सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-५० : लघुकथा : “सेम पिंच” !!!

साथियों... नमस्कार...


बचपन से साथ पली-बढ़ी और पढ़ी-लिखी भी वो दोनों सहेलियां तो एक-दूसरे को खुद से ज्यादा जानना स्वाभाविक भी था इसलिये अक्सर उनकी पसंद मिलती थी लेकिन अपनी समझ का इम्तिहान लेने वो एक-दूजे से छिपकर कभी बाज़ार या कहीं भी जाती तो वहां से लाई अपनी पसंद जब सामने रखती तब भी दोनों के मुंह से सहज ही ‘सेम पिंच’ निकल जाता इसे यूँ कहे कि यदि एक सूरत तो दूसरी आईने में उभरी उसकी हूबहू प्रतिकृति थी

एक ऐसी ही आज़माइश करने जब ‘अनिका’ ने ‘शैफाली’ को अपने घर बुलाकर उस शख्स से मिलाया जिससे उसके पापा उसका रिश्ता तय करने जा रहे थे तो उसकी जुबां पर आया ‘सेम पिंच’ उसे ही कचोटने लगा कि इस सूरत को पहली बार देखकर ही वो उसे अपने मन में बसा चुकी थी... लेकिन, नहीं जानती थी वो कि साथ रहने से कभी-कभी तकदीरों की लकीरों में लिखा नाम भी एक हो जाता हैं और उस वक्त ‘सेम पिंच’ खुद को ही पिंच करने लगता हैं       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२० फरवरी २०१७

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