बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-५२ : “आज़ादी में पंछी गाता... रुखा-सूखा भी भाता...!!!”

साथियों... नमस्कार...


आज़ादी का मतलब केवल स्वच्छन्दता नहीं होता जो कि आजकल के लोग समझते बल्कि इसका तात्पर्य केवल इतना हैं कि कोई बंधन न हो फिर भी एक अहसास हो कि किसी की चाहत में हम बंधे और अपने जीवन में पर अपना अधिकार तो हो लेकिन उसके मायने किसे दूसरे के लिये हो सिर्फ अपने लिये जीना हद्द दर्जे की खुदगर्जी कहलाती जो जानवर भी पसंद नहीं करते पर, इसका मतलब नहीं कि हम उन्हें कैद में रखें उनकी अपनी दुनिया में वो हर तरह से मस्त रहते फिर भले दाना-पानी के लिये कितनी भी मशक्कत करनी पड़े कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन पिंजरे में बिना मेहनत के मिलने वाला स्वादिष्ट भोजन भी रस नहीं आता कि उस पर पहरा होता और हर जीव नजरबंदी से कतराता कि वो अपनी मर्जी से जीना चाहता परंतु फिर भी कहीं ये ख्वाहिश होती कि कोई हो जो उसके हर-कदम हर एक गतिविधि को नोटिस करे क्योंकि उसकी रचना ही ऐसी कि अकेलापन नहीं भाता और बेड़ियों में भी कसमसाता दरअसल वो चाहता कि स्नेह की ड़ोर हो तो सही लेकिन ऐसी कि जिसमें वो खुद को कैदी न समझे याने कि वो ऐसी न हो कि एक झटके में ही टूट जाये पर, ऐसी भी न हो कि उसका कसाव दम घोंटने लगे ये एक अजब-सा फलसफा हैं आज़ादी का जहाँ पर, इंसान कैद में स्वतंत्रता को महसूस करना चाहता...

सिर्फ इन्सान नहीं उसकी भावनायें भी सांस लेना चाहती खुली हवा में उसके सपने, उसके अरमान भी उड़ना चाहते खुले आकाश में कि जीने की ललक उनके भीतर भी होती तो उन्हें दबाकर न रखे उड़ने दे... :): ) :) !!!       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ फरवरी २०१७

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