रविवार, 12 फ़रवरी 2017

सुर-४३ : ‘वसंतोत्सव बनाम वैलेंटाइन डे के सात दिन’ ‘छठवां दिन – हग डे’ !!!

साथियों... नमस्कार...


गर्भ में आया भ्रूण जैसे-जैसे बढ़ता जाता वो अपने चारों तरफ एक गहन अंधकार और सुरक्षा का असीम भाव पाता जहाँ एकाकी होकर भी उसे कभी अकेलेपन का अहसास नहीं होता जबकि सवेदानाएं उसमें भी जागने लगती धीरे-धीरे ज्यूँ विकसित होती ज्ञानेन्द्रियाँ तो महसूसने लगता वो जीवंतता की भावना को, मारने लगता नन्हे-नन्हे पैर उस बंदीगृह को जहाँ गर्भनाल से पीकर अमृत सूक्ष्म बिंदु से मानवीय आकार लिया... फिर एक दिन कैद का पिंजरा खुल गया तो रौशनी का नया संसार मिला देखकर जिसे चकाचौंध हो गयी छोटी-छोटी मिचमिचाती आँखें तो माँ की गोद में जाकर जब बाहों का गर्म घेरा मिला तो पुनः मन में वही खोया हुआ अहसास जगा जिसके साये तले उसने खुद को बीज से अंकुरित होकर पनपते देखा और इस तरह उसने ‘आलिंगन’ का पहला-पहला स्वाद चखा और सब तरफ से आँखें मूंदकर खुद को हर चिंता, हर भय से मुक्त अनुभूत किया तो जीवन के सफ़र में जब भी स्वयं को तन्हां पाया या जब भी मुश्किल हालातों से नन्हा-दिल घबराया तो अपनी विराट काया को किसी प्रेमिल रिश्ते के ऊष्म दायरे में सिमटा हर तनाव, हर चिंता, फिकर से मस्तिष्क को मुक्त पाया एक सुकून भरे अहसास ने देकर दिलासा बड़ी कठिनाई को भी छोटा बताया शायद, तभी इसे किसी ने ‘जादू की झप्पी’ का नाम देकर बुलाया...

अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया कि ये एक चिकित्सा की तरह काम करता और कितनी भी गंभीर बीमारी या जटिल परिस्थिति हो यदि उस तनाव से जूझते व्यक्ति को सीने से लगाकर सर पर हाथ फेरा जाये तो इस दौड़ती-भागती व्यस्ततम जिंदगी में केवल स्नेह की कमी ही पूरी नहीं होती बल्कि उसे फिर उन हालातों से निपटने का हौंसला मिलता जो अचानक ही जीवन में आ जाते तो एक तरह से ये दवाई का काम भी करता और वो भी ऐसी जिसे खरीदना नहीं पड़ता बल्कि जिसके भी पास गर्मजोशी से भरी दो बाजुएँ, ममतापूर्ण हृदय और निराशा से भरे उस मानव को पहचानने वाली संवेदनशील नजर हैं वो इसे हर उस व्यक्ति को बेमोल बाँट सकता जिसे इसकी जरूरत और इसमें इतनी ताकत कि ये शैतान को भी इंसान बना दे बस, आपको इस तरह से अपनी सकारात्मकता उसके भीतर प्रवाहित करनी हैं फिर इस चमत्कार को सामने वाला खुद महसूस करेगा यही वजह कि इस प्रेमपाश में तो खूंखार जानवर भी बंध जाते कि उन्हें भी प्यार की जरूरत होती तो जो काम कोई कोड़ा या जंजीर नहीं कर पाती वो इस बंधन से आसानी से हो जाता...

इतना कारगर उपाय हैं ये फिर भी जरूरी नहीं कि सबको ये हासिल हो कि इस देश में बचपन से हमें इस तरह का माहौल या संस्कार मिलते कि आसानी से हम किसी को गले नहीं लगा पाते और सार्वजनिक स्थानों पर तो कुछ संकोच या झिझक भी महसूस करते तो ऐसे में ‘स्पर्श चिकित्सा’ भी बड़े काम का नुस्खा जिसके द्वारा हम केवल सामने वाले का हाथ थामकर या उसकी पीठ या सर पर हाथ फेरकर भी अपने मनोभाव उस तक पहुँचा सकते हैं आख़िर हमारा मकसद तो अपनी भीतरी अनुभूति को उस तर्क पहुँचाना हैं या उसे सहारा देना हैं तो ये स्नेह के ये छोटे-छोटे तरीके भी बड़े काम के साबित होते हैं इसलिये भले ही ‘हग डे’ की तरह इसे न मनाये लेकिन इसकी महत्ता को समझकर किसी अपने या पराये को अंक में लेकर देखे फिर इसे शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता न रहेगी गूंगे के गुड़ की तरह आखों और मुखाकृति से वो जज्बात बयाँ होंगे... जहाँ अल्फाज़ और भाव खत्म हो जाते हैं वहां इस तरह से ही बात की जाती हैं... :) :) :) !!! _____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१२ फरवरी २०१७

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