गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

सुर-२०१७-५४ : एक अभिशप्त अप्सरा... ‘मधुबाला’... !!!

साथियों... नमस्कार...


किस्सों-कहानियों में परी, अप्सरा, हूर के बारे में पढ़ते-सुनते हैं लेकिन उनको देखा किसी ने भी नहीं पर, जब ‘मधुबाला’ को रजत परदे पर देखा तो लगा कि शब्दों से बुनी वो अद्भुत  कल्पना साकार होकर हमारे सामने आ गयी शायद, यही वजह कि सबने उसे सौंदर्य की मिसाल बनाकर रख दिया गया और निर्देशकों में भी हर कोण से उसकी बाहरी सुंदरता को दिखाने की होड़ मच गयी जिसका नतीजा ये हुआ कि कोई भी उसके भीतर न झाँक सका और उसके भीतर पलता नाज़ुक दिल अपनी ख्वाहिशों को मार-मार लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करते-करते ये भूल गया कि वो भी तो हाड-मांस का बना उस शरीर का एक अंग मात्र हैं कोई अदाकारा नहीं जो कैमरा ऑन होते ही अपनी अंदरूनी तकलीफों को छिपकर कृत्रिम मेकअप लगे चेहरे पर, होंठों को विशेष अदा से तिरछा कर मनमोहक मुस्कान बिखेर अभिनय करने लगे उसकी इस छोटी-सी भूल का खामियाज़ा सिर्फ उसे ही नहीं उस जिस्म को भी उठाना पड़ा और उस तकलीफ़ का अंशतः प्रभाव हम पर पड़ा कि एक दिल की वजह से ही ‘मधुबाला’ को असमय इस दुनिया से कूच करना पड़ा...

वो भी एक ऐसी उमर में जबकि जिंदगी की सही मायनों में शुरुआत होती क्योंकि इसके पहले तो कब बचपन की जगह जवानी ले लेती पता ही नहीं चलता और जब यौवन पर, संजीदगी की परत चढ़ती और आँखों पर पड़ा रूमानियत का चश्मा भी उतरता जिससे कि रंगीन दुनिया के भ्रामक रंग उतरने लगते जिससे कि उसके नीचे दबी बदसूरती भी दिखाई देने लगती तो वय के ऐसे सबसे सहज-सरल मोड़ पर आकर उसका कोमल दिल हांफने लगा जबकि इसके पहले वो जीवन में आने वाले सभी खतरनाक मोड़ो को झेल गया या शायद उस झेलने के चक्कर में उसने अपनी सारी ऊर्जा ही गंवा दी तो जब जरूरत पड़ी उसके पास संचित धडकनों का कोई खज़ाना न शेष था ऐसे में कमबख्त दिल की वजह से इस अभिशप्त सौंदर्य मलिका को महज़ ३६ बरस की कमउम्र में आज ही के दिन हमसे जुदा होना पड़ा और हम भी आज उसे केवल उसकी उस अद्भुत अलौकिक सुंदरता को ही याद करते या उसके चित्रों में उसकी मनमोहक मुस्कान को ही देखते जिसमें छिपे दर्द की छाया को तो कोई भी न देख सका वो भी नहीं जिन्होंने उसे जनम दिया...

यदि ऐसा होता तो उसे बचपन से ही पूरे घर की जिम्मेदारी सँभालने की खातिर अपने से भी भी बड़ी उम्र के नायकों की नायिका बनाकर सिने जगत की जगमगाती मगर, निष्ठुर दुनिया में न भेज दिया होता और जो भेज ही दिया था तो उसके मन के जज्बातों को भी समझने की कोशिश की होती न कि केवल अपनी रोजी-रोटी का जरिया माना होता तो शायद, ऐसी स्थिति में न केवल उसके जीवन की लंबाई थोड़ी बढ़ जाती बल्कि उसके मन की साध पूरी होने से उसे जीने के लिये जो सबसे जरूरी थी वो सांसें मिल जाती क्योंकि मियाद सिर्फ़ जीवन की नहीं अभिशाप की भी होती जिसे पूरा करने ही वो आई थी तो साँसों से पहले वही खत्म हो गयी तो जो भी सपने उसने देखे थे उसे अपने साथ ही लेकर चली गयी एक दर्द देकर उन सबको भी जिन्होंने उसकी कदर नहीं की अब तड़फते हैं कि काश.... लेकिन, एक मौत ही तो हैं जिसके उपर किसी इल्तिजा, किसी तकलीफ और किसी पुकार का कोई असर नहीं होता अफ़सोस कि न तो उसके आने की कोई खबर होती. न ही जाने का ही पता होता वो तो बस, एक झटके में आकर यूँ गुजरती कि सामने वाले को भी समझने में थोड़ी देर लग जाती यदि ऐसा न होता तो क्या उसके प्यार को ठुकराने की कोई गलती करता पर, अब तो यही यादें व बातें ही शेष रह गयी जिनके सहारे वीनस ‘मधुबाला’ को याद करना हैं... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२३ फरवरी २०१७

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