही है यह ज़रूरी है कि हम अपनी कमियों को समझें और अपनी भाषा को वही मान-सम्मान दिलाये जो दूसरे देशों में उनकी भाषा को प्राप्त हैं तब इस दिन की सार्थकता सिद्ध होगी क्योंकि मातृभाषा में काम करने से प्राप्त सहूलियतें हमारे विकास की रफ्तार को बढ़ायेंगी तो हमें इस तरह के प्रयत्न करने हैं कि हम इसी भाषा के दम पर विश्व गुरु बने न कि विदेशी भाषाओँ की नकल कर अपनी भाषा भी बिगाड़ ले जबकि दूसरे देशो पर नजर डाले तो पायेंगे कि वे अपनी भाषा में किसी दूसरी को दखल देने नहीं देते और हम सबको अपनाने के चक्कर में कहीं के नहीं रहते तो अपनी भाषा का अपना हथियार बनाओ... मातृभाषाको हर काम में अपनाओ... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२१ फरवरी २०१७

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