शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-५६ : दिल... ‘दिल’ हैं... ‘मोबाइल सिम’ नहीं... ‘फीलिंग्स’ को भी समझो ‘मोबाइल एप्प’ नहीं...!!!

साथियों... नमस्कार...


‘सलोनी’ अभी नई-नई ही शहर में आई थी उसके पहले तो उसने अपने गाँव से ही स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी चूँकि वो पढ़ने में बहुत अच्छी थी तो उसका चयन शहर के बड़े कॉलेज में हो गया था और यहाँ आने के बाद वो इस नये आधुनिक तीव्रगामी परिवेश से अपनी चाल मिलाने की कोशिश में लगी थी लेकिन बात केवल ‘चाल’ की होती तो शायद ठीक था परंतु यहाँ कि लडकियों का तो ‘चलन’ भी निराला था तो सबकी हिदायत थी कि सिर्फ ‘चाल’ नहीं ‘चलन’ भी सुधारो अपना जबकि उसके उसी ‘चाल-चलन’ की वहां खूब तारीफें होती थी और उसके चरित्र प्रमाण-पत्र में ही उसे इसी वजह से अति-ऊतम दर्शाया गया था लेकिन यहाँ तो लडकियाँ छिप-छिपकर रात को हॉस्टल से सिनेमा देखने जाती तो कभी किसी रेस्टोरेंट में जाकर खाना खाती और कभी-कभी मॉल में जाकर शौपिंग करती याने कि वे सब काम करती जिनकी सख्त मनाही थी और ये सब तो ठीक था लेकिन उन सबके बॉय-फ्रेंड्स भी थे जो उसकी समझ से परे था क्योंकि गाँव में भी वो कन्या शाला में पढ़ी और यहाँ भी गर्ल्स कॉलेज में एडमिशन लिया कि उसे बचपन से ही ये सिखाया गया कि छलावों से दूर रहना, सिर्फ अपनी पढाई पर ध्यान देना और किसी के चक्कर में कभी न आना फिर भी न जाने कैसे इन लडकियों ने अपने दोस्त बना लिये शायद, ये वही लडके थे जो कॉलेज के गेट पर खड़े रहते थे और ऐसा नहीं कि इन लडकियों की इनके घरवालों ने ये सब बातें न बताई लेकिन वे कहती यहाँ भी यदि उसी तरह कुढ़-कुढ़कर जियेंगे तो फिर मस्ती कब करेंगे, अपनी लाइफ कब जियेंगे इसलिये जो अब मौका मिला तो मन की हर साध पूरी करेंगी फिर बाद में घरवालों ने किसी के पल्ले से तो बांध ही देना हैं उसके पहले जरा जिंदगी का ये रंग भी तो देख ले...

‘सलोनी’ पर मगर, सहेलियों द्वारा दिये गये इन सारे तर्कों-कुतर्कों का कोई भी असर नहीं होता क्योंकि उसके जेहन में प्रेम की अवधारणा एकदम स्पष्ट थी जिसमें किसी तरह का मज़ाक या कोई भी हल्कापन शामिल नहीं था उसके लिये तो ये ‘शंकर-पार्वती’, ‘राम-सीता’ या ‘राधा-कृष्ण’ की तरह का जीवन का विशिष्ट हिस्सा था जिसे उसने बचपन से सुनी अमर-प्रेम कहानियों से प्रेरणा लेकर ही इजाद किया था जो बॉयफ्रेंड कल्चर के सांचे में कहीं भी फिट नहीं होता उसे तो ये ‘लिंकअप’ / ‘ब्रेकअप’ और ‘लिव-इन’ जैसे आधुनिक संबंध समझ ही नहीं आते जहाँ सब केवल अपनी संतुष्टि के लिये कोई रिश्ता बनाते और यदि वो पूरी न हुई तो झट दूसरे से नाता जोड़ लेते उसने तो इसे जीवन का सबसे अहम फ़ैसला माना था जो ऐसे पल-पल बदलता नहीं और न ही दिल को इस तरह से हर किसी को दिया जा सकता आखिर, वो भी तो एक अंग जिसे सभी अहसास महसूस होते और जो इस तरह बार-बार टूटते-जुड़ते संवेदनहीन हो सकता न जाने क्यों ये सब समझते नहीं कि ‘दिल’ किसी ‘मोबाइल’ की ‘सिम’ नहीं, जिसे किसी के भी द्वारा दिये लुभावने प्लान्स या किसी धमाकेदार ऑफर से प्रभावित होकर बदल दिया जाये ये और न ही कोई ‘एप्प’ की दूसरा पसंद आने पर पहले को अन-इंस्टाल कर दिया जाये लगता, इस मशीनी युग में इंसान खुद को भी एक ‘गेजेट’ ही समझने लगा हैं और जहाँ कोई अगला अधिक जोरदार दिखा पहले को रिमूव किया और कभी-कभी तो एक-से अधिक को भी ‘इंस्टाल’ किया या ‘ड्यूल सिम’ में जिस तरह अलग-अलग ‘सिम’ लगाते वैसे अलग-अलग नंबर पर अलग-अलग प्रेमी रखा उफ़...

कोई कितनी भी हंसी उडाये या उसे भड़काये उसके मन में गहरे अंकित उन परिभाषाओं को वे सब बदलने में कामयाब न हो सकी और तो और उन सबकी ये दलील भी कोई काम न कर सकी कि तुम जिसके लिये खुद को बचाकर रख रही वो कोई दूध का धुला न होगा फिर तुम्हीं क्यों उसके लिये खुद को इन खुशियों से वंचित कर रही और ये भी तो हो सकता कि आजीवन अकेली ही रह जाओ कोई ऐसा मिले नहीं क्योंकि आजकल वैसे मॉडल बनते नहीं... तब भी बिना विचलित हुये उसने कहा, मैं ‘मीरा’ की तरह एकाकी अपने प्रेम की कल्पना के साथ निबाह कर सकती हूँ पर, अपने ‘दिल’ को ‘सिम’ और अपनी ‘फीलिंग्स’ को एप्प नहीं बना सकती गर, कोई होगा वैसा तो मिल जायेगा और जो न भी मिला तो अपने बेदाग़ दिल से मुझे कोई शिकायत न होगी... :) :) :) !!!   
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२६ फरवरी २०१७

कोई टिप्पणी नहीं: