सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-३७ - अखंड भारत का एक भाग... ‘खान अब्दुल गफ्फार खान’...!!!

साथियों... नमस्कार...


जब तक सरजमीने हिंदुस्तान के हिस्से न हुये थे, वो अखंड भारत से खंड-खंड होकर खंडित न हुआ था तब तक इस भूमि पर रहने वाले समस्त देशवासियों के मध्य इतने मतभेद न थे और न ही धर्म-जाति को लेकर ही इतने झगड़े-फसाद थे ये तो ब्रितानियो की देन जिन्होंने इस देश को ‘आज़ादी’ की सौगात तो दी लेकिन उनके बीच में फूट का ऐसा बीज बोया कि उनके जाने के बाद भी भाई-भाई दुश्मन बनकर आज तक लड़ रहे हैं जबकि जब वो देश जो इससे कटकर बने न थे तो सब लोग मिलकर ही रहते थे और एक-दुसरे से उनकी कोई व्यक्तिगत रंजिश न थी लेकिन अंग्रेजों ने तो बैर का ऐसा विष बोया जिसकी फसल हम सब आज तक काट रहे लेकिन इसका दंश जिसने सबसे ज्यादा झेला ये वो लोग थे जो इसके पक्ष में नहीं थे कि अपने जिस देश के लिये उन्होंने जान पर खेला वही उनको टुकड़ों में मिल रहा हैं पर, जब ऐसे व्यक्ति जिनके पास सत्ता हो और शक्ति भी उस पर वो शीर्षस्थ भी हो तो उनको अपने स्वार्थ व अपनी नाक के आगे कुछ नजर नहीं आता ऐसे ही सियासत के उच्चासीन अहंकारीयों ने अपने लाभ के लिये पहले इसके दो हिस्से किये और फिर जो सिलसिला शुरू हुआ तो वो आज तक जारी जैसे कि ये देश नहीं उनके बाप-दादाओं की जायदाद हैं जिसे वो अपनों में बाँट रहे लेकिन इस पर अंकुश लगा सके ऐसा कोई नहीं तो हम भी भीष्म पितामह की तरह मूक दर्शक की द्रोपदी की भांति अपने देश की अस्मत को लूटते देखने विवश...

पर, ऐसे में जब उन लोगों की पीड़ा का ख्याल आता जिन्हें कि मजबूरीवश ही इस सदमे को सहना पड़ा तो एक व्यक्ति का नाम जेहन में आता ‘खान अब्दुल गफ्फार खान’ जिसके बारे में हमने अपनी पाठ्यपुस्तक में पढ़ा था जिसे कि ‘सीमांत गाँधी’ के नाम से भी जानते और जिसने अखंड भारत के पेशावर में आज ही के दिन ६ फरवरी १८९० में अपनी आँखें खोली लेकिन जब उसे फिरंगियों का गुलाम पाया तो दिल में हूक भी उठी जिसके कारण अपनी अपने जीवन को अपने देश पर कुर्बान करने की कसम खाई और अपने तरीके से इस काम को अंजाम दिया लेकिन न पता था कि ‘आज़ादी’ नाम की वो गुमशुदा शय के मिलते ही हम अपनों की ही गिरफ्त में कैद हो जायेंगे जहाँ से फिर निकलना कभी मुमकिन न होगा...
           
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जल गये
परवाने न जाने कितने
करने रोशन आज़ादी की शमां
सबको ही अपनी मातृभूमि से था प्यार
तो करने स्वतंत्र माँ भारत को
एक हुये लाल सभी
न कोई हिंदू, न मुसलमान
और न सिख, ईसाई था
सब अपनी जन्मभूमि के सपूत
अपने वतन की आज़ादी के मतवाले
बापू के आदर्शों से प्रेरित
चल पड़े नौजवान उनके पीछे
उनमें से एक बना उनकी परछाई
इस कदर उनके सिद्धान्तों
उनकी जीवन शैली
और उनके सभी आचरण
अपना लिये उसने कि
उसका नाम ही हो गया था
*'सीमांत गांधी'*
कि सीमायें भी न फिर
बांध सकी सरहदों में उसे
आज़ादी पंछी बन वो विचरता
अखण्ड भारत के खुले आकाश तले
दुर्भाग्य कि उसे ही खंडित भारत के
दूसरे हिस्से में आखिरी साँसे लेनी पड़ी
मगर, उसका त्याग, समर्पण
भूला न पहला हिस्सा उसका
तो देकर उसे 'भारत रत्न' सम्मान
बना लिया फिर अपना ।।
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मतलब ‘आज़ादी’ तो आई लेकिन साथ में ‘विभाजन’ भी लाई जिसमें ‘भला’ अगर किसी का था तो उन दोनों का जिन्हें अपने-अपने देश की बागड़ोर और कुर्सी संभालनी थी और इस तरह शुरू हुआ किस्सा कुर्सी का जिसकी वजह से अब हम स्वतंत्र होकर भी इस जाल में फंसे और अपने देश को टूटते हुये देख रहे लेकिन न अब वो लोग, न अब वो जंग और न वो देशप्रेम क्योंकि प्रजा की मानसिकता में ही इसे घोल दिया गया और सहनशक्ति का स्तर भी ऐसा कि जुबां ने भी बोलना छोड़ दिया नहीं तो क्या हम ये सब देख सकते थे...  

ऐसे में ‘बाचा खान’ के दिल पर जो गुजरी वे तो वही जाने लेकिन वे पडोसी देश में रहकर भी अपने दिल के किसी कोने में अखंड भारत को सदा बसाये रखे और उनका समर्पण व प्रेम देखकर ही भारत सरकार ने उनको ‘भारत रत्न’ देकर फिर अपना बना लिया... आज जन्मदिवस पर उनका पुण्य स्मरण... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०६ फरवरी २०१७

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