रविवार, 19 फ़रवरी 2017

सुर -२०१७-४९ : हिंदुओ के सर का ताज़... ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ !!!

साथियों... नमस्कार...


भारत देश सदा से यहाँ पर बाहर से आने वाले आगंतुकों को ललचता रहा क्योंकि यहाँ कि भूमि और लोग धन-धान्य ही नहीं चारित्रिक गुणों से भी भी भरपूर थे ऐसे में जो भी एक बार यहाँ आता वो इस पर कब्जा जमाना चाहता जिसमें कई लोग काम्याब भी हो जाते लेकिन सिर्फ कुछ समय के लिये ही कि यहाँ के बाशिंदे अधिक समय तक किसी के नियंत्रण में नहीं रह सकते अतः विद्रोह का बिगुल बजकर ही रहता जिसका बीड़ा उठाने कोई न कोई शूरवीर आगे बढ़ता जिसके पीछे वीरों का कारवां खुद-ब-खुद आकर खड़ा हो जाता कुछ ऐसा ही हुआ था आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व जब १५२६ में तैमूरी राजवंश का राजकुमार ‘बाबर’ उस वक़्त दिल्ली के सुल्तान ‘इब्राहिम शाह लोदी’ को ‘पानीपत के पहले युद्ध’ में हराकर ‘सलतनत-ए-हिंद’ बना जिससे कि ‘मुग़ल साम्राज्य’ की नींव पड़ी और उनका शासन काल १५वीं शताब्दी से शुरू होकर १९वीं शताब्दी के मध्य तक चला और इस तरह उन्होंने हम पर लगभग ४०० साल शासन किया और उनके शासन काल में हिन्दुओं पर जब तरह-तरह के ज़ुल्म ढाये गये तो कई हिंदू राजा-महाराजाओं ने उसका विरोध किया जिसमें एक नाम आता हिंदू हृदय सम्राट ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ का भी आता हैं जिन्होंने ६ जून १६७४ में ‘मराठा साम्राज्य’ की स्थापना की और फ़ारसी भाषा की जगह ‘संस्कृत’ और ‘मराठी’ को राजकाज की भाषा बनाया...

शिवाजी ने अपने पराक्रम से जो कुछ भी हासिल किया या जिस तरह का साहस दिखाया वो सब उनकी माँ ‘जीजाबाई’ की दी गयी शिक्षाओं का परिणाम था क्योंकि वे अत्यंत प्रतिभाशाली महिला थी लेकिन उनके पति याने कि ‘शिवाजी’ के पिता ‘शाहजी भोंसले’ द्वारा उनकी माँ की उपेक्षा किये जाने पर उन्होंने अपनी संतान पर ही अपना पूरा ध्यान लगाया और बाल्यकाल से ही किताबी ज्ञान की जगह हर तरह की व्यावहारिक शिक्षा उसे स्वयं ही दी जिसके लिये उसे रामायण, महाभारत की कथाएं तो सुनाई ही साथ ही राजनीति व युद्ध कौशल में भी पारंगत किया और इसमें उनके गुरु ‘समर्थ रामदास’ का भी योगदान गिना जाता हैं जिन्होंने अपने शिष्य को इस तरह से हर तरह की परिस्थिति के अनुसार तैयार किया कि वे एक धार्मिक व्यक्ति, कुशल रणनीतिकार, जाबांज योद्धा और एक हर दिल अजीज सम्राट भी बने याने कि उनका सर्वांगीण विकास किया गया जिसमें नैतिक पक्ष पर अधिक जोर दिया गया साथ ही मानवीय पहलू को भी नजरअंदाज़ नहीं किया गया शायद, तभी वो कम उम्र से ही अधिक तार्किक निर्णय ले पाते थे जैसा कि उनके किस्सों से पता चलता हैं...

जब वे केवल १४ वर्ष के थे तो उनके सामने एक ऐसा मसला आया जिसमें कि किसी गाँव के मुखिया पर, जो कि बड़ी-घनी मूछों वाला बड़ा ही रसूखदार व्यक्ति था, एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हो चुका था तो ऐसे में उन्होंने निर्णय लेने में एक पल की भी देरी नहीं की  और तत्काल बोले कि “इसके दोनों हाथ और पैर काट दो, ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती जबकि आज स्वतंत्र भारत में भी कोई भी न्यायाधीश ये साहस नहीं दिखा पाता कि एक दुराचारी को इतना कठोर दंड दे सके लेकिन वो महिलाओं का बेहद सम्मान करते थे और इंसानियत के ये गुण उनकी माँ ने उनको दिये थे तो वे उस नजरिये से भी मामलों को परखने की दृष्टि रखते थे इसलिये सामने कोई भी हो उनका फैसला हमेशा सटीक ही करते जिसने उनको एक न्यायप्रिय राजा का दर्जा भी दिलवाया तो उनके स्वाभिमान ने उनको अपने आप पर गर्व करना सिखलाया शायद तभी जब एक बार उनके पिता उनको बीजापुर के सुलतान के दरबार में ले गये तो उन्होंने तीन बार झुककर सुलतान को सलाम किया और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा लेकिन वे तो शेर की तरह निडर व बहादुर थे तो अपना सर ऊपर उठाये सीधे खड़े रहे पर, विदेशी शासक के सामने किसी भी कीमत पर सर झुकाने को तैयार नहीं हुये...

‘शिवाजी’ के जीवन में बचपन से लेकर अंतकाल तक कई कहानियां हैं जो उनकी अलग-अलग चारित्रिक विशेषताओं को उजागर करती कि किस तरह उनकी माँ ने उनके भीतर एक-एक गुण भरा था जिसने उनको एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व में तब्दील कर दिया जिसमें ढूंढने पर भी कोई कमी नजर नहीं आती वो भी उस दौर में जबकि मुगलों ने हम पर तरह-तरह के अत्याचार, अन्याय किये उन्होंने उनकी स्त्रियों के साथ उतनी क्रूरता नहीं दिखाई तब भी जब वे उनके कब्जे में थे और उनकी ये कहानी मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं कि जब उनके सिपाही मुगलों की किसी अत्यंत रूपवती स्त्री को उनके सम्मुख लाये तो उन्होंने उसे देखकर उसके सौन्दर्य की तारीफ करते हुये कहा कि “काश, मेरी माँ भी इतनी खुबसूरत होती तो आज मैं भी इतना ही सुंदर होता” और इस तरह उन्होंने उसके भीतर भी औरत के ममतामयी रूप का दर्शन किया जबकि मुगलों ने तो कोई कसर नहीं छोड़ी ऐसे वीर, साहसी हिंदुओ की आन-बान-शान शिवाजी महान को आज उनकी जयंती पर हम सब करते सलाम... :) :) :) !!!
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१९ फरवरी २०१७

कोई टिप्पणी नहीं: